हर साल ज्येष्ठ माह में पूर्णिमा तिथि को संत कबीरदास जी की जयंती मनाई जाती है। इस साल कबीरदास जयंती 04 जून को है।
हालांकि कबीर जयंती के नाम से ही यह उत्सव मनाया जाता रहा है लेकिन कहा जाता है कि संत रामपाल के अनुयाइयों ने इसे प्रकट उत्सव के रूप मे मनाना आरंभ किया जिसके लिए रोहतक के मेला ग्राउंड में विशाल भंडारे का आयोजन किया था।
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
एकै आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होइ॥ [दोहा]
अर्थ - सारे संसारिक लोग पुस्तक पढ़ते-पढ़ते मर गए कोई भी पंडित (वास्तविक ज्ञान रखने वाला) नहीं हो सका। परंतु जो अपने प्रिय परमात्मा के नाम का एक ही अक्षर जपता है (या प्रेम का एक अक्षर पढ़ता है) वही सच्चा ज्ञानी होता है। वही परम तत्त्व का सच्चा पारखी होता है।
मन के हारे हार हैं, मन के जीते जीति।
कहै कबीर हरि पाइए, मन ही की परतीति॥ [दोहा]
अर्थ - मन के हारने से हार होती है, मन के जीतने से जीत होती है (मनोबल सदैव ऊँचा रखना चाहिए)। मन के गहन विश्वास से ही परमात्मा की प्राप्ति होती है।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहिं।
सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि॥ [दोहा]
अर्थ - जब तक अहंकार था तब तक ईश्वर से परिचय नहीं हो सका। अहंकार या आत्मा के भेदत्व का अनुभव जब समाप्त हो गया तो ईश्वर का प्रत्यक्ष साक्षात्कार हो गया।
सब जग सूता नींद भरि, संत न आवै नींद।
काल खड़ा सिर ऊपरै, ज्यौं तौरणि आया बींद॥ [दोहा]
अर्थ - सारा संसार नींद में सो रहा है किंतु संत लोग जागृत हैं। उन्हें काल का भय नहीं है, काल यद्यपि सिर के ऊपर खड़ा है किंतु संत को हर्ष है कि तोरण में दूल्हा खड़ा है। वह शीघ्र जीवात्मा रूपी दुल्हन को उसके असली घर लेकर जाएगा।
माली आवत देखि के, कलियाँ करैं पुकार।
फूली-फूली चुनि गई, कालि हमारी बार॥ [दोहा]
अर्थ - मृत्यु रूपी माली को आता देखकर अल्पवय जीव कहता है कि जो पुष्पित थे अर्थात् पूर्ण विकसित हो चुके थे, उन्हें काल चुन ले गया। कल हमारी भी बारी आ जाएगी। अन्य पुष्पों की तरह मुझे भी काल कवलित होना पड़ेगा।
सारे शहर की ही भांति शहर के राजा बीर सिंह भी संत कबीर के विचारों के एक बड़े पैरोकारों में से एक थे। जब कभी भी कबीर उनके दरबार में आते थे तो आदर स्वरूप राजा उन्हें अपने सिंहासन पर बैठा स्वयं उनके चराणों में बैठ जाते।
एक दिन अचानक कबीर दास के मन में ख्याल आया कि क्यों न राजा की परीक्षा ली जाए कि क्या राजा बीर सिंह के मन में मेरे लिए सही में इतना आदर है या वे सिर्फ दिखावा कर रहे है? उसके अगले ही दिन वे हाथों में दो रंगीन पानी की बोतले ले (जो दूर से देखने पर शराब लगता था) अपने दो अनुयायों, जिसमें एक तो वही का मोची था तथा दूसरी एक महिला, जो कि प्रारम्भ में एक वैश्या थी के साथ राम नाम जपते हुए निकल पड़े।
