मैंने उसको
जब-जब देखा,
लोहा देखा,
लोहे जैसा,
तपते देखा,
गलते देखा,
ढलते देखा,
मैंने उसको
गोली जैसा
चलते देखा!
हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार केदारनाथ अग्रवाल की इसी कविता के साथ आज हम भारत के ऐसे पुरोधा का स्मरण करने जा रहे हैं जिन्हे आप सभी भारत के लौह पुरुष के रूप में जानते हैं। ब्रिटिश शासित भारत में सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1950 को गुजरात के खेड़ा में हुआ। उनका निधन आज ही के दिन 15 दिसंबर 1950 को मुम्बई में दिल का दौरा पड़ने के कारण हुआ। इस दिन को उनकी पुण्यतिथि (Death Anniversary) के रूप में मनाया जाता है।
आरंभिक जीवन
सरदार वल्लभ भाई पटेल का शुरुआती जीवन आर्थिक तंगी का सामना करते हुए बीता। उनके जीवन में आर्थिक तंगी की विकरालता का आप इस बात से अनुमान लगा सकते हैं कि उन्होंने अपनी दसवीं कक्षा के इम्तेहान 22 वर्ष की उम्र में दिए। लेकिन उनके जीवन की तमाम कठिनाइयाँ जीवन जीने के उनके हौसले को पस्त नहीं कर पाई। स्कूली शिक्षा के बाद उनकी आगे पढ़ने की इच्छा थी लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो पाई। जिसके बाद उन्होंने घर पर ही जिलाधिकारी की परीक्षा की तैयारी की। इस परीक्षा में उन्होंने सर्वाधिक अंक हासिल किए। इसके बाद 36 साल की आयु में वह इंग्लैंड चले गए जहाँ उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी की।
राष्ट्र निर्माता
सरदार वल्लभ भाई पटेल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता होने के साथ ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख व्यक्ति थे। 500 से अधिक रियासतों को भारत में विलय कराने का श्रेय उन्हें ही जाता है। उन्होंने भारत देश को एक राष्ट्र के रूप में निर्मित किया। सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और पहले गृह मंत्री बने। सरदार वल्लभभाई पटेल को नवीन भारत का निर्माता कहा जाता है और उनके साहसिक कार्यों की वजह से ही उन्हें 'लौह पुरुष' और 'सरदार' जैसी उपाधियों से नवाजा गया था।
किसने दी 'लौह पुरुष' की उपाधि ?
भारत के राजनीतिक इतिहास में सरदार वल्लभ भाई पटेल का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की नीतिगत दृढ़ता को देखते हुए उन्हें लौह पुरुष की उपाधि प्रदान की। इसके बाद से ही उन्हें लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम से जाना जाने लगा।
लौह पुरुष के अनमोल विचार
1 "इस मिट्टी में कुछ अनूठा है, जो कई बाधाओं के बावजूद हमेशा महान आत्माओं का निवास रहा है।"
2 "ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं, उनके साथ अक्सर मैं हंसी-मजाक करता हूँ। जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमयी छाया से दूर रह सकता है जो इंसान के माथे पर चिंता की रेखाएं छोड़ जाती है।"
3 "आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिए अपनी आँखों को क्रोध से लाल होने दीजिए, और अन्याय का सामना मजबूत हाथों से कीजिए।"
4 "मनुष्य को ठंडा रहना चाहिए, क्रोध नहीं करना चाहिए। लोहा भले ही गर्म हो जाए, हथौड़े को तो ठंडा ही रहना चाहिए अन्यथा वह स्वयं अपना हत्था जला डालेगा। कोई भी राज्य प्रजा पर कितना ही गर्म क्यों न हो जाये, अंत में तो उसे ठंडा होना ही पड़ेगा।"
5 "आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिए अपनी आँखों को क्रोध से लाल होने दीजिए, और अन्याय का सामना मजबूत हाथों से कीजिए।"
6 "काम करने में तो मजा ही तब आता है, जब उसमे मुसीबत होती है मुसीबत में काम करना बहादुरों का काम है मर्दों का काम है कायर तो मुसीबतों से डरते हैं लेकिन हम कायर नहीं हैं, हमें मुसीबतों से डरना नहीं चाहिए।"
7 "आपको अपना अपमान सहने की कला आनी चाहिए।"
8 "एकता के बिना जनशक्ति शक्ति नहीं है जबतक उसे ठीक तरह से सामंजस्य में ना लाया जाए और एकजुट ना किया जाए, और तब यह आध्यात्मिक शक्ति बन जाती है।"
9 “जब जनता एक हो जाती है, तब उसके सामने क्रूर से क्रूर शासन भी नहीं टिक सकता। अतः जात-पात के ऊँच-नीच के भेदभाव को भुलाकर सब एक हो जाइए।”
10 “संस्कृति समझ-बूझकर शांति पर रची गयी है। मरना होगा तो वे अपने पापों से मरेंगे। जो काम प्रेम, शांति से होता है, वह वैर-भाव से नहीं होता।”