गंगा नदी: उद्गम स्त्रोत से समुद्र तक

Kumar Harsh
गंगा नदी: उद्गम स्त्रोत से समुद्र तक

गंगा नदी सिर्फ एक नदी नहीं बल्कि भारत की संस्कृति, आस्था और लाइफलाइन है। यह उत्तराखंड के हिमालय से निकलकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से गुजरते हुए बंगाल की खाड़ी में समा जाती है। इस पूरे सफर में यह कई शहरों और धार्मिक स्थलों को समृद्ध करती है, लाखों लोगों को पानी देती है और भारतीय सभ्यता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनती है।

गंगा की कुल लंबाई 2525 किलोमीटर है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका नाम रास्ते में कई बार बदलता है? और कैसे यह अलग-अलग राज्यों में लोगों की लाइफस्टाइल को प्रभावित करती है? आइए समझते हैं किस तरह गंगा नदी हिमालय की गोद से निकाल कर करोड़ों लोगों को जीवन दान देती हुई सागर से जा मिलती है।

गंगा का जन्म: हिमालय से शुरुआत

गंगा का उद्गम उत्तराखंड के गंगोत्री हिमनद से होता है। यहाँ से निकलने वाली जलधारा को भागीरथी कहा जाता है। यह नदी पहाड़ों से होते हुए केदारनाथ और बद्रीनाथ क्षेत्र की मंदाकिनी और अलकनंदा नदियों के साथ मिलती है। जब यह देवप्रयाग पहुँचती है, तो यहाँ भागीरथी और अलकनंदा का संगम होता है और इसी के बाद इसे गंगा के नाम से जाना जाता। देवप्रयाग अपने धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ यह संगम स्थल लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।

गंगा नदी: उद्गम स्त्रोत से समुद्र तक

भागीरथी नदी गंगोत्री हिमनद से निकलती है और बहुत तेज़ प्रवाह वाली नदी है, जिसे गंगा की मूलधारा माना जाता है। दूसरी ओर, अलकनंदा नदी बद्रीनाथ क्षेत्र से निकलती है और मंदाकिनी, धौलीगंगा, पिंडर और नंदाकिनी जैसी कई सहायक नदियों को समेटे हुए देवप्रयाग तक पहुँचती है। जब ये दोनों नदियाँ देवप्रयाग में मिलती हैं, तो उनका रंग और प्रवाह अलग-अलग दिखाई देता है— भागीरथी का पानी अधिक साफ और नीला होता है, जबकि अलकनंदा का पानी थोड़ा मटमैला और अधिक गहरा होता है। इन दोनों नदियों के मिलन के बाद जो जलधारा आगे बढ़ती है, उसे गंगा के नाम से जाना जाता है।

देवप्रयाग को हिंदू धर्म में पाँच प्रमुख प्रयागों में से एक माना जाता है और इसे तीर्थराज (तीर्थों का राजा) भी कहा जाता है। यह वही स्थान है जहाँ राजा भगीरथ ने कठोर तपस्या करके गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किया था। मान्यता है कि गंगा के स्वर्ग से धरती पर आने की कथा यहीं से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि जब गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुईं, तो उनका वेग अत्यधिक तेज़ था, जिसे शिवजी ने अपनी जटाओं में समाहित कर नियंत्रित किया और फिर धीरे-धीरे धरती पर प्रवाहित किया। इसीलिए गंगा को "भागीरथी" भी कहा जाता है, क्योंकि यह राजा भगीरथ की तपस्या का फल है।

देवप्रयाग से बहने वाला गंगा जल बहुत शुद्ध माना जाता है। यहाँ का पानी कई महीनों तक बिना खराब हुए सुरक्षित रह सकता है, इसलिए श्रद्धालु यहाँ से गंगाजल भरकर अपने घरों में ले जाते हैं और पूजा-पाठ में इसका उपयोग करते हैं।

