जयप्रकाश नारायण – Jayaprakash Narayan जयंती विशेष : 11 अक्टूबर

जय प्रकाश नारायण एक भारतीय राजनीतिक नेता और सिद्धांतकार थे। जयप्रकाश नारायण को लोकप्रिय रूप से जेपी या लोक नायक कहा जाता है। उन्हें प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के इमरजेंसी के विरुद्ध "संपूर्ण क्रांति" के आह्वान के लिए याद किया जाता है। वर्ष 1999 में, उनकी सामाजिक सेवा के सम्मान में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न से सम्मानित किया गया। आज 11 अक्टूबर उनकी जयंती पर इस लेख के माध्यम से उन्हें स्मरण करने का प्रयास करते हैं।

जन्म व शिक्षा

जय प्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर, 1902 को हुआ था। जयप्रकाश नारायण ‘श्रीवास्तव’ का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को सिताब दियारा गाँव, सारण जिले, बंगाल प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत (वर्तमान बलिया जिला, उत्तर प्रदेश, भारत) में हुआ था। 

उन्होंने विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में एम.ए., और ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी से व्यवहार विज्ञान में बी.ए. की उपाधि प्राप्त की।

विस्कॉन्सिन में, जयप्रकाश का परिचय कार्ल मार्क्स के ‘दास कैपिटल’ से हुआ। रूसी गृहयुद्ध में बोल्शेविकों की सफलता की खबर ने जयप्रकाश को यह निष्कर्ष निकालने पर मजबूर कर दिया कि मार्क्सवाद ही जनता की पीड़ा को कम करने का तरीका है। उन्होंने भारतीय बुद्धिजीवी और कम्युनिस्ट सिद्धांतकार एम.एन. रॉय की पुस्तकों का गहराई से अध्ययन किया। समाजशास्त्र पर उनका पेपर, “सांस्कृतिक विविधता (Cultural Variation)”, को वर्ष का सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया।

राजनीती में प्रवेश

जेपी वर्ष 1929 के अंत में एक मार्क्सवादी के रूप में अमेरिका से भारत लौटे। भारत आगमन पश्चात, वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। वे गांधीजी के अनुयायी थे। सन् 1932 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें एक साल की कैद की सजा सुनाई गई थी। 

जेल से रिहा होने पर उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के गठन में अग्रणी भूमिका निभाई, जो कांग्रेस पार्टी के भीतर एक वामपंथी समूह था। द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन की ओर से भारतीयों की भागीदारी का विरोध करने के कारण उन्हें वर्ष 1939 में अंग्रेजों द्वारा फिर से कैद कर लिया गया। जेपी जेल से भागने में सफल रहे किन्तु 1943 में वे पुनः पकडे गए। 1946 में अपनी रिहाई के बाद उन्होंने कांग्रेस नेताओं को ब्रिटिश शासन के खिलाफ अधिक उग्रवादी नीति अपनाने के लिए मनाने की कोशिश की। लेकिन अंततः सन् 1948 में उन्होंने अधिकांश कांग्रेस समाजवादियों के साथ मिलकर कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। 

स्वतंत्रता पश्चात् जीवन

1952 में उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया। जल्द ही दलगत राजनीति से असंतुष्ट होकर, उन्होंने 1954 में घोषणा की कि वह अब से अपना जीवन विशेष रूप से विनोबा भावे द्वारा स्थापित भूदान यज्ञ आंदोलन के लिए समर्पित करेंगे, जिसमें भूमिहीनों के बीच भूमि वितरित करने की मांग की गई थी। इसके अतिरिक्त, 1947 और 1953 के बीच, जयप्रकाश नारायण भारतीय रेलवे के सबसे बड़े श्रमिक संघ, ऑल इंडिया रेलवेमेन्स फेडरेशन के अध्यक्ष भी रहे।

1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की जिसके विरोध में देश भर में व्यापक आंदोलन हुए और इस विरोध का चेहरा बनकर उभरे जेपी। जेपी का “संपूर्ण क्रांति” का नारा पटना के गाँधी मैदान से होता हुआ संसद तक गूँज उठा।  

"भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रांति लाना, आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं; क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वे तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति, ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ आवश्यक है।" 

जय प्रकाश नारायण 

इमरजेंसी/आपातकाल के दौरान नेतृत्व और ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ के आह्वान के कारण उन्हें ‘लोकनायक’ के नाम से जाना गया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के अनुसार सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियाँ शामिल है— राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति। इन सातों क्रांतियों को मिलाकर सम्पूर्ण क्रान्ति होती है।

जयप्रकाश नारायण का निधन उनके निवास स्थान पटना में 8 अक्टूबर, 1979 को हृदय की बीमारी और मधुमेह के कारण हुआ। उनके सम्मान में तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने 7 दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की थी।

सम्मान

भारत रत्न, 1999 (मरणोपरांत), भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार

• FIE फाउंडेशन, इचलकरंजी का राष्ट्रभूषण पुरस्कार

रेमन मैगसेसे पुरस्कार, 1965