महाकुम्भ के बाद जा सकतें हैं यहाँ, इतिहास, कला और प्रकृति के अद्भुत संगम का प्रतीक

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महाकुम्भ के सफर में इन स्थानों को बिल्कुल भी मिस ना करें, इतिहास और कला को देखनें के शौकीन हैं और भारत की अद्भुत कला को देखने के जिज्ञासु हैं, तो इन स्थानों पर जरूर भ्रमण करें।

महाकुंभ के दिव्य अनुभव के बाद खजुराहो और पन्ना रिजर्व की यात्रा आपकी आध्यात्मिक और प्राकृतिक सुंदरता की खोज को और भी खास बना देगी। खजुराहो के विश्वप्रसिद्ध मंदिरों की अद्भुत शिल्पकला इतिहास और संस्कृति की झलक दिखाती है, जबकि पन्ना टाइगर रिजर्व में जंगल सफारी का रोमांचकारी अनुभव मिलेगा। यह यात्रा आपको भारतीय धरोहर और वन्यजीवन के अनूठे संगम का अवसर देगी।

महाकुंभ एक सामाजिक और सांस्कृतिक मिलन का भी अवसर होता है, जिसमें विभिन्न समुदायों के लोग एक साथ आते हैं और धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। आपको एक बार जरूर जाकर अपने जीवन को सार्थक कीजिए महाकुंभ का धार्मिक महत्व अनेक रूपों में है। महाकुंभ का आयोजन ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर किया जाता है। यह माना जाता है कि इस समय ग्रहों की विशेष स्थिति के कारण नदियों का जल अमृतमय हो जाता है, जिसमें स्नान करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं। यह एक ऐसा समय होता है जब श्रद्धालु अपने आध्यात्मिक जीवन को नई दिशा देते हैं और ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति को बढ़ाते हैं। ऐसा माना जाता है कि महाकुंभ में स्नान करने से श्रद्धालुओं के पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

महाँकुंभ से वापसी में चित्रकूट अवश्य हो आइए, इस यात्रा के बाद आप मानसिक रूप से बेहतर महसूस कर सकेंगे, यह यात्रा एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है। यहाँ के धार्मिक स्थल और प्राकृतिक सौंदर्य मन को मोह लेते हैं। यह स्थान हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। वातावरण शांत और आध्यात्मिक है। यहाँ के मंदिरों और प्राकृतिक सौंदर्य भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यह तो हम सभी जानते हैं की चित्रकूट का रामायण काल से गहरा संबंध है। माना जाता है कि भगवान राम, सीता और लक्ष्मण ने अपने वनवास के दौरान यहाँ 11 साल से भी अधिक समय बिताया था। इस अवधि के दौरान, उन्होंने कई महत्वपूर्ण घटनाओं का अनुभव किया, जैसे कि भरत मिलाप और सीता हरण।

खजुराहो

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मध्यप्रदेश स्थित खजुराहो शहर की कला और मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं, इस बात की गवाही 1986 में यूनेस्को ने विश्व प्रसिद्ध धरोहर का दे कर दी। इससे इतर खजुराहो के मंदिरों का समूह भारत में सात अजूबों में से एक है। चंदेल वंश द्वारा खजुराहो के मंदिर 950 से 1050 के बीच बने हैं। जिस समय चंदेल वंश अपने चर्मोकर्ष पर था।

इन मंदिरों में से वर्तमान में लगभग 20 ही बचे हैं वे तीन अलग-अलग समूहों में आते हैं और दो अलग-अलग धर्मों – हिंदू धर्म और जैन धर्म से संबंधित हैं। वे वास्तुकला और मूर्तिकला के बीच एक आदर्श संतुलन बनाते हैं। कंदारिया का मंदिर मूर्तियों की प्रचुरता से सजाया गया है जो भारतीय कला की सबसे बड़ी कृतियों में से एक हैं।

चंदेल वंश ने 10 वीं से 11 वीं शताब्दी में इस जगह पर शासन किया है, सुरम्य परिदृश्य में 6 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले, 23 मंदिर (जिनमें एक आंशिक रूप से उत्खनित संरचना भी शामिल है) जो खजुराहो स्मारक समूह के पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी समूहों का निर्माण करते हैं, दुर्लभ जीवित उदाहरण हैं जो नागर शैली के मंदिर वास्तुकला की मौलिकता और उच्च गुणवत्ता को प्रदर्शित करते हैं।

खुजराहो स्मारक अपनी विरासत के खाके भौतिक रूप से उत्तरी भारत में मंदिर वास्तुकला का शिखर है। बलुआ पत्थर से निर्मित, प्रत्येक मंदिर अपने परिवेश से एक अत्यधिक अलंकृत सीढ़ीदार मंच या जगती द्वारा ऊंचा किया गया है, जिस पर शरीर या जंघा खड़ा है, जिसके गर्भगृह के ऊपर एक मीनार या शिखर है, जो नागर के लिए एक अद्वितीय प्रकार का है, जहां गर्भगृह के शीर्ष पर मुख्य शिखर की ऊर्ध्वाधरता को उसके दोनों ओर छोटे-छोटे शिखरों की एक श्रृंखला द्वारा उभारा गया है, जिनमें से प्रत्येक देवताओं के निवास, कैलाश पर्वत का प्रतीक है।

