राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक भारतीय स्वयंसेवी संगठन है। सन् 1925 में एक चिकित्सक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित यह संगठन विभिन्न उतार-चढ़ाव से होकर गुजर चुका है। आज संघ स्वयं को राष्ट्रवादी कहलाना अधिक पसंद करता है जबकि विरोधी इसे हिन्दू अर्धसैनिक संगठन के रूप में ख्यापित करने का प्रयास करतें हैं।
पत्रकार विजय त्रिवेदी अपनी पुस्तक में लिखतें हैं, “आरएसएस “फीनिक्स” पक्षी की तरह है। तीन-तीन बार सरकार के प्रतिबंधों के बाद भी उसे ख़त्म नहीं किया जा सका, बल्कि उसका विस्तार हुआ। अब ज़िन्दगी का शायद ही कोई पहलू हो जिसे संघ नहीं छूता। बदलते वक़्त के साथ संघ ने सिर्फ़ अपना गणवेश ही नहीं बदला, नज़रिए को भी व्यापक बनाया।”
संघ स्वयंसेवकों के लिए उनके जीवन का उद्देश्य है जबकि बाहरी व्यक्तियों के लिए एक अबूझ पहेली। यदि आप भी संघ के विषय में जानना चाहतें हैं तो हम आपको इस लेख के माध्यम से बताते हैं संघ के उद्भव, विकास व संघ के अंतिम लक्ष्य - ‘परम वैभव’ के विषय में।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने विजयादशमी के अवसर पर वर्ष 1925 में नागपुर में की थी। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह तिथि 27 सितम्बर है। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार वस्तुतः एक स्वतंत्रता सेनानी थे। हेडगेवार कांग्रेस पार्टी की अनुशीलन समिति से जुड़े थे। वह पार्टी के स्वयंसेवक प्रभाग - हिंदुस्तानी सेवा दल, जो कांग्रेस सेवा दल का पूर्ववर्ती था, के भी सक्रिय सदस्य थे। लेकिन जल्द ही उनका कांग्रेस पार्टी की राजनितिक विचारधारा व नीतियों से मोहभंग हो गया।
दरअसल, केशव बलिराम हेडगेवार लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, विनायक दामोदर सावरकर, बाबाराव सावरकर, श्री अरबिंद घोष और बी.एस. मुंजे के लेखन से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने मैज़िनी और अन्य प्रबुद्ध दार्शनिकों को भी पढ़ा। उनका मानना था कि हिंदुओं की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत भारतीय राष्ट्रीयता का आधार होनी चाहिए।
संघ के प्रथम सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार ने नागपुर स्थित अपने घर पर एक गोष्ठी में हिंदुओं को संगठित करने के विचार के साथ संघ के गठन की योजना बनाई। इस बैठक में हेडगेवार के साथ विश्वनाथ केलकर, भाऊजी कावरे, अण्णा साहने, बालाजी हुद्दार, बापूराव भेदी आदि मौजूद थे। संघ का क्या नाम, क्रियाकलाप, आदि सब कुछ समय के साथ धीरे-धीरे तय होता गया। यहां तक कि संघ का नामकरण 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' भी 17 अप्रैल, 1926 को हुआ। इसी दिन हेडगेवार को सर्वसम्मति से संघ प्रमुख चुना गया, लेकिन सरसंघचालक वे नवंबर 1929 में बनाए गए। इस प्रकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अस्तित्व में आया।
“हिंदू संस्कृति हिंदुस्तान की प्राणवायु है। अतः यह स्पष्ट है कि यदि हिंदुस्तान की रक्षा करनी है तो सबसे पहले हमें हिंदू संस्कृति का पोषण करना होगा। यदि हिंदुस्तान में ही हिंदू संस्कृति नष्ट हो जाए, और हिंदू समाज का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए, तो मात्र उस भौगोलिक इकाई को हिंदुस्तान कहना उचित नहीं होगा। केवल भौगोलिक गांठों से कोई राष्ट्र नहीं बनता। संपूर्ण समाज को इतनी सजग और संगठित स्थिति में रहना चाहिए कि कोई भी हमारे किसी भी सम्मान बिंदु पर बुरी नजर डालने की हिम्मत न कर सके।
डॉ. हेडगेवार
यह याद रखना चाहिए कि ताकत संगठन से ही आती है। इसलिए यह प्रत्येक हिंदू का कर्तव्य है कि वह हिंदू समाज को मजबूत करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करे। संघ बस इस सर्वोच्च कार्य को कार्यान्वित कर रहा है। देश का वर्तमान भाग्य तब तक नहीं बदला जा सकता जब तक लाखों युवा अपना पूरा जीवन उस उद्देश्य के लिए समर्पित नहीं कर देते। हमारे युवाओं के मस्तिष्क को उस लक्ष्य की ओर ढालना संघ का सर्वोच्च उद्देश्य है।”
नाम | कार्यकाल |
केशव बलिराम हेडगेवार – Keshav Baliram Hedgewar | 1925 - 1940 |
माधव सदाशिवराव गोलवलकर - Madhav Sadashivrao Golwalkar | 1940 - 1973 |
मधुकर दत्तात्रय देवरस - Madhukar Dattatreya Devras | 1973 - 1993 |
प्रोफ़ेसर राजेंद्र सिंह - Professor Rajendra Singh | 1993 - 2000 |
कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन - Kripahalli Sitaramaiya Sudarshan | 2000 - 2009 |
डॉ॰ मोहनराव मधुकरराव भागवत - Dr. Mohanrao Madhukarrao Bhagwat | 2009 - अभी तक |