2025 में सबसे बड़ा चुनावी मुकाबला बिहार में होने वाला है। नवंबर में बिहार विधानसभा चुनाव होंगे, मगर कांग्रेस नेता राहुल गांधी देश के पश्चिमी राज्य गुजरात में पार्टी की तस्वीर सुधारने में जुटे हैं। गुजरात में विधानसभा चुनाव 2027 में संभावित है यानी अभी पूरे दो साल बाकी हैं। दूसरी ओर, बिहार चुनाव सिर पर खड़ा है, जहां 35 साल पहले कांग्रेस के पांव उखड़े थे। इसके बाद से कांग्रेस बिहार में मजबूत नहीं हो पाई। लालू यादव और आरजेडी के साथ गठबंधन के कारण कांग्रेस नेताओं को मंत्री बनने का मौका मिलता रहा। गुजरात में भी कांग्रेस पिछले 30 साल से सत्ता से दूर है। दोनों राज्यों में जिला और ब्लॉक स्तर पर कांग्रेस कमजोर है, फिर चुनावी राज्य छोड़कर राहुल गांधी गुजरात में ज्यादा सक्रिय क्यों हैं?
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने गुजरात के मोडासा अरावली जिले में बूथ कार्यकर्ताओं के साथ एक मीटिंग की। संगठन सृजन अभियान की शुरुआत करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि गुजरात उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण राज्य है और वे यहां से एक संदेश देना चाहते हैं। कांग्रेस की लड़ाई विचारधारा की है और वे इसे गुजरात में लड़कर जीतेंगे। उनका कहना है कि देश में सिर्फ दो विचारधारा वाली पार्टियां हैं- एक बीजेपी-आरएसएस और दूसरी कांग्रेस। पूरे देश को पता है कि सिर्फ कांग्रेस ही बीजेपी-आरएसएस को हरा सकती है। अगर हमें बीजेपी को हराना है तो इसका रास्ता गुजरात से होकर जाता है।
कांग्रेस ने आरजेडी से 90 सीटों की मांगी है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को आरजेडी ने 70 सीटें दी थी, मगर पार्टी सिर्फ 19 सीटों पर कामयाब रही। राष्ट्रीय जनता दल ने अपने दम पर 75 सीटें जीती थी और महागठबंधन को 110 विधायक चुने गए थे। अगर कांग्रेस आधी 35 सीटें जीत जाती तो तेजस्वी सीएम होते। कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के कारण महागठबंधन सत्ता के करीब पहुंचकर चूक गया। बिहार में कई दल हैं, जिनके बीच कांग्रेस को अपनी जगह बनाने में काफी वक्त लगेगा। ऐसा गुजरात में नहीं है। लगातार हार के बाद भी गुजरात में मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही होना तय है। वहां तीन दशक में कोई तीसरी ताकत का उदय नहीं हुआ है।
जिताऊ कैंडिडेट और टिकाऊ नेता कैसे चुनेंगे राहुल
गुजरात में छबीलदास मेहता कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री रहे। मार्च 1995 के बाद बीजेपी ने पहली बार सरकार बनाई और कांग्रेस के लिए गुजरात अभेद्य किला बन गया। 1997-98 में बीजेपी में फूट पड़ी, मगर इसका तात्कालिक फायदा बागी शंकर सिंह वाघेला और दिलीप पारेख को मिला। नरेंद्र मोदी के सीएम बनने के बाद कांग्रेस लगातार राज्य में कमजोर होती गई। निकाय और पंचायतों में सिलसिलेवार हार के बाद पार्टी के बड़े जनाधार वाले नेता खामोश हो गए या फिर बीजेपी में चले गए। कांग्रेस ने इस दौरान हार्दिक पटेल जैसे नेताओं पर दांव खेला, मगर वह भी टिक नहीं सके। सूत्रों के अनुसार, हालत यह है कि कई जिलों में कांग्रेस के पास जिताऊ कैंडिडेट और टिकाऊ कार्यकर्ता नहीं हैं। लगातार हार के बाद गुजरात कांग्रेस फंड की कमी से भी जूझ रही है।
कार्यकर्ताओं की बैठक में राहुल गांधी का सख्त रुख
पिछले दिनों खुद राहुल गांधी गुजरात कांग्रेस की कमियों को लेकर तंज कसते नजर आए। उन्होंने साफ-साफ कहा कि पार्टी के जो नेता बीजेपी के मिले हैं, उन्हें हटाया जाएगा। जरूरत पड़ी तो वह निष्क्रिय नेताओं पर थोक भाव में एक्शन लेंगे। मोडासा की मीटिंग में उन्होंने वादा किया जिला स्तर पर पदाधिकारियों का हाथ मजबूत करेंगे। एक शिकायत का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा टिकटों पर फैसले में स्थानीय लोग, स्थानीय जिला नेता शामिल नहीं होते हैं। जिले के पदाधिकारी कहते हैं कि हमें नहीं पता कि टिकट कहां से आते हैं, वे बस आसमान से गिर जाते हैं। उम्मीदवारों के चयन में जिलाध्यक्ष का फैसला माना जाएगा। राहुल गांधी ने जिले के संगठन में दखल देने वाले ऐसे बड़े नेताओं को चेतावनी दी, जो बूथ नहीं जिता पाते हैं।