डॉ. राधाबाई का जन्म 1875 में नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ था और उनकी मृत्यु 2 जनवरी 1950 में हुई थी। वह प्रसिद्ध महिला स्वतंत्रता सेनानी तथा समाज सुधारकों में से एक थीं।वे राष्ट्रपति महात्मा गाँधी के सभी आंदोलनों में आगे रहीं। कौमी एकता, स्वदेशी, नारी-जागरण, अस्पृश्यता निवारण, शराबबंदी, इन सभी आन्दोलनों में उनकी भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण रही। समाज में प्रचलित कई कुप्रथाओं को समाप्त करने में भी राधाबाई का योगदान अविस्मरणीय है।
राधाबाई का जन्म नागपुर, महाराष्ट्र में सन 1875 ई. में हुआ था। उनका बहुत कम आयु में ही बॉल विवाह हो गया था। जब वे मात्र नौं वर्ष की ही थीं, तभी विधवा हो गईं। पड़ोसिन के घर में उन्हें प्यारी-सी सखी मिली, जिसके साथ वे रहने लगीं। उसी के साथ वे हिंदी सीखने लगीं और साथ ही दाई का काम भी करने लगीं थीं। लेकिन उनकी पड़ोसिन सखी भी एक दिन चल बसी। उसके बेटा-बेटी राधाबाई के भाई-बहन बने रहे। किसी को पता भी नहीं चलता था कि वे दूसरे परिवार की हैं।
नाम | डॉ. राधाबाई |
जन्म | 1875 |
स्थान | नागपुर, महाराष्ट्र |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी और समाज सेवक |
धर्म | हिन्दू |
मृत्य | 2 जनवरी 1950 |
सन 1918 में राधाबाई रायपुर आईं और नगरपालिका में दाई का काम करने लगीं। वह इतने प्रेम और लगन से अपना काम करतीं कि सबके लिए माँ बन गई थीं। यही कारण था कि जन उपाधि के रूप में राधाबाई डॉ. कहलाने लगी थीं। उनके सेवाभाव को देखकर नगरपालिका ने उनके लिए टाँगे-घोड़े का इन्तजाम भी किया था।
सन 1920 में जब महात्मा गाँधी जी पहली बार रायपुर आये, तो डॉ. राधाबाई उनसे बहुत प्रभावित हुईं। उनको लगा कि उन्हें पथ-प्रदर्शक मिल गया है। सन 1930 से 1942 तक हर एक सत्याग्रह में वे भाग लेती रहीं। न जाने कितनी ही बार वे जेल गई थीं। जेल के अधिकारी भी उनका आदर और सम्मान करते थे।
राधाबाई अस्पृश्यता के विरोध में बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया था। सफ़ाई कामगारों की बस्ती में वे जाती थीं और बस्ती की सफ़ाई किया करती थीं। उनके बच्चों को बड़े ही प्रेम से नहलाती थीं। उन बच्चों को पढ़ाती थीं। डॉ. राधाबाई धर्म-भेद नहीं मानती थीं। सभी धर्म के लोग उनके घर में आते थे। मुस्लिम भाइयों की भाई दूज के दिन वे पूजा करती थीं और भोजन खुद बनाकर उन्हें खिलाती थीं।
जब महात्मा गाँधी 1920 में पहली बार रायपुर आये, उस वक्त धमतरी तहसील के कन्डेल नाम के गाँव में किसान सत्याग्रह चल रहा था। गाँधीजी का प्रभाव छत्तीसगढ़ में व्यापक रूप से पड़ा था। डॉ. राधाबाई तब से गाँधीजी द्वारा संचालित सभी आन्दोलनों में आगे रहीं। उस समय रोज़ प्रभातफेरी निकाली जाती थी। खादी बेचने में, चरखा चलाने में महिलाएँ आगे रहती थीं। डॉ. राधाबाई वहीं चरखा सिखाने बैठ जाती थीं। सब मिलकर गाती- "मेरे चरखे का टूटे न तार, चरखा चालू रहे।