काठमांडू के प्रदूषण के बीच से निकलती हुई राजशाही और संघवाद का विवाद बढ़ रहा है, ऐसे तो नेपाल में कोई गर्मागर्मी नहीं दिखाई पड़ती, लेकिन वहाँ लोगों से बात करने पर मालूम होता है वे इस संघवाद से निराश है।
ऐसे में कुछ लोग संघवाद से निराश हैं और वे राजशाही के समर्थन में आंदोलन कर रही हैं, वहीं कुछ लोग राजशाही की वापसी भी नहीं चाहते।
मंगलवार आठ अप्रैल को राजशाही के समर्थन में रैली के लिए राजधानी के बल्खू इलाक़े में हाथ में नेपाली झंडा और पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की तस्वीर लिए लोगों की भीड़ जमा हुई।
सड़क के एक तरफ़ प्रदर्शनकारियों की भीड़ थी, तो दूसरी तरफ़ ट्रैफ़िक सामान्य रफ़्तार से गुज़र रहा था। राजशाही ख़त्म कर साल 2008 में लोकतांत्रिक गणराज्य बने नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाने और राजशाही की वापसी के लिए आवाज़ें उठीं हैं।
क्यों चाहिए जनता को राजशाही?
नेपाल के कई लोगों को लगता है कि राजनीतिक अस्थिरता की वजह से देश का विकास नहीं हो पाया और इसी वजह से उनमें निराशा है।
पेशे से सीए और नेपाली छात्र कांग्रेस के नेता दिवाकर पांडे कहते हैं, “नेपाल के लोगों में एक निराशा है। लोकतंत्र की स्थापना के वक़्त विकास और सुधार के जो वादे किए गए थे, आम लोगों को लगता है वो पूरे नहीं हुए। आज नेपाल आर्थिक संकट से जूझ रहा है। सरकार में लोगों का विश्वास कम हो रहा है।”
दिवाकर पांडे को लगता है कि देश में राजशाही के समर्थन में जो आंदोलन खड़ा हो रहा है, उसकी वजह यही निराशा है। पांडे कहते हैं, “देश में राजशाही समर्थकों की तादाद बहुत कम है। लेकिन आम लोग त्रस्त हैं। इसी वजह से हमें प्रदर्शन देखने को मिल रहे हैं।”
हालांकि दिवाकर ज़ोर देकर कहते हैं, “सरकार से नाराज़गी का मतलब राजशाही का समर्थन नहीं है। जो लोग राजसत्ता की वापसी चाहते हैं, उनकी संख्या बेहद सीमित है।”
एक दशक से काम समय में 14 सरकारें!
अभी तक नेपाल के स्थापना को 17 वर्ष ही हुए है, इसमें नेपाल के संविधान को लागू हुए 10 साल के लगभग ही हुए है, इन कुछ सालों में ही नेपाल में 14 सरकारें या चुकी हैं, हैरानी की बात है कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई है।
इस विवरण से साफ जाहीर है देश में राजनीतिक स्थिरता की कमी है। काठमांडू के प्रदूषण के बीच से निकलती हुई राजशाही और संघवाद का विवाद बढ़ रहा है, ऐसे तो नेपाल में कोई गर्मागर्मी नहीं दिखाई पड़ती, लेकिन वहाँ लोगों से बात करने पर मालूम होता है वे इस संघवाद से निराश है।
अभी केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने पिछले साल जुलाई में सत्ता संभाली थी। ओली अभी शेर बहादुर देऊबा की नेपाली कांग्रेस के साथ गठबंधन में सरकार चला रहे हैं। उनसे पहले प्रचंड क़रीब दो साल तक प्रधानमंत्री रहे।⏹