अरविन्द केजरीवाल देश के किसी भी कोने में क्यों जाएं वे दिल्ली की शिक्षा नीति की का बखान जरूर करते हैं।
2022, गुजरात चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के एक सरकारी स्कूल में पहुँचे थे, पीएम मोदी क्लास के बच्चों के बीच बैठे हुए नजर आए थे, दिल्ली के तत्कालीन उपमुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने एक्स पर भी लिखा कि “ये हमें जेल भेजेंगे, हम इन्हें स्कूल भेजेंगे”
तीन जनवरी को पीएम मोदी ने दिल्ली की एक रैली में कहा, “दिल्ली में जो लोग राज्य सरकार में पिछले दस साल में हैं, उन्होंने यहां की स्कूली शिक्षा व्यवस्था को बहुत नुक़सान पहुंचाया है। दिल्ली में ऐसी सरकार बैठी है, जिसको दिल्ली के बच्चों के भविष्य की परवाह नहीं है। जो पैसे समग्र शिक्षा अभियान के तहत भारत सरकार ने दिए उसका आधा भी पढ़ाई के लिए ख़र्च नहीं कर पाए।”
रविवार को काँग्रेस नेता अजय माकन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा “अगर आपका (अरविंद केजरीवाल) शिक्षा का मॉडल इतना अच्छा है तो बच्चे सरकारी स्कूल छोड़कर प्राइवेट स्कूल में क्यों जा रहे हैं?”
दिल्ली की शिक्षा नीति
केजरीवाल लगभग 10 साल से दिल्ली के मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान हैं, 2015 के चुनाव में जनता से उनका वादा था की अगर वे सत्ता में आय तो शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति कर देंगे, सत्ता में आने के बाद दिल्ली में उनकी सरकार बनी और वे दिल्ली के स्कूल व शिक्षा पर 20-25 प्रतिशत व्यय करते हैं, जो अन्य राज्यों से अधिक हैं। लेकिन वे अन्य मामले जैसे सकल राज्य घरेलू उत्पाद यानी ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट में व्यय अन्य राज्यों से काम है।
शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2021-22 में दिल्ली ने अपनी जीएसडीपी का 1.63 प्रतिशत ख़र्च किया। जीएसडीपी की तुलना में शिक्षा पर ख़र्च करने के मामले में दिल्ली सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सूची में सबसे नीचे है। अगर राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा पर कुल ख़र्च की बात करें तो भारत ने 2021-22 में अपनी जीडीपी का 4.12 प्रतिशत ख़र्च किया था।
दिल्ली की शिक्षा नीति पर विशेषज्ञों की राय
दिल्ली की शिक्षा नीति पर जेएस राजपूत कहते हैं, “अरविंद केजरीवाल ने जब यह घोषणा की थी कि वह स्कूलों पर ध्यान देंगे तब मेरे अंदर एक आशा जगी थी। 500 नए स्कूल बनाने की बात कही गई थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सिर्फ़ कुछ स्कूल में कमरे और लैब बने हैं। हज़ारों बच्चों को कक्षा 9 में रोक दिया जाता है और फिर ये बच्चे ओपन स्कूल से पढ़ाई करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। जब तक इस तरह की प्रवृत्तियां चलेंगी तब तक शिक्षा का सुधार नहीं हो सकता है।”
दिल्ली यूनिवर्सिटी के शिक्षा संकाय में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर लतिका गुप्ता दिल्ली के शिक्षा मॉडल पर सवाल खड़ा करती हैं।
लतिका गुप्ता का कहना है, “दिल्ली में मुट्ठी भर स्कूली इमारतों का निर्माण हुआ है। आप शालीमार बाग, कल्याण विहार और नेहरू विहार जैसे इलाक़ों में जाइए, यहां के स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर के स्तर पर ख़ास काम नहीं हुआ है। नो डिटेंशन पॉलिसी हटाई तो आठवीं के बच्चे फेल होने लगे। 9वीं और 11वीं में फेल होने वाले बच्चों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है लेकिन इन आंकड़ों का सरकार प्रचार नहीं करती है।”
लतिका गुप्ता बताती हैं, “सरकार इस तरह के कैरिकुलम को बच्चों के पक्ष में बताती है लेकिन शिक्षकों पर पड़ने वाले ग़ैर-शैक्षणिक कामों के बोझ पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। मेरे पढ़ाए गए स्टूडेंट कई बार इसको लेकर अपनी परेशानियां बताते हैं। अलग-अलग कैरिकुलम के इवेंट होते हैं और टीचरों पर ग़ैर-शैक्षणिक गतिविधियों का भार बढ़ता है।”