पहलगाम में बढ़ते तनाव के बीच, मोदी सरकार ने एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए जातिगत जनगणना कराने का निर्णय लिया है, जिसे कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब देश की निगाहें भारत-पाकिस्तान के बीच संभावित सैन्य कार्रवाई पर टिकी हैं, और इसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।
विपक्ष, विशेषकर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रहे थे, और उन्होंने इसे एक महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा भी बनाया था। अब, सरकार के इस फैसले ने सभी को चौंका दिया है। जातिगत जनगणना के आंकड़े अत्यंत संवेदनशील माने जाते हैं, जिनका व्यापक सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव होता है। ये आंकड़े खाद्य सुरक्षा, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम और निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं की आधारशिला होते हैं। सरकारों के साथ-साथ उद्योग और अनुसंधान संस्थान भी इन आंकड़ों का उपयोग करते हैं। गौरतलब है कि जून 2024 तक, भारत उन 44 देशों में शामिल था जिन्होंने इस दशक में जनगणना नहीं कराई थी।
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने 20 जुलाई 2021 को लोकसभा में दिए एक जवाब में स्पष्ट किया था कि सरकार अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा किसी अन्य जाति की गणना कराने का आदेश नहीं दे रही है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि भारत में उपलब्ध जनगणना आंकड़े देश में विभिन्न जातियों की जनसंख्या का स्पष्ट चित्र प्रस्तुत नहीं करते हैं। जनगणना में अनुसूचित जाति और जनजाति की जनसंख्या का विवरण तो मिलता है, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में आने वाली विभिन्न जातियों की संख्या का अनुमान लगाना मुश्किल है। सरकार का यह नया कदम सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, और इसके परिणामों पर सबकी निगाहें टिकी रहेंगी।∎