वसंत पंचमी (या बसंत पञ्चमी) भारत में मनाया जाने वाला एक हिन्दू त्योहार है। पंचांग के अनुसार, वसंत पंचमी माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को पड़ता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह आमतौर पर जनवरी के अंत या फरवरी की शुरुआत में आता है। यूँ तो यह पर्व पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है किन्तु पूर्वी भारत में, विशेषकर बिहार में, यह त्योहार ‘सरस्वती पूजा’ के रूप में बड़े ही हर्षोल्लास और उत्साह से मनाया जाता है। मान्यताओं व परम्पराओं के अनुसार इसी दिन ज्ञान और बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी ‘माता सरस्वती’ का प्राकट्य हुआ था। अतः बसंत पंचमी को विशेष रूप से सरस्वती जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
बुधवार, 14 फरवरी 2024
सरस्वती पूजा मुहूर्त : 7:01am से 12:35pm
वसन्त पञ्चमी मध्याह्न का क्षण : 12:35pm
पञ्चमी तिथि : 13 फरवरी 2024, 2:41pm - 14 फरवरी 2024, 12:09pm
इस वर्ष 2024 में यह पर्व 14 फरवरी को मनाया जायेगा।
वाणी, शारदा, वागेश्वरी, वेदमाता, इत्यादि नामों से विख्यात देवी सरस्वती वस्तुतः चेतना की वह धारा मानी जाती हैं जो सृष्टि को जीवंत बनाती है। वह भोर की देवी हैं जिनकी ज्ञान की किरणें अज्ञानता के अंधकार को दूर करती हैं। उनके ज्ञान की किरणों के बिना केवल अराजकता और भ्रम है। उनके श्वेत वस्त्र पवित्रता का प्रतिक हैं। प्रकृति में जो कुछ भी शुद्ध है, उत्कृष्ट है, परात्पर है, उसका प्रतीक देवी सरस्वती हैं।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥
वसंत पंचमी के दिन लोग (विशेषकर विद्यार्थीगण) पूजा-अर्चना, फूल और मिठाइयाँ चढ़ाकर देवी सरस्वती की पूजा करते हैं। कई शैक्षणिक संस्थान शिक्षा और कला में सफलता के लिए उनका आशीर्वाद लेने के लिए विशेष प्रार्थनाएं और कार्यक्रम आयोजित करते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा संचालित भारत के सबसे बड़े स्कूल संस्थानों मे से एक विद्या भारती, जिसके अंतर्गत आने वाले सरस्वती शिशु मंदिर व सरस्वती विद्या मंदिर आते हैं, में माँ सरस्वती की पूजा को विशेष महत्व दिया जाता है। वसन्त पंचमी इन स्कूलों मे सबसे अधिक धूम-धाम से मनाए जाने वाला त्योहार है। इस दिन स्कूल में हवन का आयोजन भी किया जाता है। भक्त उनकी मूर्तियों को फूलों से सजाते हैं, प्रार्थना करते हैं और अपने प्रयासों में सफलता के लिए उनका मार्गदर्शन मांगते हैं।
वसंत पंचमी बच्चों को ज्ञान की दुनिया में दीक्षित करने का भी दिन है। अतः यह बच्चों के विद्यार्जन करने का आरम्भ दिवस भी है। भारत में अनेकों परिवार विद्यारंभम के अनुष्ठान का आयोजन करते हैं, जहां बच्चों को वर्णमाला और संख्याओं से परिचित कराया जाता है। कई लोग इस दिन को अपने नवजात शिशुओं के अन्नप्राशन (अनाज का सेवन करने की शुरुआत) के रूप में भी मानते हैं। इस दिन नवजात बच्चे को पहला निवाला खिलाया जा सकता है और माना जाता है कि बच्चे की जिह्वा पर शहद से ॐ लिखने से बच्चा ज्ञानी बनता है।
वसंत पंचमी उत्सव के दौरान पीला प्रमुख रंग होता है, जो वर्ष के इस समय खिलने वाले सरसों के फूलों का प्रतीक है। लोग अक्सर पीले कपड़े पहनते हैं और प्रसाद के रूप में केसर चावल या केसरी जैसी पीली मिठाइयाँ तैयार की जाती हैं। कपड़ों से लेकर सजावट और प्रसाद तक, उत्सव में पीले रंग का विशेष महत्व होता है, जो वसंत की जीवंतता और खुशी का प्रतीक है।
वसंत पंचमी मदनोत्सव के रूप में मनाया जाता है। मदनोत्सव अर्थात् मदन का उत्सव। मदन वस्तुतः कामदेव का एक नाम है। इस दिन कामदेव का अवतरण भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न रूप में हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार कामदेव (लालसा, वसना, इच्छा के देवता) को भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र की क्रोधाग्नि में भस्म कर दिया था।
वसंत पंचमी के ही दिन प्रभु श्रीराम ने शबरी के बेर उनके आश्रम में खाए थे, इसलिए इस दिन भगवान को बेर का भोग लगाया जाता है।
अपने धार्मिक महत्व से परे, वसंत पंचमी प्रकृति के कायाकल्प का उत्सव भी है। वर्ष भर में पड़ने वाली छः ऋतुओं (बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर) में बसंत को ऋतुराज अर्थात सभी ऋतुओं का राजा माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में अपने बारे में कहते हुए कहा था - ऋतुओं में मैं वसंत हूँ।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः ॥
[श्रीमद्भगवद्गीता/10/35]
यद्यपि ऋतुओं मे श्रेष्ठ वसंत ऋतु माघ के प्रतिपदा से ही आरम्भ हो जाती है, पर पंचमी के दिन लोगों का ध्यान इस ऋतु के लिए ज्यादा आकर्षित होता है। वसंत पंचमी धार्मिक अनुष्ठान से कहीं अधिक है ज्ञान और प्रकृति की सुंदरता का उत्सव है।