राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में हिंदी का जिक्र नहीं
1964-66 के राष्ट्रीय शिक्षा आयोग जिसे कोठारी आयोग के तौर पर जाना जाता है, ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पारित 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी इसे शामिल किया गया। राजीव गांधी सरकार द्वारा पारित 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति और 2020 की नवीनतम NEP ने भी इस फॉर्म्युले को बरकरार रखा। हालांकि, 2020 की NEP इसके कार्यान्वयन में अधिक लचीलापन प्रदान करती है। पिछली शिक्षा नीतियों के उलट, 2020 की NEP में हिंदी का कोई जिक्र नहीं है। नीति में कहा गया है, ‘बच्चों द्वारा सीखी जाने वाली तीन भाषाएं राज्यों, क्षेत्रों और निश्चित रूप से स्वयं छात्रों की पसंद होंगी, जब तक कि तीन भाषाओं में से कम से कम दो भारत की देसी भाषाएं हों।’
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत ‘त्रि-भाषा’ फॉर्म्युले पर सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने इस फॉर्म्युले को हिंदी थोपने की कोशिश बताते हुए केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने दावा किया है कि हिंदी और संस्कृत ने उत्तर भारत की 25 से ज्यादा देसी भाषाओं को ‘निगल’ लिया। हिंदी विरोध तो वैसे भी तमिलनाडु की राजनीति का एक बड़ा तत्व है लेकिन भाषा फॉर्म्युले को लेकर केंद्र सरकार का रुख भी बदला है। नतीजा टकराव के रूप में दिख रहा है। आखिर क्या है ये टकराव, आइए समझते हैं।
त्रि-भाषा फॉर्म्युला लागू करना राज्यों की जिम्मेदारी है। 2004 में यूपीए सरकार के दौरान तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने संसद में कहा था, ‘इस मामले में केंद्र सरकार की भूमिका सिर्फ सलाह देने की है। इसे लागू करना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है।’ 2014 में मोदी सरकार के दौरान भी तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने भी यही कहा था कि पाठ्यक्रम तय करना राज्यों का काम है। लेकिन अब मोदी सरकार ने समग्र शिक्षा के फंड को NEP लागू करने से जोड़ दिया है। इससे राज्यों पर अपनी शिक्षा नीतियां बदलने का दबाव है।
राधाकृष्णन आयोग ने पहली बार दिया था त्रि-भाषा फॉर्म्युला
राधाकृष्णन आयोग ने हिंदी (हिंदुस्तानी) को भारत की संघीय भाषा बनाने की हिमायत की। आयोग ने केंद्र सरकार के कामकाज के लिए हिंदी और राज्यों में क्षेत्रीय भाषाओं के इस्तेमाल की सिफारिश की थी। इसी आयोग ने पहली बार स्कूली शिक्षा के लिए तीन-भाषा फॉर्मूले का प्रस्ताव रखा था। आयोग ने कहा, ‘हर क्षेत्र को संघीय गतिविधियों में अपनी उचित हिस्सेदारी लेने में सक्षम बनाने के लिए, और अंतर-प्रांतीय समझ और एकजुटता को बढ़ावा देने के लिए, शिक्षित भारत को द्विभाषी बनने का मन बनाना होगा, और उच्च माध्यमिक और विश्वविद्यालय स्तर पर विद्यार्थियों को तीन भाषाएं जाननी होंगी।