उनके इस कार्य से उनके विरोधियों को उनके ऊपर ऊँगली उठाने का अवसर मिल गया। पूरे बनारस शहर में उनका विरोध हाने लगा जिससे धीरे-धीरे यह बात राजा के कानों तक पहुँच गई। कुछ समय पश्चात संत कबीर दास राजा के पास पहुँचे; कबीर दास के इस व्यवहार से वे बड़ा दुःखी थे। तथा जब इस बार वे दरबार में आए तो राजा अपनी गद्दी से नहीं उठे।
यह देख, कबीर दास जल्द ही समझ गए कि राजा बिर सिंह भी आम लोगों की तरह ही हैं; उन्होंने तुरंत रंगीन पानी से भरी दोनों बोतलों को नीचे पटक दिया। उनको ऐसा करते देख राजा बिर सिंह सोचने लगे कि कोई भी शराबी इस तरह शराब की बोतले नहीं तोड़ सकता, ज़रूर उन बोतलों में शराब के बदले कुछ और था।
राजा तुरंत अपनी गद्दी से उठे और कबीर दास जी के साथ आए मोची को किनारे कर उससे पुछा - ये सब क्या है? मोची ने बोला, 'महाराज, क्या आपको पता नहीं, जगन्नाथ मंदिर में आग लगी हुई है और संत कबीर दास इन बोतलों में भरे पानी से वो आग बुझा रहे हैं।
राजा ने आग लगने की घटना का दिन और समय स्मरण कर लिया और कुछ दिन बाद इस घटना कि सच्चाई जाननें के लिए एक दूत को जगन्नाथ मंदिर भेजा। जगन्नाथ मंदिर के आस-पास के लोगों से पूछने के बाद इस घटना कि पुष्टि हो गई कि उसी दिन और समय पर मंदिर में आग लगी थी, जिसे बुझा दिया गया था। जब बिर सिंह को इस घटना की सच्चाई का पता चला तो उन्हें अपने व्यवहार पर ग्लानी हुई और संत कबीर दास जी में उनका विश्वास और भी दृढ़ हो गया।
एक बार संत कबीर से मिलने एक सज्जन आए। उन्होंने बताया कि “मेरा मेरी पत्नी के राज रोज विवाद होता है, इस कारण मैं बहुत परेशान रहता हूं। मेरी यह परेशानी कैसे दूर हो सकती है?”
कुछ देर तक संत कबीर चुप रहे और फिर उन्होंने अपनी पत्नी को आवाज लगाकर कहा कि “लालटेन जलाकर लाओ।” पत्नी ने ऐसा ही किया। वह आदमी सोचने लगा कि दोपहर के समय कबीरजी ने लालटेन क्यों जलवाई है? कुछ देर बाद कबीर ने पत्नी को आवाज देकर कहा कि खाने के लिए कुछ मीठा दे जाना। कुछ देर बाद उनकी पत्नी मीठे के बजाय नमकीन देकर चली गई।
कबीर ने उस व्यक्ति से पूछा - “क्या तुम्हें तुम्हारी परेशानी का हल मिला?”
उस व्यक्ति ने कहा - “नहीं, मेरी तो कुछ समझ में नहीं आया।”
कबीर ने कहा कि “जब मैंने पत्नी से लालटेन मंगवाई तो वो ये बोल सकती थी कि दोपहर में लालटेन की क्या जरूरत है? लेकिन उसने ऐसा नहीं कहा। उसने सोचा कि किसी जरूरी काम के लिए ही लालटेन मंगवाई होगी और जब मैंने मीठा मंगवाया तो मेरी पत्नी नमकीन देकर चली गई, हो सकता है घर में कुछ मीठा न हो, ये सोचकर मैं चुप रहा।”
कबीर ने उस व्यक्ति से कहा “यही दांपत्य जीवन की सफलता का रहस्य है। पति-पत्नी के बीच तालमेल होना बहुत जरूरी है। दोनों को एक-दूसरे की बातें समझनी चाहिए। तभी वैवाहिक जीवन खुशहाल रह सकता है।”
संत कबीर ने इस तरह उस व्यक्ति को सुखी वैवाहिक जीवन का सूत्र दिया।