भारत के अलावा किन देशों में है वक़्फ़ बोर्ड?

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वक़्फ़ बोर्ड: पिछले कई दिनों से भारत की संसद में वक़्फ़ बिल को लेकर घमासान मचा हुआ है, जिसमें कई लोग विरोध और समर्थन में हैं, बीते दो दशकों में इतना घमासान वक़्फ़ बिल को लेकर भारतीय संसद में नहीं हुआ है।

 केंद्र सरकार की इस पहल का विरोध करने वालों ने जहां ये दलील दी कि ये मुसलमानों की संपत्ति पर सरकार का ग़ैर ज़रूरी दख़ल है तो कुछ लोगों ने इसकी तारीफ़ करते हुए कहा कि अगर उसने ऐसा नहीं किया होता तो “हम अपनी सारी ज़मीन वक़्फ़ बोर्डों के हाथों गंवा चुके होते।”

इस तरह की बातों से इससे इतर, कि यह सभी सही या गलत है, यह एक नरेटिव तैयार करती हैं, इस नैरेटिव के समर्थन में आए भाजपा के लोकसभा सदस्य संबित पात्रा के बयान ने आम तौर पर प्रतिक्रिया न देने वाले क़ानूनी और इस्लामी इतिहास के विशेषज्ञों सहित कई लोगों को हैरान कर दिया।

लेकिन भारत संविधान के अनुसार धर्मनिरपेक्ष देश है, फिर कानून विशेषज्ञ इसकी मुसहलीं देशों से क्यों कर रहे हैं और पात्रा ने क्या कहा? इस्लामिक देशों में वक़्फ़ है? है तो उसकी वास्तविकता क्या है? आइए जानते हैं…

इस्लामी देशों से तुलना पर क़ानूनी विशेषज्ञों को आपत्ति क्यों?

पटना में चाणक्य विधि विश्वविद्यालय के कुलपति और क़ानूनी मामलों के विशेषज्ञ विद्वान फ़ैज़ान मुस्तफ़ा और सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता शाहरुख़ आलम जैसे क़ानूनी विशेषज्ञों ने भारतीय वक़्फ़ की तुलना इस्लामी देशों से करने पर बुनियादी तौर पर आपत्ति जताई है।

मुस्तफ़ा ने बीबीसी हिंदी से कहा, “हमें अपनी तुलना इस्लामी देशों से बिल्कुल नहीं करनी चाहिए क्योंकि हम कोई धर्म तंत्र नहीं हैं। इस्लाम उनका राजकीय धर्म है। इस्लामी राष्ट्र में धार्मिक मामलों के लिए मंत्रालय होता है। हमारे पास अल्पसंख्यक मामलों के लिए मंत्रालय है और हम अपने संविधान से संचालित होते हैं।”

शाहरुख़ आलम ने बीबीसी हिंदी को बताया, “हर देश की अपनी व्यवस्था होती है। इस्लामी राष्ट्र से तुलना वाज़िब नहीं है। जब भी कोई बात भारतीय मुसलमानों से जुड़ी होती है, तो कहा जाता है कि दूसरे देशों में ऐसा नहीं होता है। इसकी जगह, तुलना भारत में जो हो रहा है उससे होनी चाहिए। जैसे भारत में क़ानूनी व्यवस्था क्या है? इस्लामी देशों से हमारा क्या लेना-देना है?”

वह उदाहरण देते हुए कहती हैं कि इस्लामी देशों में सड़कों पर नमाज़ पढ़ने की अनुमति नहीं है लेकिन भारत में सड़कों पर धार्मिक जुलूस निकालने की अनुमति है। उनकी क़ानूनी प्रणाली की हमारी प्रणाली से कैसे तुलना की जा सकती है?

इस्लामी देशों में वक़्फ़ की वास्तविकता क्या है?

जानकारी के मुताबिक हर देश में एक वक़्फ़ होता है, हालांकि इसके नाम हर देश में अलग हो सकता है, इसे औक़ाफ़, फ़ाउंडेशन, एंडोमेंट सहित कई अन्य नामों से भी जाना जाता है।

तुर्की में फ़ाउंडेशन का एक महानिदेशालय है। यह 1924 से इस्लामी क़ानून के अनुसार वक़्फ़ का प्रबंधन और ऑडिट करता है। यह ओटोमन साम्राज्य के समय से आज तक काम कर रहा है।

मिस्र में औक़ाफ़ मंत्रालय है। यह ट्रस्ट के क़ानून जैसा है। इसमें ट्रस्टी मस्जिद होती है। यह ज़मीन, बाज़ार और अस्पताल सहित अन्य संपत्तियों का प्रबंधन करती है।

मुहम्मद अली (1805-1848) के शासन के दौरान औकाफ़ का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था।

इसी तरह से सूडान, सीरिया, जॉर्डन, ट्यूनीशिया और इराक़ जैसे देशों में वक़्फ़ विभाग धार्मिक मामलों के मंत्रालय के तहत काम करते हैं।

दरअसल इराक़ में सुन्नी बंदोबस्ती कार्यालय, शिया बंदोबस्ती कार्यालय और गैर-मुस्लिम समुदायों का बंदोबस्ती कार्यालय है।

वहीं सऊदी अरब, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात, बांग्लादेश, मलेशिया, इंडोनेशिया जैसे कई अन्य इस्लामी देशों में धार्मिक मामलों के मंत्रालय के तहत बंदोबस्ती विभाग (जैसे इस्लामी धार्मिक बंदोबस्ती, यरुशलम) या वक़्फ़ हैं।

 “वक़्फ़ की शुरुआत बहर-ए-मुल्ला में हुई थी। यह एक दान था जिसे पैग़म्बर मोहम्मद के चचेरे भाई और साथी उस्मान इब्न अफ़्फ़ान ने बनाया था।”– प्रोफ़ेसर असरफ़ कडक्कल

संबित पात्रा ने क्या कहा?

संबित पात्रा ने संसद में कहा, “मैं छाती ठोक कर कहना चाहता हूं कि पूरी दुनिया में अगर मुसलमान कहीं सुरक्षित और संरक्षित है तो वह देश भारत है। इस्लामिक देशों में वक़्फ़ की क्या स्थिति है? क्या इस्लामी देशों में वक़्फ़ संपत्तियां मौजूद हैं?”

उन्होंने आगे कहा, “मैं उन इस्लामिक देशों के नाम पढ़ूंगा जहां वक़्फ़ के नाम का वजूद नहीं है। तुर्की में नहीं है, लीबिया में नहीं है, मिस्र में नहीं है, सूडान में नहीं है, लेबनान में नहीं है, सीरिया में नहीं है, जॉर्डन में नहीं है, ट्यूनीशिया में नहीं है, इराक़ में नहीं है। भारत में वक़्फ़ बोर्ड है। वक़्फ़ संपत्ति को क़ानूनी सुरक्षा दी गई है।”

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