हैप्पी नहीं, शुभ होते हैं भारतीय त्यौहार – Indian festivals are not happy but auspicious

समाज में त्यौहार ऐसे संस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रम होते हैं जो लोगों को कलात्मक अभिव्यक्ति, संगीत, भोजन और परंपराओं के विभिन्न रूपों का उत्सव मनाने और उनका आनंद लेने के लिए एक साथ लाते हैं। अभी त्यौहारों का समय है। राखी मनाई जा चुकी है, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भी उत्साह से मनाई गई है। गणेश चतुर्थी के साथ दस दिनो गणेशोत्सव मनाने की तैयारियां जोरों पर है, नवरात्र भी पूरे देश में मनाया जाएगा। सबसे बड़े त्यौहार दीपावली का इंतजार सभी को रहता है। भारत को त्यौहारों का देश कहा जाता है और यही हमारी सांस्कृतिक एकता के प्रतीक हैं।

त्यौहार किसी समुदाय, क्षेत्र या देश की सांस्कृतिक पहचान में निहित होते हैं तथा उसकी परंपराओं और विरासत को संरक्षित और बढ़ावा देने का काम करते हैं। हम भारतवासी अपने सभी त्यौहार सदियों से मनाते आ रहे हैं। त्यौहारों पर एक दूसरे को शुभकामना प्रेषित करने की परंपरा भी सदियों पुरानी है और हम भारतीय यह कार्य या तो हिंदी में या अपनी क्षेत्रीय भाषा में करते आए हैं। शुभकामना यानी शुभ होने की कामना करना और इसी कामना के साथ शुभकामना देते समय शुभ होली, शुभ दीपावाली, शुभ दशहरा या त्यौहार के नाम के साथ शुभकामना कहा जाता था। लेकिन देखने में आ रहा है कि हमारे विशुद्ध भारतीय त्यौहार आधुनिकता के अतिक्रमण से ग्रसित हो रहे हैं। शुभ दीपावली कब हैप्पी दीवाली में बदल गया किसी को खबर तक नहीं हुई।

भाषा का पड़ता है असर - Language has an impact

किसी भी राष्ट्र को स्वतंत्र पहचान के साथ एक विशिष्ट भाषा भी जुड़ी होती है जो राष्ट्रीय एकता का मूलाधार होती है। भाषा एक राष्ट्र की जीवन शैली, आचार विचार, सामाजिक-धार्मिक प्रवृत्तियों, सांस्कृतिक एकता तथा देशवासियों की चित्तवृत्तियों का परिचायक होती है। और एक बात जब आप शुभ कहते हैं तो यह एक लोक मंगल कामना से भरा भाव होता है और हैप्पी याने खुशी एक नितांत निजी भाव है। अंग्रेजी में शुभ का समानार्थी शब्द और वैपावली की उत्सवी उल्लास की भावना से सराबऔर समानार्थी शब्द खोजने में आपके पसीने छूट जाएंगे। दीपावली निजी न होकर लौक मंगल का पर्व है। तो यहां शुभ दीपावली कहना ही उचित है, न कि हैप्पी दीपावली।

जब हम शुभ की बात करेंगे तो हैप्पी तो बिना कहे ही हो जाएंगे। भारतीयता का भाव हमारे स्वाभिमान का प्रतीक है और यह प्रतीक एक एक शब्द को जोड़कर गढ़ा जाता है। दीपावली के इस महापर्व पर यह संकल्प लेना जरूरी है कि हम निजता से परे जाकर लोकमंगल की बात करेंगे। भगवान श्रीराम लोक मंगल के अधिष्ठाता हैं और हम उनके वंशज पूरे विश्व का शुभ चाहते हैं, इसलिए बार बार, हर बार दीपावली शुभ ही कहना ही उचित है।