ग्रहों की स्थिति को लेकर छिड़ी बहस, जिसके बाद बना दिल्ली का जंतर मंतर

ग्रहों की स्थिति को लेकर छिड़ी बहस, जिसके बाद बना दिल्ली का जंतर मंतर
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दिल्ली का दिल कहे जाने वाले क्नॉट प्लेस के बीचों बीच स्थित है जंतर मंतर, जिसे स्थापत्य कला का अद्भुद नमूना माना जाता है। यह स्थल दिल्ली के मशहूर पर्यटन स्थलों में शुमार है। यह एक ऐसी वेधशाला है जिसमें 13 खगोलीय यंत्रों को लगाया गया है।


सन 1724 में महाराजा जयसिंघ द्वितीय ने इस भव्य स्थान का निर्माण करवाया था। मुगल साम्राज्य के शासक मोहम्मद शाह के शाशन काल के दौरान हिन्दू और मुस्लिम ग्रह शास्त्रियों में ग्रहों की स्थिति को लेकर बहस छिड़ गई थी, इसे खत्म करने के लिए ही महाराजा जयसिंघ द्वितीय ने इसका निर्माण करवाया था। उन्होंने जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में भी तरह-तरह की वेधशालाओं का निर्माण किया था। आइए जानते हैं दिल्ली के जंतर मंतर के बारें में।


जंतर मंतर पर ग्रहों की स्थिति
यहाँ ग्रहों की स्थिति को नापने के लिए अनेक यंत्र लगाए गए हैं। यह यंत्र सूर्य की मदद से ग्रहों के साथ-साथ समय की भी जानकारी देते हैं।


इतने यंत्र हैं मौजूद
वैसे तो यहाँ अनेक तरह के यंत्र हैं। इनमें से कुछ यंत्रों के नाम इस प्रकार हैं – जय प्रकासा, कपाला, नदीवालय, सम्राट यंत्र, राम यंत्र तथा रसीवालाया है।


जान लीजिए जंतर मंतर का अर्थ
जंतर मंतर शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ होता है यंत्र और मंत्र। इसका मतलब गणना होता है लेकिन यदि एक साथ इन दोनों शब्दों को मिलाकर देखें तो इसका अर्थ होगा गणना यंत्र।


इस यंत्र को सबसे छोटे और लम्बे दिनों के हिसाब से किया गया तैयार
मिश्र यंत्र को दक्षिण – पश्चिम में दो स्तम्भों को साल के सबसे छोटे और सबसे लम्बें दिनों को निर्धारित करने के लिए तैयार किया गया था।


दिसंबर में ढक जाता है स्तम्भ
दिसंबर में एक स्तम्भ अपनी छाया से दूसरे स्तम्भ को पूरी तरह से ढक लेता है। ऐसा तब होता है जब जून में कोई छाया नहीं पड़ती।

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