World Homeopathy Day 2023 : क्यों मनाया जाता है विश्व होम्योपैथी दिवस ?

भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में तरह - तरह की बीमारियों को ठीक करने के लिए इलाज की विभिन्न पद्धतियों को अपनाया जाता है। एलोपैथी और आयुर्वेद की तरह होम्योपैथी भी एक चिकित्सा पद्धति है। आज विश्व के तमाम देशों में मरीज़ एलोपैथी दवाओं के साइड इफेक्ट्स से काफी परेशान हैं जिसकी वजह से उन्होंने आयुर्वेद और होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति को अपनाया है। होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति की बात की जाए तो आज विश्व के लगभग 100 देशों में मरीज़ों का इलाज होम्योपैथी दवाओं से किया जा रहा है। होम्योपैथी दवाओं का सेवन करके बड़े से बड़े रोग को जड़ से मिटाया जा सकता है।

होम्योपैथी का इतिहास | History of Homeopathy

होम्योपैथी इलाज के दौरान किसी भी तरह की कोई सर्जरी नहीं की जाती। होम्योपैथी पद्धति में इस बात को तव्वजो दी जाती है कि प्रत्येक व्यक्ति अलग है। प्रत्येक व्यक्ति में बीमारी के लक्षण भी अलग हो सकते हैं। इसलिए उसी के आधार पर इलाज किया जाना चाहिए। जर्मन चिकित्सक और केमिस्ट सैमुअल हैनीमैन (1755-1843) द्वारा व्यापक रूप से सफलता पाने के बाद 19वीं शताब्दी में होम्योपैथी को पहली बार प्रमुखता मिली। लेकिन इसकी उत्पत्ति 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व की है, जब 'चिकित्सा के जनक' हिप्पोक्रेट्स ने अपनी दवा की पेटी में होम्योपैथी उपचार पेश किया था।

विश्व होम्योपैथी दिवस मनाने का उद्देश्य | Motive of Celebrating World Homeopathy Day

हर साल 10 अप्रैल को विश्व होम्योपैथी दिवस मनाया जाता है। होम्योपैथी के जनक माने जाने वाले जर्मन मूल के ईसाई फ्रेडरिक सैमुअल हैनीमैन का जन्म 10 अप्रैल को ही हुआ था। इस साल उनकी 268 वी जयन्ती है। विश्व होम्योपैथी दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य इन दवाओं से होने वाले उपचार और दवाओं के बारे में विश्व के तमाम लोगों को जागरुक करना है। इसका एक अन्य उद्देश्य इससे सम्बंधित चुनौतियों को समझने के साथ ही आगामी भविष्य के लिए नई रणनीतियों को निर्मित कर उन्हें अपनाना भी है।

सभी के लिए सुरक्षित है होम्योपैथी | Homeopathy is Safe for Everyone

होम्योपैथी दवा का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है। यह एक बेहद सुरक्षित चिकित्स्कीय तरीका है। यह बच्चों, बूढ़ों, स्तनपान कराने वाली महिलाओं और गर्भधारी महिलाओं सभी के लिए सुरक्षित है। चिकित्सकों के अनुसार, रोग लक्षण एवं औषधि लक्षण में जितनी ही अधिक समानता होती है, रोगी के स्वस्थ होने की संभावना भी उतनी अधिक बढ़ जाती है।