कई लोग तो शादी के कार्ड पर इतना भयकर वाली अंग्रेजी लिखवाते हैं कि मिश्रा, पांडे, वर्मा शर्मा होके भी लगता है शादी चर्च में होगी।
आजकल बड़े शहरों में ज्यादातर लोग अपनी भाषा छोड़कर, अंग्रेजी में बात करते हैं। सुबह गुड मॉर्निंग जरूर बोलेंगे। भले ही सुबह गुड हो या ना हो। किसी के यहां दूध फट गया है, कहीं दूध आया हो या नहीं, कहीं नल में पानी आया हो या नहीं लेकिन वे गुड मॉर्निंग ही कहेंगे।
एक जमाने में अंग्रेजी तभी बोली जाती थी जब घर में मेहमान आए या लड़के वाले लड़की को देखने आए हों। मेहमान के सामने पैरेंट्स बच्चे से कहते थे। 'बेटा अंकल को बाबा-बाबा ब्लैक शीप सुनाओं', जिस बच्चे को ये नहीं पता कि अंकल की स्पेलिंग यू से शुरू होती है या ए से वो बच्चा मुश्किल से एक आधी लाइन सुना कर टेबल के बिस्किट को देखने लगता है। बच्चा ज्यादा बेज्जती ना करवा दे इसलिए एक बिस्किट बच्चे को देकर पैरेंट्स कहते थे 'आज ही नहीं सुना पा रहा मोंटू वरना इसे तो जॉनी जॉनी भी याद है।' पहले बहुत कम अंग्रेजी मीडियम स्कूल होते थे। आजकल बहुत कम हिंदी मीडियम हैं।
कई लोगों को अपना परिचय अंग्रेजी में देना तब आया था जब किसी ने उन्हें बताया कि टॉयलेट और टू-लेट दोनों अलग-अलग हैं। धीरे-धीरे अंग्रेजी बोलने का चलन इतना बढ़ा कि कुत्ता पीछे पड़ जाए तो कुछ लोग हट-हट की बजाए एक्सक्यूज मी बोल देते हैं। कुत्ता भी परेशान! ये एक्सक्यूज मी पहले तो कभी नहीं सुना। हमारे यहां हिंदी बोलते- बोलते लोग एक आधा अंग्रेजी का शब्द चिपका देते हैं।
खासकर पैरेंट्स छोटे बच्चों से 'चलो बेटा मिल्क फिनिश करो, नो बेटा डोन्ट जिद्द।' शादी- ब्याह आदि फंक्शन के कार्ड पहले हिंदी में छपता था लेकिन आजकल सिर्फ अंग्रेजी में छपता है। किसी की तेरहवीं का कार्ड जब अंग्रेजी में हो, तो लगता है बंदा मरा नहीं, अभी पैदा ही हुआ है।
कई लोग तो शादी के कार्ड पर इतनी भयंकर वाली अंग्रेजी लिखवाते हैं कि मिश्रा, पांडे, वर्मा- शर्मा होके भी लगता है शादी चर्च में होगी। हमारे यहां कई लोगों को अंग्रेजी 3-4 पैग के बाद ही आती है। पहले पैग में ए से के तक वाली, दूसरे के बाद एल से टी तक फिर 4-5 पैग के बाद तो जेड के बाद वाली भी बोलना शुरू कर देते हैं। कुछ लोग दिखावे के लिए अंग्रेजी बोलते हैं। हमारे यहां इतनी भाषाएं हैं कि इतने तो कई देशों में लोग नहीं हैं। हर 50-60 किमी पर भाषा, शब्दों के मायने बदल जाते हैं।
इंसानों ने अपनी तरह से भाषाएं बना लीं। लेकिन एक सांप दूसरे सांप से हिस्स्स्स-हिस्स्स में ही बात करता है, आज तक मैंने अंग्रेजी का हस्स्स्स या चाइनीज वाला हुस्स्स्स नहीं सुना। हिंदी या अंग्रेजी वाली भों-भों नहीं सुनी। कोई बिल्ली हिंदी या अंग्रेजी में मियाउं नहीं करती। फिर भी जानवर एक-दूसरे की हर बात समझ लेते हैं। एक हम हैं हजारों भाषाएं होते हुए भी एक-दूसरे को नहीं समझा पा रहे।
पूरी दुनिया में कुछ भाषाएं ही होनी चाहिए। प्यार-सम्मान की भाषा दूसरे के साथ रहने की भाषाएं। दूसरों को आगे बढ़ाने सहायता करने की भाषा। ये भाषाएं दुनिया में होंगी तो बाकी किसी भी भाषा की कोई जरूरत नहीं प्रणाम वालेकुम।