कोरोना महामारी ने हमारा जीवन तो असत व्यस्त किया ही मगर साथ मे एक नई दिक्कत को भी जन्म दिया ओर वो हे मोबाईल या टीवी से ज्यादा लगाव । खासकर बच्चों को इस दोरान ज्यादा समस्या का सामना करना पड़ा क्युकी बच्चों का बाहर निकलना बंद हो गया ओर घर की चार दीवारी मे ही उन्हे अपने मनोरंजन का साधन ढूँढना पड़ा । इसे मे बच्चों के साथी बने टीवी ओर मोबाईल मे गेम्स , मगर इसी साथी ने एक नई बीमारी को भी जन्म दिया “ वर्चुअल ऑटिज़म “।
आखिर क्या हे वर्चुअल ऑटिज़म :
वर्चुअल ऑटिज़म मे बच्चे शुरुआती तोर पर तो सही होते हे पर स्क्रीन समय के बड़ने के कारण उन्मे ऑटिज़म के कुछ लक्षण दिखने लगते हे जेसे आँख मिला कर बात न करना, स्क्रीन मे सुनी हुई बातों बिना समझे बड़बड़ाना, मोबाईल या टीवी न मिलने पर जरूरत से ज्यादा गुस्सा करना, अपनी अलग दुनिया मे अकेले समय बिताना इत्यादि । लेकिन समय पर अगर इसका समाधान न किया जाए तो यह एक बड़ी परेशानी बन सकता हे ।
ऑटिज़म एवं वर्चुअल ऑटिज़म मे अंतर
ऑटिज़म एक तांत्रिका संबंधित बीमारी हे, जो जेनेटिक या मस्तिष्क मे विकार से उत्पन्न होती हे इसलिए इसकी कोई दवाई नहीं हे । इससे ग्रसित बच्चों को समाज मे घुलने मिलने मे आम लोगों की तरह बाते करने मे यहा तक की रोज के काम करने मे भी दिक्कत आती हे । 1 साल के उम्र तक बच्चे अगर आँख न मिलाए ओर बार बार पुकारने पर भी कोई हरकत न करे तो यह ऑटिज़म के शुरुआती लक्षण हे ।
वही वर्चुअल ऑटिज़म मे बच्चों मे यह लक्षण जरूरत से ज्यादा टीवी मोबाईल या कंप्युटर के सामने समय व्यतीत करने से उत्पन्न होते हे । इसमे बच्चे इलेक्ट्रॉनिक दुनिया को असली मानने लगते हे ओर बाहर की दुनिया से कटे कटे रहने लगते हे । अगर बच्चे का स्क्रीन समय एक घंटे से ज्यादा हो ओर उन्मे यह लक्षण हो तो यह वर्चुअल ऑटिज़म के लक्षण हे ।
ऑटिज़म का कोई इलाज तो नहीं हे पर थेरेपीस के जरिए इसे बच्चों की सहायता की जा सकती हे पर वर्चुअल ऑटिज़म मे माता पिता को सही समय पर हस्तक्षेप करना जरूरी हे पर बच्चों के खेलने कूदने पर नहीं बल्कि घर मे बेथकर इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स के इस्तेमाल पर ।
महामारी के दोरान बढ़े वर्चुअल ऑटिज़म के केस :
महामारी के दोरान हम एसी डिजिटल दुनिया मे घुसते चले गए जिसका असर अब दिखाई दे रहा हे, सकारात्मक प्रभाव यह रहा की डिजिटल भारत की शुरुआत हो गई ऑफिस से लेकर स्कूल्स ट्यूशन सब अनलाइन हो गए पर कहते हे न किसी भी चीज़ की अती हमेशा नुकसान दायक होती हे । एसा नहीं हे की केवल बच्चों पर इसका असर हुआ उम्र चाहे कोई भी हो ज्यादा स्क्रीन समय का असर सब पर पड़ता हे , पर बच्चों का दिमाग अभी विकास की तरफ बढ़ रहा होता हे इसलिए उनपर असर जल्दी दिखाई देता हे । खासकर 2 साल से 5 साल के बच्चों मे जिनमे भाषा की समझ अभी उतनी विकसित नहीं होती ।
क्या करे क्या न करे ?