सुप्रीम कोर्ट 23 अप्रैल को हेट क्राइम के पीड़ितों को एक समान मुआवजा देने की याचिका पर सुनवाई करेगा। यह सुनवाई उन पीड़ितों के लिए होगी जो नफरत के कारण अपराध (hate crime) का शिकार हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2023 में इस मामले में केंद्र सरकार, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (UT) से जवाब मांगा था। यह जवाब ‘इंडियन मुस्लिम फॉर प्रोग्रेस एंड रिफॉर्म्स’ (IMPAR) नामक संस्था की याचिका पर मांगा गया था। देश में पिछले कुछ समय में हेट क्राइम की घटनाएं बढ़ने के दावे किए गए हैं और उस नजरिए से सर्वोच्च अदालत में होने वाली यह सुनवाई बहुत ही अहम मानी जा रही है।
तहसीन पूनावाला मामले में दिया था निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से यह भी बताने को कहा था कि उन्होंने हेट क्राइम के पीड़ितों के परिवारों को मदद देने के लिए क्या कदम उठाए हैं। यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में तहसीन पूनावाला मामले में दिया था। मॉब लिंचिंग का मतलब है, किसी घटना को लेकर भीड़ की ओर से किसी की पीट-पीट कर हत्या कर देना।
मुआवजे में एकरूपता की है मांग
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर 23 अप्रैल के लिए जारी की गई लिस्ट के अनुसार, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी। अप्रैल 2023 में पिछली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया था कि कुछ राज्यों ने 2018 के फैसले के बाद योजनाएं तो बनाई हैं, लेकिन उनमें एकरूपता नहीं है। इसका मतलब है कि हर राज्य में मुआवजा देने के नियम अलग-अलग हैं। वकील ने यह भी कहा कि कई राज्यों ने अभी तक ऐसी कोई योजना बनाई ही नहीं है।
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता चाहता है कि हेट क्राइम और मॉब लिंचिंग के पीड़ितों को मुआवजा देने में एकरूपता लाई जाए। याचिकाकर्ता का कहना है कि अलग-अलग राज्य जो मुआवजा दे रहे हैं, वह भेदभावपूर्ण है। यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है। अनुच्छेद 14 कानून के सामने समानता की बात करता है, अनुच्छेद 15 धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव को रोकता है, और अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा की बात करता है।
भेदभाव वाले रवैए पर उठा है सवाल
याचिका में राज्यों द्वारा हेट क्राइम और मॉब लिंचिंग के पीड़ितों को मुआवजा देने के मामले में अपनाए जा रहे “मनमाने, भेदभावपूर्ण और अनुचित रवैये” पर सवाल उठाया गया है। याचिका में यह भी कहा गया है कि पीड़ितों को “बहुत कम” मुआवजा दिया जा रहा है।
धर्म देखकर मुआवजा देने का दावा
याचिका में यह भी दावा किया गया है कि ‘हेट क्राइम/मॉब लिंचिंग के पीड़ितों को मुआवजा देने का चलन पीड़ितों के धार्मिक जुड़ाव के आधार पर तय किया जाता है। कुछ मामलों में, जहां पीड़ित अन्य धार्मिक संप्रदायों से हैं, उनकी क्षति के लिए भारी मुआवजा दिया जाता है, जबकि अन्य मामलों में जहां पीड़ित अल्पसंख्यक समुदाय से हैं, मुआवजा बहुत कम होता है।’ इसका मतलब है कि अगर पीड़ित किसी ज्यादा आबादी वाले धर्म का है तो उसे ज्यादा मुआवजा मिलता है, और अगर वह किसी कम जनसंख्या वाले धर्म का है तो उसे कम मुआवजा मिलता है। यह भेदभाव गलत है और इसे दूर किया जाना चाहिए।∎