पहलगाम हमले के बाद भारत का सख्त कदम: पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि स्थगित
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भयावह आतंकवादी हमले के अगले ही दिन, भारत ने पाकिस्तान के साथ 1960 में हस्ताक्षरित सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का निर्णय लिया है।
इस हमले में 26 लोगों की जान चली गई थी और 10 अन्य घायल हुए थे।
यह फैसला बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्यॉरिटी (CCS) की एक उच्च-स्तरीय बैठक के बाद आया है।
इस महत्वपूर्ण बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और विदेश मंत्री एस जयशंकर भी उपस्थित थे।
बैठक के उपरांत, विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बुधवार देर रात एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस निर्णय की घोषणा करते हुए कहा, “1960 में हुई सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित किया जाता है। यह स्थगन तब तक जारी रहेगा, जब तक पाकिस्तान सीमा पार से आतंकवाद को समर्थन देना हमेशा के लिए बंद नहीं कर देता है।”
इस घटनाक्रम पर विभिन्न विशेषज्ञों और मीडिया आउटलेट्स की प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं।
अंग्रेजी अखबार ‘द हिन्दू’ की डिप्लोमैटिक अफेयर्स एडिटर सुहासिनी हैदर ने इस फैसले को संतुलित बताया है, यह इंगित करते हुए कि भारत ने पाकिस्तान के संबंध में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, लेकिन वे अत्यधिक प्रतिक्रियावादी नहीं हैं।
उन्होंने पाकिस्तानी मिशन के आकार को कम करने लेकिन उसे बंद न करने और सिंधु जल संधि को स्थगित करने लेकिन निरस्त न करने जैसे उदाहरण दिए।
इन कदमों के बाद, सैन्य कार्रवाई की संभावनाओं पर भी चर्चा शुरू हो गई है।
सुहासिनी हैदर ने लिखा है, “भारत ने पाकिस्तान को लेकर अहम फ़ैसले लिए हैं लेकिन ये बिल्कुल अति में नहीं हैं। जैसे भारत ने पाकिस्तानी मिशन छोटा कर दिया लेकिन बंद नहीं किया। सिंधु जल संधि को स्थगित किया है लेकिन निरस्त नहीं किया है। पाकिस्तान के लोगों के लिए सार्क वीज़ा सुविधा को बंद किया है लेकिन सभी तरह के वीज़ा नहीं।”
इन कदमों के बाद, सैन्य कार्रवाई की संभावनाओं पर भी चर्चा शुरू हो गई है।
ब्रिटिश पत्रिका ‘द इकोनॉमिस्ट’ के डिफेंस एडिटर शशांक जोशी ने संभावित सैन्य विकल्पों पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यदि भारत पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्णय लेता है, तो उसके पास कई विकल्प मौजूद हैं, जिनमें हवाई हमले, 2016 के समान विशेष सैन्य अभियान, नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम का अंत और लक्षित हत्याएं शामिल हैं।
हालांकि, उन्होंने मिसाइलों के उपयोग की संभावना को कम आंका।
शशांक जोशी ने लिखा है, “भारत अगर पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कार्रवाई का फ़ैसला करता है तो कुछ संभावित विकल्प हैं। भारत एयर स्ट्राइक कर सकता है। 2016 की तरह स्पेशल सैन्य ऑपरेशन चला सकता है। मिसाइल के इस्तेमाल से बचेगा। एलओसी पर युद्धविराम ख़त्म हो सकता है। टारगेट कर लोगों को मारने का विकल्प भी हो सकता है।”
इस बीच, सिंधु जल संधि को स्थगित करने के भारत के फैसले पर पाकिस्तान में व्यापक चर्चा हो रही है।
पाकिस्तानी नेतृत्व ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
पाकिस्तान के विदेश मंत्री और उपप्रधानमंत्री इसहाक डार ने पाकिस्तानी मीडिया से बातचीत में स्पष्ट रूप से कहा कि भारत इस तरह से एकतरफा फैसला नहीं कर सकता है।
इसहाक डार ने पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल ‘समा टीवी’ से बातचीत में कहा, “अतीत का जो हमारा अनुभव है, उससे हमें अंदाज़ा था कि भारत ऐसा कर सकता है। मैं तो तुर्की में हूँ लेकिन फिर भी पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने पहलगाम हमले की निंदा की। भारत ने सिंधु जल संधि के अलावा बाक़ी जो चार फ़ैसले किए हैं, उनका जवाब तो आसानी से मिल जाएगा।”
