फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को उत्तर प्रदेश के गोरहा का पुरवा में हुआ था। वह मल्लाह समुदाय (मछुआरा) से थीं। वह गरीबी और प्रतिकूल परिस्थितियों में पली-बढ़ी, जहां ऊंची जातियों द्वारा उन पर बार-बार हमला किया गया और उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया, जिसके कारण वह सामाजिक मानदंडों के खिलाफ विद्रोह के रास्ते पर चल पड़ी और एक डाकू बन गई, जो अपने साथ हुए अन्याय का बदला लेने के लिए आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो गयीं।
फूलन का परिवार गोबर के उपले इकट्ठा करके और चना, सूरजमुखी और बाजरा उगाकर जीवनयापन करता रहा। फूलन की शादी ग्यारह साल की उम्र में एक गाय के बदले कर दी गई थी। उसने कई वर्षों तक उसके साथ दुष्कर्म किया, लेकिन किसी तरह वह उसके चंगुल से भागने में सफल रही और एक डकैत समूह में शामिल हो गई और समूह की नेता बन गई।
पतन के बाद फूलन देवी पुनः उठ खड़ी हुईं। जब वह अपने पति से भागकर घर वापस आई, तो उसके चचेरे भाई ने उस पर चोरी का आरोप लगाया और उसके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं थी। उन्होंने चंबल के बीहड़ों में शरण ली, सावधानीपूर्वक प्रशिक्षण लिया और 1979 में एक डकैत के रूप में अपने जीवन की शुरुआत की। उन्होंने विक्रम मल्लाह के साथ एक गिरोह बनाया और उन्होंने मिलकर कई हमले किए, जिसमें उनके पति को पकड़ना और पूरे गांव के सामने उसे चाकू मारना शामिल था। इसके अलावा, उन्होंने राजमार्गों पर ट्रकों और कंटेनरों को भी लूटा।
फूलन और विक्रम के साथ आए दो डकैतों ने उन्हें धोखा दिया और सोते समय फूलन का अपहरण करते हुए विक्रम की हत्या कर दी और तीन सप्ताह तक उसके साथ क्रूरतापूर्वक सामूहिक दुष्कर्म किया। कुछ सदस्यों ने उसे भागने में मदद की। उसके पश्चात्, वह बेहमई के उसी गांव में गई और उन सभी 22 लोगों को लाइन में खड़ा किया जिन्होंने उसके साथ मारपीट की और उनके सिर में गोली मार दी। आक्रोश बड़े पैमाने पर था और यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई, जहां यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री वी.पी. सिंह ने घटनाओं की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया।
फूलन के जीवन में तब बदलाव आया जब उन्होंने 1983 में अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, जिससे समाज में उनके पुन: शामिल होने का मार्ग प्रशस्त हुआ। उन्होंने केवल इस शर्त पर आत्मसमर्पण किया कि वह केवल गांधीजी और देवी दुर्गा के सामने हथियार डालेंगी।
1983 में, फूलन देवी पर 48 आपराधिक अपराधों का आरोप लगाया गया था। उनमें हत्याएं, लूट, आगजनी और फिरौती के लिए अपहरण शामिल थे। एक साल बाद 1994 में उन्हें रिहा कर दिया गया।
फूलन देवी 1996 में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के सदस्य के रूप में मिर्ज़ापुर निर्वाचन क्षेत्र से चुनी गईं। 1999 के आम चुनाव में वह फिर से चुनी गईं। फूलन देवी की 25 जुलाई 2001 को उनके दिल्ली आवास के बाहर तीन नकाबपोश शूटरों ने हत्या कर दी थी। उन पर नौ बार वार किया गया था।
फूलन देवी की जीवन कहानी संघर्ष, लचीलेपन और परिवर्तन की एक कहानी थी। डाकू से लेकर राजनीतिक नेतृत्व तक के उनके सफर ने भारत के सामाजिक ताने-बाने पर एक अमिट छाप छोड़ी। आज फूलन देवी की जयंती पर हम राष्ट्र को उस मार्ग पर ले जाने का प्रयास करें, जहां सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण एक यथार्थ हो न कि केवल कागज़ी कार्यवाई ताकि फिर से किसी फूलन को हथियार उठाने की नौबत न आये।