भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने शुक्रवार को कहा कि देश के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान को इस वर्ष के अंत तक लांच किया जाएगा। इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
बेंगलुरु में आयोजित स्पेस एक्सपो में इसरो प्रमुख ने बताया, 'गगनयान, लांच होने के लिए तैयार है। हम इसे साल के आखिर तक लांच करने का प्रयास कर रहे हैं।' इससे पहले गत बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गगनयान प्रोग्राम का विस्तार करने के क्रम में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की पहली इकाई को मंजूरी दी।
गगनयान मिशन को दिसंबर, 2018 में स्वीकृति मिली थी। इसका उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को धरती की निचली कक्षा में भेजना और दीर्घकालिक मानव अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रम की नींव रखना है। चंद्रयान-4 मिशन के बारे में सोमनाथ ने कहा कि इसरो ने इस मिशन के लिए इंजीनियरिंग कार्य पूरा कर लिया है।
उन्होंने कहा, 'मंत्रिमंडल ने अभी चंद्रयान-4 के लिए अपनी मंजूरी की घोषणा की है। आने वाले कुछ महीनों में इसके बारे में जानकारी मिलेगी।' बता दें कि चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारत अब अंतरिक्ष क्षेत्र में और बड़ी छलांग लगाने की तैयारी में है। गत 18 सितंबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चंद्रयान-4, अंतरिक्ष स्टेशन और वीनस आर्बिटर मिशन को मंजूरी दी थी। अंतरिक्ष स्टेशन दिसंबर, 2028 तक स्थापित किया जाएगा।
Space-X के संस्थापक एलन मस्क ने हाल ही में कहा है कि उनकी कंपनी अगले नौ वर्षों में मंगल ग्रह पर इंसान को उतारने में सफल हो जाएगी। मस्क का कहना है कि उनका लक्ष्य 20 वर्षों में मंगल पर एक ऐसी रिहायशी बस्ती बसाना है, जो अपनी आवश्यकताओं को स्वयं पूरा करने में सक्षम होगी। उल्लेखनीय है कि स्पेस-एक्स का जन्म ही मंगल पर मानव कालोनी बसाने के उद्देश्य से ही हुआ है और मस्क का दृष्टिकोण इस दिशा में स्पष्ट और दूरदर्शी है।
मंगल और पृथ्वी में पहली नजर में कई समानताएं दिखती हैं, जो इसे पृथ्वी सरीखा ग्रह बनाती हैं। मंगल का घूर्णन काल लगभग 24.6 घंटे है, जो पृथ्वी के दिन रात चक्र के करीब है। मंगल की सतह पर पहाड़, घाटियां और मैदान हैं, जो पृथ्वी की भौगोलिक संरचनाओं से मिलते-जुलते हैं। पानी की उपस्थिति के संकेत भी मिलते हैं। लेकिन कुछ भिन्नताएं भी हैं, जो मंगल को मानव बस्तियों में तब्दील करने में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
मंगल पर न तो वायु पर्याप्त है और न ही सूर्य का प्रकाश। वहां का अधिकतम तापमान अंटार्कटिका के न्यूनतम तापमान के लगभग बराबर है। हानिकारक सौर किरणें मंगल की सतह पर सीधे टकराती हैं। इसका वायुमंडल, जो 95 प्रतिशत कार्बन डाइआक्साइड से बना है, हमारे लिए दमघोंटू है।
विज्ञानियों का मानना है कि मंगल के वातावरण को पृथ्वी जैसा बनाना संभव है। मंगल को बदलने और उसे पृथ्वी जैसा बनाने के विचार को विज्ञानियों नै 'टेराफार्मेशन' नाम दिया है। भले ही यह विचार रोमांचक लगता हो, लेकिन टेराफार्मिंग आसान नहीं है। इसके साथ कई समस्याएं जुड़ी हुई हैं। मंगल को आबाद करने के लिए दो चीजें महत्वपूर्ण हैं, वायुमंडल का निर्माण तथा उसे स्थिर व गर्म रखना।
इससे जुड़ा एक सुझाव यह है कि अगर मंगल पर परमाणु विस्फोट किए जाएं तो इसके बातावरण को रहने लायक बनाया जा सकता है। परमाणु हथियारों के विस्फोट से कार्बन डाइआक्साइड निकलेगी, जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा होगा और मंगल ग्रह की ठंडी जलवायु गर्म हो जाएगी। मस्क का भी यही मानना है। लेकिन इस तकनीक में काफी पैसा खर्च होगा और साथ ही इसके कई खतरे भी हैं।
विस्फोट से मंगल का वातावरण बहुत ठंडा हो सकता है जिससे वहां का तापमान गर्म होने के बजाय और ठंडा हो सकता है। विस्फोट से राख और धूल की चादर मंगल को ढक लेगी जिससे वहाँ के औसत तापमान में गिरावट आ जाएगी और वहां नाभिकीय शीत (न्यूक्लियर विंटर) शुरू हो सकता है। इससे मंगल ग्रह के वातावरण और उसकी सतह पर विकिरण फैलने का खतरा भी है जो हमारे भविष्य की इकलौती उम्मीद यानी मंगल को तबाह कर सकता है। लिहाजा, मंगल की टेराफार्मिंग टेढ़ी खीर है और कोई भी कदम उठाने से पहले हमें हजार बार सेचना होगा।