1892 में अंग्रेजी हुकूमत ने अमेरिकी उपनिवेश का चार सौ साला जश्न लंदन में बड़े स्तर पर मनाया। दुनिया भर के नामचीन और हुनरमंद लोग इसमें आमंत्रित किए गए। हिंदुस्तान से भी कुछ लोग बुलाए गए। इनमें एक कारीगर अब्दुल्ला को बिजनौर के नगीना से भी बुलाया गया।
लंदन में आयोजित समारोह में उनके बनाए गए लकड़ी के सामान को वहां पर सजाया भी गया। माना जाता है कि नगीना इससे पहले के दौर में ही पूरी दुनिया में लकड़ी के सामान के लिए प्रसिद्ध हो चुका था। आजादी के बाद काम कुछ धीमा पड़ा, तो 1970 में अब्दुल रशीद नाम के कारीगर ने प्रशिक्षण देना शुरू किया। उसके बाद नए लोग जुड़ने लगे और नगीना की चमक पूरी दुनिया में बिखरने लगी।
पहले के दौर में इसमें आबनूस की लकड़ी का प्रयोग होता था, तो अब आम एवं शीशम की लकड़ी काम में आती है। इनमें मशीनों के साथ हाथों की कारीगरी का ज्यादा योगदान है। लकड़ी को अलग-अलग आकार देकर उससे रसोई में काम आने वाले डिब्बे या फिर सुंदर कंगन जैसे अनेक उत्पाद यहां बनाए जाते हैं। गहनों की चमक तो ऐसी है कि उसके सामने आपको सोना और चांदी भी फीका लगे।
नगीना काफ्ट डेवलपमेंट सोसाइटी के अध्यक्ष इरशाद मुल्तानी का दावा है कि यह कारोबार सालाना 400 करोड़ रुपये के आसपास का है। वैसे तो नगीना की गली-गली में कारीगर लकड़ी पर अपने हुनर को दिखाते मिल जाते हैं, पर कुल 1,200 के आसपास यूनिटें हैं और पांच हजार से ज्यादा कारीगर काम करते है। इसमें कुछ इकाईयां बड़ी हैं।
चीन ने यहां भी कड़ी टक्कर दी है, लेकिन वहां काम मशीनों से होता है और नगीना के उत्पादों में हाथ की कारीगरी का हुनर जुड़ा होता है। यहीं वजह है कि हर कारोबार में हमारा देश चीन से आगे है।
दुनिया के सौ से ज्यादा देशों में दो सौ से ज्यादा प्रकार के सामान निर्यात किए जाते हैं। जर्मनी और न्यूयॉर्क में होने वाली बड़ी प्रदर्शनी के साथ-साथ एक दर्जन से ज्यादा विदेशी आयोजनों में यहां से जुल्फिकार आलम शामिल हो चुके हैं। वह बताते हैं कि एक दशक पहले लकड़ी के गहनों की दुनिया में खूब मांग थी। इन दिनों लकड़ी के फ्रेम पर बने गेम ज्यादा पसंद किए जा रहे हैं। पिछले कुछ समय में लकड़ी के डिब्बाबंद अस्थि कलशों की दुनिया में बहुत मांग रही है।
पिछले कुछ समय में सरकार ने भी प्रोत्साहन के लिए कड़े प्रयास किए हैं। चीन ने यहां भी कड़ी टक्कर दी है, लेकिन वहां काम मशीनों से होता है और नगीना के उत्पादों में हाथ की कारीगरी का हुनर जुड़ा होता है। यही वजह है कि इस कारोबार में हमारा देश चीन से आगे है। कई कारीगरों को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार भी मिल चुके हैं। यह बात और है कि दुनिया भर में धूम मचाने वाले उत्पाद अपने देश में उतनी शोहरत नहीं पा सके हैं।