पर्यावरण को वस्तुतः सभी जीवित और निर्जीव तत्वों और उनके प्रभावों के कुल योग के रूप में देखा जा सकता है जो मानव जीवन को प्रभावित करते हैं। सभी जीवित या जैविक तत्व पशु, पौधे, वन, मत्स्य और पक्षी हैं, जबकि निर्जीव या अजैविक तत्वों में जल, भूमि, धूप, चट्टानें और हवा शामिल हैं।
हम मानव भी इसी पर्यावरण के भाग हैं। प्रकृति में सभी जीव संतुलन के साथ रहते हैं। किन्तु मनुष्य ने स्वार्थवश पर्यावरण का क्षरण किया है।
पर्यावरण क्षरण हवा, पानी और मिट्टी की गुणवत्ता जैसे संसाधनों की कमी के माध्यम से पर्यावरण की गिरावट है। आज हमारे समक्ष अनेक पर्यावरणीय चिंताएं खड़ी है।
पर्यावरणीय चिंताओं में पर्यावरण पर किसी भी मानवीय गतिविधि के कारण होने वाले नकारात्मक प्रभाव शामिल है। कुछ प्राथमिक पर्यावरणीय चुनौतियाँ जो बड़ी चिंता पैदा कर रही हैं, वे हैं वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदुषण, इत्यादि।
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर हम जल्द ही कार्रवाई नहीं करते हैं, तो इससे प्राकृतिक आपदाओं में और भी वृद्धि होगी, समुद्र का स्तर बढ़ जाएगा और मौसम चरमरा जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप पारिस्थितिकी तंत्र ध्वस्त हो जाएगा, वन्यजीवों का बड़े पैमाने पर विलुप्त होने, भोजन की कमी और लोगों का वैश्विक विस्थापन होगा। इसी कारण पर्यावरण का संरक्षण महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
पर्यावरण संरक्षण प्राकृतिक दुनिया को संरक्षित करने का अभ्यास व प्रयास है ताकि इसे मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप ढहने से रोका जा सके, जैसे कि अस्थिर कृषि, वनों की कटाई और जीवाश्म ईंधन को जलाना, कचरे का बेहतर प्रबंधन आदि।
इसी प्रयास को सफल बनाने की दिशा में संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित पर्यावरण-दिवस महत्वपूर्ण है जो कि हर वर्ष 5 जून को मनाया जाता है।