भारत में बेटियों का पालन-पोषण केवल एक पारिवारिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति है। हाल ही में बेंगलुरु की एक महिला, प्रभु, ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा की, जिसमें उन्होंने बताया कि उनकी बेटी ने सड़क पर छेड़छाड़ करने वालों का साहसपूर्वक सामना किया। यह पोस्ट वायरल हो गई और पूरे देश में बेटियों के आत्मविश्वास और साहस की प्रशंसा हुई।
बेटियों का साहस: एक प्रेरणादायक उदाहरण
प्रभु ने बताया कि उनकी बेटी ने छेड़छाड़ करने वालों पर चिल्लाया और उनकी ओर दौड़ी, जिससे वे डरकर भाग गए। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि उनकी बेटी ने पूरी आस्तीन की टी-शर्ट और टखने तक की पैंट पहन रखी थी, जिससे यह स्पष्ट होता है कि महिलाओं के कपड़ों पर टिप्पणी करना अनुचित है। प्रभु ने अन्य महिलाओं से भी ऐसे मामलों में आवाज उठाने का आग्रह किया।
‘सेल्फी विद डॉटर’ अभियान: बेटियों के लिए एक आंदोलन
हरियाणा के बिबीपुर गांव के पूर्व सरपंच सुनील जगलान ने 2015 में ‘सेल्फी विद डॉटर’ अभियान शुरू किया, जिसमें उन्होंने लोगों से अपनी बेटियों के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर साझा करने का आग्रह किया। इस पहल का उद्देश्य बेटियों के महत्व को बढ़ावा देना और लैंगिक समानता के प्रति जागरूकता फैलाना था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस अभियान की सराहना की और इसे ‘मौन क्रांति’ कहा।
बेटियों का पालन-पोषण: एक सामाजिक परिवर्तन
बेंगलुरु की घटना और ‘सेल्फी विद डॉटर’ जैसे अभियानों से स्पष्ट है कि भारत में बेटियों का पालन-पोषण अब एक सामाजिक आंदोलन बन चुका है। यह न केवल पारिवारिक स्तर पर, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी बदलाव ला रहा है, जहां बेटियों को समान अधिकार, शिक्षा और सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं।
इस तरह की कहानियाँ हमें यह सिखाती हैं कि बेटियों का पालन-पोषण केवल एक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का एक माध्यम है।