वर्तमान में खजुराहों के मंदिर-

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कंदरिया महादेव मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, चित्रगुप्त मंदिर, वराह मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, मतंगेश्वर मंदिर, पार्वती मंदिर, नंदी मंदिर, घंटाई मंदिर, आदिनाथ मंदिर, पार्श्वनाथ मंदिर, ब्रह्मा मंदिर, वामन मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, देवी जगदंबी मंदिर

इन मंदिरों की कुछ विशेषताएं-
  • ये मंदिर चंदेल वंश के शासकों ने बनवाए थे।
  • इन मंदिरों में कामुक मूर्तियां हैं।
  • ये मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल हैं।
  • इन मंदिरों में नागर शैली की स्थापत्य प्रतीकात्मकता है।
  • इन मंदिरों में बड़ी खिड़कियां हैं जिनसे प्राकृतिक प्रकाश आता है।
  • इन मंदिरों में गर्भगृह, अंतराल, महामंडप, अर्ध मंडप, मंडप, और प्रदक्षिणा-पथ होता है।
  • इन मंदिरों में भगवान शिव, भगवान विष्णु, भगवान गणेश, और सूर्यदेव की मूर्तियां हैं।
  • इन मंदिरों में जैन तीर्थंकरों की भी मूर्तियां हैं।
  • इन मंदिरों में अष्ट मैथुन का सजीव चित्रण है।

पन्ना टाइगर रिजर्व

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पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तरी मध्य प्रदेश में विंध्य पहाड़ी में स्थित एक बाघ आवास है पन्ना टाइगर रिजर्व, विंध्य पहाड़ियों में स्थित है, जो बाघों और अन्य वन्यजीवों का घर है। यह रिजर्व 1981 में स्थापित किया गया था और 1994 में इसे टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था। यहाँ बाघों के अलावा तेंदुए, चीतल, सांभर, और कई प्रकार के पक्षी भी पाए जाते हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व प्राकृतिक सौंदर्य और वन्यजीवों से भरपूर है, जो प्रकृति प्रेमियों और वन्यजीव उत्साही लोगों के लिए एक आदर्श स्थान है।

 1981 में एक वन्यजीव अभयारण्य के रूप में घोषित किया गया इस उद्यान का क्षेत्रफल 542.67 वर्ग किलोमीटर है। इसे 25 अगस्त 2011 को बायोस्फीयर रिजर्व के रूप में नामित किया गया था। पन्ना को 2007 में भारत के पर्यटन मंत्रालय द्वारा भारत के सर्वश्रेष्ठ रखरखाव वाले राष्ट्रीय उद्यान के रूप में उत्कृष्टता का पुरस्कार दिया गया था। केन नदी इस राष्ट्रीय उद्यान का मुख्य आकर्षण है। ऐसा माना जाता है कि पाण्डवों ने अपना अधिकांश समय पन्ना में बिताया था। इसका उल्लेख महाभारत में भी है।

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इस रिजर्व को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है

1) ताडोबा उत्तर क्षेत्र, 2) मोरहुली क्षेत्र 3) कोलसा दक्षिण रेंज।

इसी के साथ इस रिजर्व में तीन जल स्त्रोत भी हैं

1) ताडोबा नदी, 2) ताडोबा झील 3) कोलासा झील। (इन जल स्त्रोत में पर्यटकों को सफारी की भी अनुमति है)

रिजर्व में वनस्पति और जीव

उद्यान में प्रमुख वनस्पतियों में सागौन, बाँस, बोसवेलिया आदि शामिल हैं इस रिजर्व में कई दुर्लभ प्रजातियों और लुप्त हो लुप्तप्राय प्रजातियों को भी देखा जा सकता है। यहाँ पाए जाने वाले जानवरो में बाघ, तेंदुआ, चीतल,चिंकारा, नीलगाय, सांभर, और भालू हैं। यह उद्यान 150 से अधिक पक्षियों का घर है, जिनमें लाल सिर वाला गिद्ध, बार हेडेड हंस, हानी बुजार्ड, और भारतीय गिद्ध आदि शामिल हैं। यहाँ गिद्ध की 6 प्रजातियाँ मौजूद हैं।

पन्ना अभ्यारण्य भारत के मध्य राज्य में केन नदी के क्षेत्रों के अलावा, खजुराहो से 57 किलोमीटर की दूरी पर मध्य प्रदेश में स्थित है, जो विश्व धरोहर केंद्र है। पन्ना राष्ट्रीय उद्यान को 1994/95 में भारत के टाइगर रिजर्व में से एक घोषित किया गया और प्रोजेक्ट टाइगर के संरक्षण में रखा गया। पन्ना में बाघों की आबादी में कई बार गिरावट दर्ज की गई है।

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