देवप्रयाग से हरिद्वार: पहली बार मैदानों में प्रवेश

देवभूमि से निकलकर 310 किलोमीटर का पहाड़ी सफर तय करने के बाद गंगा अपने अगले बड़े पड़ाव हरिद्वार की ओर बढ़ती है। यह वह स्थान है जहाँ गंगा पहली बार पहाड़ों से उतरकर मैदानों में प्रवेश करती है। हरिद्वार में गंगा सबसे शुद्ध और पवित्र मानी जाती है, इसलिए यहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए आते हैं।

हरिद्वार में स्थित हर की पौड़ी पर गंगा आरती का दृश्य अविस्मरणीय होता है। हज़ारों दीयों की रोशनी, मंत्रों का जाप और गंगा की लहरों पर तैरते फूल एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव देते हैं।

सहारनपुर और बिजनौर: खेती और जलविद्युत की रीढ़

हरिद्वार के बाद गंगा सहारनपुर जिले से होकर गुजरती है, जहाँ इसका पानी मुख्य रूप से सिंचाई के लिए उपयोग होता है। सहारनपुर में गंगा की कई नहरें फैली हुई हैं, जो इस क्षेत्र के खेतों को सींचने का काम करती हैं। खासकर, यहाँ की गन्ने और गेहूँ की खेती पूरी तरह गंगा पर निर्भर करती है।

इसके बाद यह बिजनौर पहुँचती है, जहाँ स्थित गंगा बैराज जलविद्युत उत्पादन और सिंचाई के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। बिजनौर से आगे यह फर्रुखाबाद, नरोरा और कानपुर की ओर बढ़ती है।

कानपुर: औद्योगिक शहर में गंगा की चुनौती

कानपुर, जो गंगा के किनारे बसा एक प्रमुख औद्योगिक शहर है, यहाँ पर नदी को सबसे ज्यादा प्रदूषण झेलना पड़ता है। चमड़ा उद्योग, मिलें और फैक्ट्रियाँ गंगा में कचरा डालती हैं, जिससे इसका पानी यहाँ काफी प्रदूषित हो जाता है। हालाँकि, सरकार ने नमामि गंगे परियोजना के तहत इसे साफ करने की कई योजनाएँ चलाई हैं।

देश की समझदार जनता गंगा को माँ और देवी का दर्जा देते हुए यह कतई नहीं सोचते की क्या उन्हें गंगा(देवी) को गंदा करना चाहिए? या ये भी यही की जब अगले शहर, जिले, राज्य में यह देवी प्रवेश करेगी तो उस शहर के लोग इससे अपनी प्यास बुझा पाएंगे? औद्योगिक सफलता अगर देश की लाइफलाइन को बर्बाद करने से प्राप्त हो रही हो तो हमें इसपर पुनः विचार करने की जरूरत है और नए रास्ते ढूँढने की जरूरत है।

कानपुर से आगे यह फतेहपुर होते हुए प्रयागराज (इलाहाबाद) पहुँचती है, जहाँ इसका भव्य संगम होता है।

प्रयागराज: त्रिवेणी संगम और कुंभ मेले की पवित्र भूमि

प्रयागराज वह स्थान है जहाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदी का मिलन होता है, जिसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है। यह हिंदू धर्म में सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। कहा जाता है कि यहाँ स्नान करने से जीवन के सारे पाप मिट जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

यहाँ हर 12 साल में कुंभ मेला आयोजित होता है, जो दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला होता है। करोड़ों श्रद्धालु यहाँ आकर डुबकी लगाते हैं और गंगा माँ का आशीर्वाद लेते हैं।

वाराणसी: मोक्ष की नगरी और गंगा आरती का अद्भुत नज़ारा

प्रयागराज के बाद गंगा वाराणसी पहुँचती है, जिसे "मोक्ष की नगरी" कहा जाता है। यहाँ कहा जाता है कि जिसने काशी में अंतिम सांस ली, उसे सीधे मोक्ष मिल जाता है। वाराणसी में गंगा के किनारे 80 से अधिक घाट हैं, जिनमें दशाश्वमेध घाट और मणिकर्णिका घाट सबसे प्रसिद्ध हैं।

यहाँ हर शाम होने वाली गंगा आरती एक अविस्मरणीय दृश्य होता है। हजारों लोग गंगा किनारे इकट्ठा होकर मंत्रों के जाप, घंटों की ध्वनि और दीयों की रोशनी में डूब जाते हैं।

