हिंदी साहित्य में प्रेमचंद की परंपरा के अग्रणी लेखक भीष्म साहनी | Leading writer of Premchand's tradition in Hindi literature Bhisham Sahni
भीष्म साहनी हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखकों में से एक थे। जिन्हें हिंदी साहित्य में प्रेमचंद की परंपरा का अग्रणी लेखक माना जाता है। भीष्म साहनी, आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख स्तम्भों में से एक थे। वामपंथी विचारधारा से जुड़े होने के बावजूद वे मानवीय मूल्यों को कभी ओझल नहीं होने देते थे। भीष्म साहनी को उनके लेखन के लिए तो याद किया ही जाता है साथ ही उन्हें उनकी सह्रदयता के लिए भी जाना जाता है।
पूरा नाम | भीष्म साहनी |
जन्म | 8 अगस्त 1915 |
जन्म स्थान | रावलपिंडी, अविभाजित भारत (वर्तमान पाकिस्तान) |
पिता | हरबंस लाल साहनी |
माता | लक्ष्मी देवी |
शिक्षा | एम.ए, पी.एच.डी |
प्रमुख कृतियाँ | तमस, मायादास की माडी, झरोंखे इत्यादि |
प्रमुख सम्मान | साहित्य अकादमी पुरस्कार (1975), पद्म भूषण (1998) |
मृत्यु | 11 जुलाई 2003, नई दिल्ली |
भीष्म साहनी ने 1937 में 'गवर्नमेंट कॉलेज' लाहौर से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए किया। इसके बाद 1958 में पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से पी.एच.डी की उपाधि ग्रहण की। इनके पिता एक प्रमुख समाजसेवी थे। भीष्म साहनी, हिंदी फिल्मों के ख्याति प्राप्त अभिनेता बलराज साहनी के छोटे भाई थे। अपने शुरुआती समय में भीष्म साहनी ने अध्यापन के कार्य किया। इसके बाद उन्होंने पत्रकारिता एवं ‘इप्टा’ में भी अभिनय किया। काफी दिनों के संघर्षों के बाद स्थायी तौर पर उन्हें ‘दिल्ली विश्वविद्यालय’ में नौकरी मिली।
साल 1957 से 1963 के बीच मॉस्को में अनुवादक के तौर पर कार्य किया। जहां इन्होंने लियो टालस्टॉय, ऑस्ट्रोव्स्की, औतमाटोव की किताबों का हिंदी में रूपांतर किया। 1965 से 1967 तक ‘नई कहानी’ का भी सम्पादन किया। वे 1993से 1997 तक 'साहित्य अकादमी एक्जिक्यूटिव कमेटी' के सदस्य भी रहे।
भीष्म साहनी को प्रेमचंद की परम्परा का अग्रणी लेखक मन जाता है। साहनी जी मानवीय मूल्यों के पक्षधर थे। जिस कारण उन्होंने विचारधारा को अपने साहित्य पर कभी हावी नहीं होने दिया। भीष्म साहनी मार्क्सवाद से प्रभावित होने के कारण समाज में व्याप्त आर्थिक विसंगतियों के गंभीर परिणामों का बड़ी गंभीरता से अनुभव करते थे। 'बसन्ती', 'झरोखे', 'तमस', 'मायादास की माड़ी' व 'कड़ियाँ' उपन्यासों में उन्होंने आर्थिक विषमता और उसके दु:खद परिणामों को बड़ी सूक्षम्ता से उद्धाटित किया है, जो समाज के स्वार्थी कुचक्र का परिणाम है और इन दु:खद स्थितियों के लिए दोषपूर्ण सामाजिक व्यवस्था उत्तरदायी है। कथ्य और वस्तु के प्रति यदि उनमें सजगता और तत्परता का भाव था तो शिल्प सौष्ठव के प्रति भी वे निरन्तर सावधान रहते थे।
कहानी संग्रह | उपन्यास | नाटक |
भाग्य रेखा | झरोंखे | हानुस |
पहला पाठ | कड़ियाँ | कबीरा खडा बाजार में |
भटकती राख | तमस | माधवी |
पटरियाँ | बसंती | गुलेल का खेल |
वाङ्ग चू शोभायात्रा | मायादास की माडी | मुआवजे |
निशाचार | कुन्तो | |
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