सावधान…कहीं फीकी ना पड़ जाए इन रत्नों की चमक

सावधान...कहीं फीकी ना पड़ जाए इन रत्नों की चमक
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ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक वस्तु का अपना एक विशेष महत्त्व है। आपके घर में मौजूद प्रत्येक वस्तु आपके भाग्य से जुड़ी है। आगामी भविष्य में आपका जीवन कैसा होने वाला है यह आपसे जुड़ी हर वस्तु पर निर्भर करता है। ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक वस्तु को धारण करने का एक निश्चित शुभ समय होता है। इस शुभ समय में धारण की जाने वाली किसी भी वस्तु का फल उसी उचित समय में प्राप्त होगा। अन्यथा वह वस्तु आपके जीवन में नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करती है।
आज के इस लेख में हम बात कर रहें है रत्नों की। रत्नों की चमक जहाँ एक और आपके जीवन को नई रोशनी से भर सकती है वहीं दूसरी और आपकी जगमाती ज़िंदगी को अंधरे के गर्त में भी धकेल सकती है। जी हाँ! यदि आप इन रत्नों को सही समय पर धारण नहीं करते तो आपको अपने जीवन में तमाम उलझनों का सामना करना पड़ सकता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार इन रत्नों को मूल रूप से ग्रह शान्ति के लिए धारण किया जाता है। लेकिन इन तमाम रत्नों को उचित नियमों एवं विधि के अनुसार धारण करना अत्यंत आवश्यक है। अन्यथा इन रत्नों का आपके जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ सकता है।
उचित समय पर धारण करें रत्न
ज्योतिष शास्त्र में रत्नों का अपना विशेष महत्व होता है। इन रत्नों को उचित समय पर धारण करने पर उचित फल की प्राप्ति होती है। रत्न कई प्रकार के होते हैं जैसे – हीरा, मूंगा, पन्ना, पुखराज, सुनेला इत्यादि। हर रत्न किसी विशेष समस्या से निजात पाने या किसी खास मकसद से ही धारण किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति को कोई भी विशेष रत्न धारण करने से पहले किसी अच्छे ज्योतिष से ज़रूर सलाह लेनी चाहिए।
रत्न धारण करने के लिए ये तिथियाँ है खास
कोई भी रत्न धारण करने से पहले इस बात का ध्यान रखें कि उस दिन 4, 9 और 14 तारीख ना हो। इसके साथ ही संक्रांति और अमावस के दिन भी इन रत्नों को धारण करना अशुभ माना जाता है। आपको इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जब आप कोई भी रत्न धारण करें उस दिन आपकी राशि में चन्द्रमा 4, 9, 12 वे स्थान में ना हो। रतन हमेशा दोपहर 12 बजे से पहले सूर्य की ओर मुख करके पहनना चाहिए। किसी भी रत्न को कृष्ण पक्ष में धारण करना शुभ नहीं माना जाता अपितु रत्नो को हमेशा किसी भी माह के शुक्ल पक्ष में ही धारण करें। रत्नो को पहनने से पहले विधि विधान से उनकी पूजा करने के बाद और ईश्वर का ध्यान करने के बाद ही उन्हें धारण करना चाहिए।

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