बड़े बच्चों को भी बता सकते हैं ये लक्षण, आइए जानते हैं क्या है संक्रमण

बड़े बच्चों को भी बता सकते हैं ये लक्षण, आइए जानते हैं क्या है संक्रमण
Image source: Hindustan

हर दिन किसी नए वायरस की आहट के चलते ह पुरानी बीमारी भी बच्चों के माता-पिता की चिंता बढ़ा देती है।
ऐसी ही एक समस्या है एचएफएमडी यानी हैंड, फुट, माउथ डिजीज एचएफएमडी के संक्रमण के कारण इन दिनों
अस्पतालों में बच्चों में बुखार के साथ हाथ, पैर व मुंह में छाले के मामले सामने आ रहे हैं।

एचएफएमडी, एक संक्रामक रोग है। इसका असर 5 साल से कम उम्र के बच्चों में ही ज्यादा दिखता है। पर, हाल
में 11 से 16 साल के बच्चों में भी इसके लक्षण दिखे हैं। बड़े बच्चों में इसके लक्षण हल्के होते हैं। अलग बात यह
है कि इस बार कुछ बच्चों में एक बार ठीक हो जाने के बाद दोबारा ऐसा हो रहा है। जिस पर अभी विचार करना
होगा। यह संक्रामक रोग है, पर गंभीर बीमारी नहीं है।

कानपुर में शारदा क्लिनिक से जुड़े बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सौरभ त्रिवेदी कहते हैं, ‘एचएफएमडी में बच्चों को 100 से
102 डिग्री तक बुखार रह सकता है। साथ ही हाथ, पैर व मुंह में दाने व छाले हो सकते हैं। कुछ बच्चों को बुखार
नहीं होता, केवल दाने व मुंह में छाले हो जाते हैं। पहले भी एचएफएमडी के मामले सामने आते थे। पर, इस बार
इसमें बढ़ोतरी हुई है। इसका एक कारण बीते दिनों में कोरोना और मंकीपॉक्स वायरस के डर और असर से बच्चों
की रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना हो सकता है। बीते लंबे समय तक बच्चे घर में नों रहे हैं, जिससे उनकी र
रोग प्रतिरोध क्षमता कमजोर हुई है। किसी भी अन्य वायरस के तरह इसके वायरस कमजोर इम्यूनिटी वालों को
ज्यादा प्रभावित करते हैं।‘

मानसून के समय में हर साल एचएफएमडी, चिकनपॉक्स के मामले सामने आते हैं। दिक्कत तब होती है, जब
बच्चों के मुंह में छाले हो जाते हैं। इनमें तेज दर्द होता है और कुछ भी खाने में दिक्कत होने लगती है। अगर
बच्चों को खाना खाने या पानी पीने में दिक्कत हो रही है, तो माता पिता को सतर्क हो जाना चाहिए। ज्यादातर
मामलों में हफ्ते भर में आराम आ जाता है। बहुत अधिक गंभीर मामलों में ही वायरस का असर दिमाग पर हो
सकता है। पर, यह बहुत कम ही होता है। इसमें आईसोलेशन की नहीं, एहतियात की जरूरत होती है।

क्या है कारण?

एचएफएमडी कॉक्ससैकी वायरस ए16 के कारण होने वाली समस्या है। यह वायरस एंटरोवायरस परिवार का सदस्य
है। यह वायरस संक्रमित व्यक्ति के शरीर में मौजूद तरल पदार्थमें हो सकते हैं, जैसे-लार, नाक, बलगम, मल ना
आदि । संक्रमित व्यक्ति के छींकने, खांसने से लों निकले तत्वों के संपर्क में आने या छूने से यह आ दूसरों को भी
हो जाता है।

बच्चे ही होते हैं इसकी जद में

छोटे बच्चों में एचएफएमडी विकसित होने का ह जोखिम अधिक होता है। डॉ. सौरभ कहते हैं कि संक्रमण फैलने का
मुख्य कारण होती हैं, भीड़-भाड़ वाली जगह, जहां बड़े और बच्चे सभी पास-पास होते हैं। रोग पैदा करने वाले
विषाणुओं के संपर्क में आने के बाद, शरीर में इनके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है । यही कारण है
कि ये समस्या छोटे बच्चों को अधिक होती है। हालांकि, वयस्क और बड़े बच्चे भी इसके शिकार हो सकते हैं,
खासकर अगर उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है।

कैसे पहचानें ?

बुखार (100 से 102 डिग्री), सिर दर्द, उत्तेजना महसूस होना, गले में खराश ।

जीभ, मसूड़ों और गालों में दर्द व छाले जैसे घाव होना ।

नितंब, तलवे व हथेलियों पर दानें निकलना।

त्वचा के आधार पर ये दानें, लाल, सफेद व भूरी छोटी फुंसियों के रूप में हो सकते हैं।

भूख में कमी आना।

इस समस्या की पहचान शारीरिक जांच के आधार पर की जाती है। एचएफएमडी के दानें पहले हाथ व पैर में
निकलते हैं। जबकि, चिकन-पॉक्स के दानें चेहरे से शुरू होते हैं और पंजे व हाथ पर नहीं होते। यह दानें मंकी पॉक्स
से भी खासे अलग नजर आते हैं।

अस्पताल कब ले जाएं

जब बच्चा घाव व छालों के कारण मुंह से कुछ खा या पी नहीं पा रहा हो।

जब माता-पिता बच्चे को घर में संभाल नपा रहे हों।

बच्चा बीमार व कमजोर लगे। चेहरे या त्वचा का रंग अलग दिख रहा हो।

48 घंटे से अधिक समय तक लगातार

तेज बुखार बना रहे।

जब न्यूरोलॉजिकल जटिलताओं का संदेह हो, जैसे सुस्ती, उनींदापन बढ़ना या दौरे पड़ना

हृदय संबंधी जटिलताओं का संदेह होना, जैसे निम्न रक्तचाप, धड़कनों का बहुत कम या ज्यादा होना।

माता-पिता क्या करें, क्या नहीं

घबराएं नहीं। बच्चे के बुखार व दूसरे लक्षणों पर नजर रखें। डॉक्टर के संपर्क में रहें।

बच्चे को ठीक होने तक स्कूल न भेजें। इससे दूसरे बच्चों का भी बचाव होगा।

बच्चों को तरल चीजें दें। तेल व मसालेदार चीजें न खाने दें, ये घाव बढ़ा सकती हैं। घर की बनी चीजें ही खिलाएं।

1 बच्चों के बर्तन व कपड़ों को साफ रखें। संक्रमित बच्चे के खिलौनों, बर्तन व ब्रश आदि को दूसरे बच्चों से शेयर
न करें।

छोटे बच्चों के हाथों को साफ रखें। बच्चों को खुले में रखी चीजों को छूने के बाद हाथ धोने के लिए प्रेरित करें।
सभी खांसते व छींकते समय रुमाल आदि का इस्तेमाल करें।

अपने आस-पास सफाई रखें।

अन्य बच्चों या ऐसे लोगों से दूर रहें,

जिनमें यह लक्षण दिखाई दे रहे हैं।

बच्चों को खट्टे फल, फलों का जूस,

आइसक्रीम व कस्टर्ड न खाने दें।

दानों पर साबुन का प्रयोग न करें। दानों पर आराम के लिए नीम व एलोवेरा जेल लगा सकते हैं

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