डालर की तुलना में मजबूत हो सकता है रुपया – Rupee may become stronger against dollar

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अमेरिका में ब्याज दरों में बार बार कमी आने से भारतीय रुपये जैसी अन्य मुद्राओं के साथ डालर की विनिमय दर मैं भी कुछ कमी आएगी। दूसरे शब्दों में, डालर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर (Rupee may become stronger against dollar) मजबूत हो सकती है। जैसे-जैसे विदेशी निवेशक इनवेस्टमेंट के उद्देश्य से अपनी करेंसी को भारतीय रुपये में बदलेंगे, रुपये की मांग बढ़ेगी। इससे काफी हद तक संभव है कि डालर के मुकाबले रुपया मजबूत होगा। 

बाजार में दिखी उम्मीद की किरण – Ray of hope seen in the market 

पिछले कुछ समय में बाजार मैं यह नजर भी आया। फेड ब्याज दर में कमी के बाद रुपया मजबूत होकर 83.48 डालर पहुंच गया। मजबूत रुपया आयात की लागत को कम कर देता है। वहीं वह विदेशी खरीदारों के लिए उनके सामान को अधिक महंगा बनाकर भारतीय निर्यातकों को भी दुष्प्रभावित करता है। भारतीय आर्थिकी आयातोन्मुखी बनी हुई है, इसलिए मजबूत रुपया हमारे लिए लाभप्रद है। 

डालर में ऋण चुकाना होगा सस्ता – It will be cheaper to repay the loan in dollars 

अमेरिकी ब्याज दर में कटौती से भारतीय कंपनियों के लिए डालर में किए गए ऋण को चुकाना भी सस्ता हो जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि कम ब्याज दर से ऋण ब्याज की अदायगी लागत कम हो जाती है। इसके अलावा, कमजोर डालर का मतलब यह भी है कि आपको उसी राशि के ऋण निपटान करने के लिए कम रुपये की आवश्यकता होगी। 

कैसे करेगा यह काम – How will this work? 

मान लीजिए कि आज एक डालर की कीमत 85 रुपया है। यदि ब्याज दर में कटौती से डालर कमजोर होकर 84 रुपया हो जाता है, तो 10 करोड़ डालर का ऋण चुकाना सस्ता हो जाता है यानी 850 करोड़ से रकम 840 करोड़ रुपये आ जाती है।

तेल को लेकर ज्यादा प्रतिस्पर्धा – More competition regarding oil 

फेड ने निवेशकों को मजबूत अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लेकर आश्वस्त किया है, लेकिन विश्लेषक 50 आधार अंकों की कटौती को मंदी से लड़ने के लिए अमेरिकी केंद्रीय बैंक का पहला कदम मान रहे हैं। ऐसे में पश्चिमी दुनिया में तेल की मांग स्थिर हो सकती है। परिणामस्वरूप चीन में तेल के बढ़ते उत्पादन के बीच पेट्रो देश अपनी कटौती को धीरे-धीरे कम सकते हैं, क्योंकि वहाँ भी बाजार हिस्सेदारी को लेकर जबरदस्त प्रतिस्पर्धा की स्थिति बनी हुई है। भू-राजनीतिक कारणों से कीमतों में बढ़ोतरी अल्पावधि के लिए ही होती है। जब तक भू-राजनीतिक हालात ज्यादा खराब न हो, तब तक तेल की कीमतों में गिरावट का मौजूदा रुख थोड़ा और लंबा चल सकता है। 

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