बिहार और झारखंड: सहायक नदियों का मिलन

गंगा जब बिहार में प्रवेश करती है, तो इसमें कई सहायक नदियाँ मिलती हैं, जिनमें गंडक, कोसी और घाघरा प्रमुख हैं। कोसी को "बिहार का शोक" कहा जाता है क्योंकि यह हर साल भयंकर बाढ़ लाती है। पटना और भागलपुर जैसे बड़े शहर गंगा के किनारे बसे हैं, जहाँ यह व्यापार और यातायात के लिए भी उपयोग होती है।

झारखंड में गंगा का प्रवाह कम दूरी तक रहता है, लेकिन यहाँ भी इसका सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व बना रहता है।

पश्चिम बंगाल: गंगा का विभाजन और समुद्र में विलय

पश्चिम बंगाल में गंगा फरक्का बैराज के पास दो धाराओं में बँट जाती है। एक धारा हुगली नदी के रूप में कोलकाता और हावड़ा से होकर गुजरती है, जबकि दूसरी धारा बांग्लादेश की ओर चली जाती है।

कोलकाता में गंगा व्यापार, यातायात और जल आपूर्ति का मुख्य स्रोत है। यहाँ हुगली नदी के किनारे कई ऐतिहासिक स्थल और पुल स्थित हैं, जैसे हावड़ा ब्रिज।

आखिरकार, गंगा पश्चिम बंगाल में सुंदरबन के दलदली क्षेत्रों से होती हुई गंगा सागर द्वीप तक पहुँचती है। यहाँ इसका संगम बंगाल की खाड़ी में होता है। गंगा सागर में हर साल मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। कहा जाता है कि यहाँ स्नान करने से जीवन के सारे पाप धुल जाते हैं।

भारत देश का दृश्य एक धार्मिक दृश्य है जहां विभिन्न धर्मों और आस्थाओं के लोग रहते हैं, मुख्यतः भारत में हिन्दू धर्म का फैलाव है, इसी कारण यहाँ के पुरातन शहरों और नदियों के नाम भी हिन्दू धर्म और संस्कृति से जुड़े हुए हैं, जिसमें हमने आज गंगा नदी की बात की, जो कि भारत में सबसे पवित्र जल स्त्रोत में से एक है, विदेशियों और अन्य धर्म के लोगों के लिए यह महज एक नदी हो सकती है, लेकिन हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगों के लिए यह एक पवित्र नदी है जिसका जन्म भागीरथ द्वारा किया गया है ऐसा माना जाता है, हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार इस नदी में स्नान करने से मनुष्य के पाप धूल जाते हैं। मगर आधुनिक भारतीय अब कुछ अलग कर रहा है वह इसमें डुबकी लगा अपने पाप धोना तो चाहता है, मगर साथ ही अपना कूड़ा इस नदी में भी छोड़ता चलता है, जिससे अगले घाट, संगम, शहर या राज्य के लोगों को परेशानी झेलनी पड़ती है, मसलन यह समस्या हर अगले घाट, संगम, शहर,या राज्य के लोगों की वजह से लोग झेल रहे हैं। इस सब के बावजूद गंगा अभी भी पवित्र है, लोगों की आस्था और धर्मग्रंथों में। यह विडंबन है शायद कि देश के अधिकतर लोगों के साथ की उनका हिन्दू धर्म बेहद पवित्र है मगर उसके लोगों की आस्था समय के साथ खोटी हो गई है। जड़ हो चुके मानव मस्तिष्क की आस्था भी जड़ हो जाती है, भारत में नदियों को बचाने के लिए कई योजनाएं चलाई तो जाती है मगर केवल फ़ाइलों में, शायद वे अफसर पानी से खौफ कहते हों!

बहरहाल आज हमने जाना कि कैसे गंगा नदी का जन्म हुआ, स्थान स्थान पर क्या नाम बदले कौन सी नदियों सहायक हैं, कौन सी इससे अलग होकर अपना स्वरूप लेती हैं और अंत में सागर में विलय।