अमृता प्रीतम – Amrita Pritam 

अमृता प्रीतम एक भारतीय उपन्यासकार, निबंधकार और कवि थीं। जिन्होंने पंजाबी और हिंदी में सहित्य लिखकर अपना नाम साहित्य जगत में प्रतिष्ठित किया। उच्च कोटि के साहित्य लेखन के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। उन्होंने लेखन कार्य में कविता, कथा, आत्मकथाएँ, निबंध, पंजाबी लोक गीतों का संग्रह और एक आत्मकथा की 100 से अधिक पुस्तकें शामिल हैं, जिनका कई भारतीयऔर विदेशी भाषाओं में अनुवाद किया गया है।

अमृता प्रीतम जीवनी - Amrita Pritam Biography

नाम अमृता कौर
जन्म 31 अगस्त 1919
जन्म स्थान गुजरांवाला, तत्कालीन पंजाब प्रांत, भारत  
पिता करतार सिंह हितकारी
माता राज बीबी
पेशा उपन्यासकार, निबंधकार, कवयित्री 
पुरस्कार साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म श्री, भारतीय ज्ञानपीठ, शताब्दी सम्मान, पद्म विभूषण
मृत्यु 31 अक्टूबर 2005 दिल्ली, भारत 

'रसीदी टिकट' बन गया कालजयी उपन्यास - 'Rasidi Ticket' became a classic novel 

साहित्यिक अभिरुचि का वह छात्र वास्तव में बेहद बदनसीब होगा, जिसने अमृता प्रीतम का कालजयी उपन्यास 'रसीदी टिकट' नहीं पढ़ा है। अगर अमृता प्रीतम को जानना है तो यह उपन्यास एक बेहतर विकल्प हो सकता है। अमृता प्रीतम की लेखनी पाठकों को चुंबक की तरह खींचती है और वह इस महान लेखिका की रचनाओं का आदी हो जाता है। 

नफरत में जन्मी मासूम प्रेम कहानी को मुकाम देती हैं अमृता - Amrita gives meaning to an innocent love story born out of hatred 

लेखक हमेशा अपने साहित्य में पाठकों को इंसानियत के दर्द, उसके दुःख, तकलीफों और खुशियों से रूबरू कराता है। इन सभी पहलुओं के साथ ही उसका अंजाम भी प्रस्तुत करता जाता है। 'पिंजर' उपन्यास में अमृता प्रीतम के लेखन से ऐसा लगता है, जैसे सारी घटनाएं उनकी आंखों के सामने गुजरी हैं। इसमें वह अंत में इंसानियत और रिश्ते की मर्यादा का भी चित्रण करती हैं, जिसमें एक खलनायक के प्रति भी पाठकों के मन में कोई खटास नहीं रहती है।

अमृता कौर से अमृता प्रीतम - Amrita Kaur to Amrita Pritam 

1936 में सोलह वर्ष की आयु में उन्होंने प्रीतम सिंह से विवाह किया जो एक संपादक थे। जिनसे उनकी बचपन में सगाई हुई थी, और उन्होंने अपना नाम ‘अमृता कौर’ से बदलकर ‘अमृता प्रीतम’ रख लिया।

इसी साल उनकी कविताओं का पहला संकलन, अमृत लेहरन ("अमर लहरें") प्रकाशित हुआ। 1936 और 1943 के बीच कविताओं के आधा दर्जन संग्रह प्रकाशित हुए।

विभाजन की त्रासदी का दंश कविताओं के माध्यम से किया जाहिर - The pain of the tragedy of partition was expressed through poems. 

1947 के विभाजन के समय अमृता प्रीतम पंजाब में शरणार्थी के रूप में भारत आयीं। एक बार यात्रा करते हुए उन्होंने एक कागज पर अपनी पीड़ा व्यक्त की। कविता, "अज्ज आखां वारिस शाह नू" (मैं वारिस शाह से आज पूछती हूँ) यह कविता बाद में उन्हें अमर बना गई और विभाजन की भयावहता की सबसे मार्मिक याद बन गई।

पुरस्कार - Award

उपन्यास - Novel 

आत्मकथाएं -  Biography

मृत्यु - Death

31 अक्टूबर 2005 को 86 वर्ष की आयु में लंबी बीमारी के बाद नई दिल्ली में सोते हुए ही उनकी मृत्यु हो गई।