एक देश, एक चुनाव की सिफारिश को मोदी सरकार की कैबिनेट ने स्वीकार कर लिया है। 'वन नेशन, वन इलेक्शन'(One Nation-One Election) को लेकर सरकार के सामने हैं बड़ी चुनौतियां, कैबिनेट से पास होना ही काफी नहीं। एक राष्ट्र-एक चुनाव की अवधारणा को हकीकत में बदलने के लिए संविधान में जो संशोधन करने की जरूरत होगी, वर्तमान हालात में उन्हें पारित कराना भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार के लिए मुश्किल होगा।
भारत में एक देश, एक चुनाव का इतिहास - History of one country, one election in India
भारत के पहले चार आम चुनावों (1951-52, 1957, 1962, 1967) के दौरान मतदाताओं ने लोकसभा चुनाव के साथ अपने राज्यों की विधानसभाओं के लिए भी वोट डाले।
बाद में नए राज्य बनने और कुछ राज्यों के पुनर्गठन के बाद यह प्रक्रिया बंद हो गई।
1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभाओं को भग किया गया। इससे लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया पूरी तरह से बंद हो गई।
1983 में चुनाव आयोग ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव कराने की व्यवस्था फिर से शुरू का सुझाव दिया।
1999 में विधि आयोग की रिपोर्ट में भी एक देश, एक चुनाव का उल्लेख किया गया।
2018 में विधि आयोग ने दोबारा एक देश, एक चुनाव का समर्थन किया।
मई, 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने बार- बार एक देश, एक चुनाव के विचार का समर्थन किया।
एक देश, एक चुनाव के समर्थकों का कहना है कि इससे देश में हर दूसरे माह कहीं न कहीं चुनाव नहीं होंगे।
उदाहरण के लिए जम्मू एवं कश्मीर में विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जा रहे है, वहीं हरियाणा के मतदाता विधानसभा चुनाव के लिए अक्टूबर में मतदान करेंगे। महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव अगले कुछ महीनों में होने वाले हैं।
आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ होते हैं।
क्या हैं एक देश-एक चुनाव पर समिति की अहम सिफारिशें - What are the important recommendations of the committee on one country, one election?
एक देश-एक चुनाव की योजना को देश में दो चरणों में लागू किया जाए। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाए। दूसरे चरण में नगरीय निकायों और पंचायतों के चुनाव कराए जाए। लेकिन इन्हें पहले चरण के सौ दिन के भीतर ही कराया जाए।
लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने के साथ ही राज्यों की विधानसभा के चुनाव कराए जाने पर विचार किया जाए।
अगर किसी विधानसभा का चुनाव अपरिहार्य कारणों से एक साथ नहीं हो पाता है तो बाद की तिथि में होगा, लेकिन कार्यकाल उसी दिन समाप्त होगा जिस दिन लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होगा।
यदि किसी राज्य की विधानसभा बीच में भंग हो जाती है, जो नया चुनाव विधानसभा के बाकी के कार्यकाल के लिए ही कराया जाए।
सभी चुनावों के लिए एक समान मतदाता सूची तैयार किया जाए। अभी लोकसभा और विधानसभा के लिए अलग और नगरीय निकाय और पंचायतों की अलग मतदाता सूची होती है। समिति ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश भी की है जिनमें से अधिकांश में राज्य विधानसभाओं के अनुमोदन की जरूरत नहीं होगी।
समान मतदाता सूची और समान मतदाता पहचान पत्र से जुड़े कुछ प्रस्तावित बदलावों के लिए कम से आधे राज्यों द्वारा अनुमोदन की जरूरत होगी।
पहली बार कब हुए थे एक साथ चुनाव - When were elections held simultaneously for the first time
देश में 1951 से 1967 के बीच एक साथ चुनाव हुए थे, लेकिन उसके बाद मध्यावधि चुनाव सहित विभिन्न कारणों से चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे। सभी चुनाव एक साथ कराने के लिए काफी प्रयास करने होंगे, जिसमें कुछ चुनावों को पहले कराना तथा कुछ को विलंबित करना शामिल है। इस वर्ष मई-जून में लोकसभा चुनाव हुए, जबकि ओडिशा,आंध्र प्रदेश,सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भी संसदीय चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव हुए। जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव प्रक्रिया अभी चल रही है, जबकि महाराष्ट्र और झारखंड में भी इस वर्ष के अंत में चुनाव होने हैं। दिल्ली और बिहार उन राज्यों में शामिल हैं जहां 2025 में चुनाव होने हैं।