सिंधु जल संधि पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा, “सिंधु जल संधि को लेकर भारत पहले से अड़ा है। पानी रोकने के लिए इन्होंने कुछ वाटर रिज़र्व भी बनाए हैं। इसमें विश्व बैंक भी शामिल है और यह संधि बाध्यकारी है। आप इसमें एकतरफ़ा फ़ैसला नहीं ले सकते हैं। ऐसे में तो दुनिया में मनमानी शुरू हो जाएगी। जिसकी लाठी, उसकी भैंस वाला मामला तो नहीं चल सकता। भारत के पास कोई भी क़ानूनी जवाब नहीं है। इस मामले का जवाब पाकिस्तान का क़ानून मंत्रालय देगा।”
‘समा टीवी’ के ही एक अन्य कार्यक्रम में एक पाकिस्तानी विशेषज्ञ ने सवाल उठाया कि संधि को स्थगित करने के बाद भारत क्या कार्रवाई करेगा, और यदि कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती है तो इस स्थगन का कोई अर्थ नहीं होगा।
‘समा टीवी’ के ही शो एक पाकिस्तानी एक्सपर्ट ने कहा, “भारत ने संधि को स्थगित कर दिया लेकिन उसके बाद क्या एक्शन लेगा? मिसाल के तौर पर कोई भी एक्शन नहीं करते हैं तो फिर इसका कोई मतलब नहीं है।”
भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने ‘डॉन न्यूज़’ से कहा कि भारत सिंधु जल संधि पर एकतरफा फैसला नहीं ले सकता है और हालांकि भारत ने स्थगन का फैसला कर लिया है, लेकिन उसके पास सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी को रोकने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा मौजूद नहीं है।
उन्होंने पाकिस्तान को इस मामले में विश्व बैंक से संपर्क करने और राजनयिक संबंधों पर जवाबी कार्रवाई करने का सुझाव दिया।
अब्दुल बासित ने ‘डॉन न्यूज़’ से कहा, “सिंधु जल संधि पर भारत एकतरफ़ा फ़ैसला नहीं ले सकता है। अभी भारत ने इसे स्थगित किया है। बड़ी सच्चाई यह है कि भारत ने स्थगित करने का फ़ैसला कर लिया है लेकिन उसके पास इन्फ़्रास्ट्रक्चर नहीं है कि सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी बंद कर सके। लेकिन हमें फौरी तौर पर कुछ ठोस फ़ैसले लेने होंगे। हमें वर्ल्ड बैंक को लिखना चाहिए क्योंकि वही इसकी गारंटी देता है। राजनयिक संबंध को लेकर फ़ैसले पर जैसे को तैसे जवाब दिया जा सकता है।”
उन्होंने अतीत के अनुभवों का हवाला देते हुए धैर्य बनाए रखने की सलाह दी और अफगानिस्तान के साथ व्यापार संबंधों पर संभावित प्रभाव पर भी चिंता व्यक्त की।
अब्दुल बासित ने कहा, “जब पठानकोट हुआ था तो मैं भारत का उच्चायुक्त था। तभी उड़ी भी हुआ था। मेरा अनुभव है कि हमें पैनिक में नहीं आना है। वाघा बॉर्डर अफ़ग़ानिस्तान के लिए खुला था। इससे अफ़ग़ानिस्तान में भारत निर्यात करता था। अब देखना होगा कि क्या अफ़ग़ानिस्तान में भी भारत सामान भेजना बंद कर देगा।”
अब्दुल बासित ने यह भी कहा, “भारत पानी रोकने के लिए इन्फ़्रास्ट्रक्चर नहीं बना पाया है, इसलिए अभी कोई बड़ी चुनौती नहीं है लेकिन इसे रोकने के लिए हमें सक्रिय होना होगा। मसलन चीन भी इस मामले में हमें मदद कर सकता है। चीन से कई नदियां भारत में आती हैं तो चीन भी पानी रोकने के लिए व्यवस्था कर सकता है। मुझे लगता है कि बहुत से विकल्प मौजूद हैं। नियम आधारित व्यवस्था काम नहीं कर रही लेकिन इसके बावजूद कई विकल्प हैं। अगर सर्वाइवल की ही बात आ जाएगी और पानी नहीं बहेगा तो ख़ून ही बहाना होगा।”
पाकिस्तान के कानून मंत्री रहे अहमर बिला सूफ़ी ने ‘दुनिया टीवी’ से इस कदम को असाधारण और संधि को बाध्यकारी बताते हुए कहा कि इसमें एकतरफा फैसला नहीं लिया जा सकता है।
उन्होंने इसे एक खतरनाक फैसला करार दिया और इस मामले को विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले जाने की संभावना जताई।
अहमर बिला सूफ़ी ने ‘दुनिया टीवी’ से कहा, “ये ग़ैरमामूली क़दम है। यह संधि बाध्यकारी है। इसमें कोई एकतरफ़ा फ़ैसला नहीं ले सकता है। ये एक ख़तरनाक फ़ैसला है। हम इस मामले को विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लेकर जा सकते हैं। पानी को डायवर्ट करना भी भारत के लिए आसान नहीं होगा। हो सकता है कि इसमें सालो लग जाए।”∎