देश में हर साल सितंबर माह का प्रथम सप्ताह राष्ट्रीय पोषण सप्ताह के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को संतुलित आहार और सही पोषण के प्रति जागरूक करना है। आज की बिगड़ी जीवनचर्या और गलत खानपान के कारण लोगों में तरह- तरह की बीमारियां पनप रही हैं। इसमें वीगन फूड (मांसाहारी खाद्यान्न के शाकाहारी विकल्प) हमारी मदद कर सकते हैं। वनस्पतियों से बने शाकाहारी चिकन, मटन और कबाब, सोया और जई से बना दूध, वनस्पतियों से तैयार दही, पनीर और घी, वनस्पति चीज, बर्गर एवं बटर जैसे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ हमें स्वाद और पोषण की नई दुनिया में ले जा रहे हैं। जरूरत है इसके प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने की -
प्रति जागरूक करना है। देश में पहली बार राष्ट्रीय पोषण सप्ताह वर्ष 1982 में मनाया गया था। इस वर्ष राष्ट्रीय पोषक सप्ताह का मुख्य विषय 'सभी के लिए पौष्टिक आहार' है। इसमें दोराय नहीं कि स्वस्थ एवं संतुलित आहार हमारे शरीर के विभिन्न अंगों को पोषण प्रदान करता है और हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक होता है। पर्याप्त पोषण का सेवन करने वाले व्यक्ति अधिक कार्य करते हैं जबकि खराब पोषण प्रतिरक्षा में कमी, बीमारी के जोखिम को बढ़ाने, शारीरिक एवं मानसिक विकास को क्षीण करने तथा कार्यक्षमता में कमी पैदा करने का कार्य करता हैं। पोषण का उत्पादकता, आर्थिक विकास तथा राष्ट्रीय विकास पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है।
देखा जाए तो 18वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के साथ जलवायु में नकारात्मक बदलाव बढ़े हैं। इसका असर खाद्यान्न उत्पादन और उसके उपभोग के तरीकों पर पड़ा है। आज की बिगड़ी जीवनचर्या और गलत खानपान के कारण लोगों में तरह-तरह की बीमारियां पनप रही हैं। शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों ही खाद्य पदार्थ हजारों साल से हमारे पोषण और आजीविका का आधार हैं। बढ़ती आबादी के साथ पशु आधारित खाद्यान्न पर निर्भरता बढ़ती गई। इसका पारिस्थितिकी तंत्र पर गैरजरूरी दबाव पड़ा। अब यह जैव विविधता के असंतुलन के रूप में हमारे सामने है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के मुताबिक गैरशाकाहारी खाद्यान्न की बढ़ती खपत से घास के मैदान, ओजोन परत, वन, मिट्टी और समुद्री जल को बेतहाशा नुकसान पहुंचा है। ग्रीनहाउस बगैस उत्सर्जन में 14.5 प्रतिशत हिस्सेदारी पशु आधारित खाद्यान्न उत्पादन की है। दुनिया के कुल चारागाह का 15 प्रतिशत मवेशियों द्वारा उपयोग में लाया जाता है।
शाकाहारी भोजन के नए संस्करण वीगन फूड (मांसाहारी खाद्यान्न के शाकाहारी विकल्प) की ताकत को उपभोक्ता, बाजार और सरकारें समझ रही हैं। वनस्पतियों से बने शाकाहारी चिकन, मटन एवं कबाब, सोया और जई से बना दुध, वनस्पतियों से तैयार दही, पनीर एवं घी, वनस्पति चीज, बर्गर एवं बटर जैसे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ हमें स्वाद की नई दुनिया में ले जा रहे हैं। वीगन फूड एक तरह का शाकाहारी भोजन ही है। आबादी का एक बड़ा अनुपात मांस-मछली का सेवन नहीं करता, लेकिन अंडे एवं डेरी उत्पाद अर्थात पशुओं से प्राप्त दुग्ध खाद्य पदार्थों का सेवन करता है। वीगन फूड में मांस-मछली के साथ दुग्ध उत्पादों का विकल्प भी मिलता है। एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक वनस्पतियों पर आधारित खाद्य पदार्थों की मांग 20 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रही है। मांसाहार के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किए जा रहे वीगन फूड का बाजार अकेले भारत में 2030 तक 6,824 करोड़ रुपये का होगा।
आज जंक फूड शहर के साथ ग्रामीण इलाकों में भी बच्चों और युवाओं में स्वास्थ्य जनित समस्याएं पैद कर रहे हैं। गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा, कोर्नफ्लार, रागी, मैदा, मीठी मकई के दाने, कुट्टू, चना दाल से बने उत्पाद पशु आधारित खाद्यान्न का विकल्प हैं। सोया, जई, बादाम से तैयार दुग्ध और डेरी उत्पाद खाद्य शृंखला में असरदार उपस्थिति बना रहे हैं। आवश्यकता है पौधों से तैयार होने वाले वीगन फूड के सर्टिफिकेशन को लेकर जागरूकता लाने की। भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) 2021 में वीगन फूड के लिए अलग लोगो (निशान) जारी कर चुका है। वीगन फूड के हर पैकेट में इस लोगो को प्रिंट करना अनिवार्य है। यह अंग्रेजी का वी अक्षर (बीच में पत्ती की आकृति) होता है जिसे हरे रंग में चिह्नित किया गया है। वीगन फूड को प्रसंस्करण और सर्टिफिकेशन कार्यक्रम से जोड़कर कुपोषण की जंग को आसान बनाया जा सकता है। FSSAI द्वारा संचालित सर्टिफिकेशन कार्यक्रम में चावल और दूध में बाहर से पोषक तत्व मिलाए जाते हैं। भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है। यहां महज कुछ दूरी पर भाषा और खानपान के तरीके बदल जाते हैं। जिसके लिए एक कहावत बड़ी ही प्रसिद्ध है - 'कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी' इसके लिए जरूरी है कि खानपान की आदतें क्षेत्र विशेष की जलवायु के अनुकूल हों। यदि ऐसा करने में हम सफल हुए तो स्वाद के नए विकल्प वीगन फूड हमारे जायके और सेहत के साथ धरती को भी सुंदर बनाएंगे।