डॉ॰ विक्रम साराभाई – Dr. Vikram Sarabhai

डॉ॰ विक्रम साराभाई - Dr. Vikram Sarabhai

डॉ॰ विक्रम साराभाई भारत के महान वैज्ञानिक थे। इन्होंने भारत के अंतरिक्ष अनुसन्धान कार्यक्रम में भारत को अंतराष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान दिलाई। इसके साथ-साथ ही उन्होंने अन्य क्षेत्रों जैसे वस्त्र, आणविक ऊर्जा, इलेक्ट्रानिक्स और अन्य अनेक क्षेत्रों में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। सृजनशील वैज्ञानिक, सफल और दूरदर्शी उद्योगपति, उच्च कोटि के प्रवर्तक, महान संस्था निर्माता, शिक्षाविद, कला पारखी, सामाजिक परिवर्तन के सूत्रधार, उच्च कोटि के प्रबंध प्रशिक्षक आदि जैसी अनेक विशेषताओं ने उनके व्यक्तित्व को और ज्यादा सुदृढ़ कर दिया।

विक्रम साराभाई जीवनी – Vikram Sarabhai Biography 

नाम विक्रम अंबालाल साराभाई
जन्म 12 अगस्त 1919 
जन्म स्थान अहमदाबाद, गुजरात, भारत 
पिता श्री अम्बालाल साराभाई 
माता श्रीमती सरला साराभाई
पत्नी मृणालिनी 
शिक्षा गुजरात कॉलेज, कैंब्रिज विश्वविद्यालय 
पेशा वैज्ञानिक (भौतिकी)
उल्लेखनीय कार्य भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम, परमाणु कार्यक्रम 
स्थापित महत्त्वपूर्ण संस्थाएं ISRO, NEC (Nuclear Energy commission)
सम्मान पद्म भूषण (1966), मरणोपरांत पद्म विभूषण (1972)
मृत्यु 30 दिसंबर 1971 तिरुवनंतपुरम, केरल, भारत 

आसाधारण प्रतिभा के धनी थे विक्रम – Vikram was exceptionally talented

विक्रम बचपन से ही प्रतिभावान थे। घर से ही शुरुआती शिक्षा शुरू हुई। गुजरात कॉलेज से विज्ञान वर्ग में इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद 1937 में स्नातक करने के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। 1940 में वहां से प्राकृतिक विज्ञान में ट्राइपोज डिग्री प्राप्त की। द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने के बाद वापस भारत आ गए। इसके बाद बेंगलुरु में स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में नौकरी की। यहीं पर इनकी मुलाकात उस समय के महान वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकटरमन से हुई, जिनके निर्देशन में ये ब्रह्माण्ड किरणों पर अनुसन्धान करने लगे।       

अनुसन्धान क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान – Important contribution in research field 

विक्रम साराभाई ने अपना पहला अनुसन्धान लेख “टाइम डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ कास्मिक रेज़” भारतीय विज्ञान अकादमी की पत्रिका में प्रकाशित किया। वर्ष 1940-45 की अवधि के दौरान कॉस्मिक रेज़ पर साराभाई के अनुसंधान कार्य में बंगलौर और कश्मीर-हिमालय में उच्च स्तरीय केन्द्र के गेइजर-मूलर गणकों पर कॉस्मिक रेज़ के समय-रूपांतरणों का अध्ययन शामिल था। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर वे कॉस्मिक रे भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में अपनी डाक्ट्रेट पूरी करने के लिए कैम्ब्रिज लौट गए। 1947 में उष्णकटीबंधीय अक्षांक्ष (ट्रॉपीकल लैटीच्यूड्स) में कॉस्मिक रे पर अपने शोधग्रंथ के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उन्हें डाक्ट्ररेट की उपाधि से सम्मानित किया गया। इसके बाद वे भारत लौट आए और यहां आ कर उन्होंने कॉस्मिक रे भौतिक विज्ञान पर अपना अनुसंधान कार्य जारी रखा। भारत में उन्होंने अंतर-भूमंडलीय अंतरिक्ष, सौर-भूमध्यरेखीय संबंध और भू-चुम्बकत्व पर अध्ययन किया।

जब क्यूरी दंपत्ति ने की विक्रम साराभाई की प्रशंसा – When Curie couple praised Vikram Sarabhai 

डॉ॰ साराभाई एक स्वप्नद्रष्टा होने के साथ साथ कठोर परिश्रम की असाधारण क्षमता उन्हें महँ वैज्ञानिक की श्रेणी में लेकर खड़ा कर देती है। फ्रांसीसी भौतिक वैज्ञानिक पियरे क्यूरी (जिन्होंने अपनी वैज्ञानिक पत्नी मैरी क्यूरी के साथ मिलकर पोलोनियम और रेडियम का आविष्कार किया था), के अनुसार डॉ॰ साराभाई का उद्देश्य जीवन को सपने देखना और उस स्वप्न को वास्तविकता में जीना था। इसके अलावा डॉ॰ साराभाई ने अन्य अनेक लोगों को इस कार्य के लिए प्रेरित किया। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की सफलता इसका प्रमाण है।

कई संस्थाओं के निर्माता हैं विक्रम साराभाई – Vikram Sarabhai is the creator of many organizations

विक्रम साराभाई के द्वारा स्थापित कुछ महत्त्वपूर्ण संस्थाएं आज वर्तमान समय में भारत में ऐसा युवा वर्ग तैयार कर रहीं हैं जो भविष्य में भारत को नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता रखते हैं। इन संस्थाओं के नाम हैं – 

  •  भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM), अहमदाबाद
  •  सामुदायिक विज्ञान केन्द्र, अहमदाबाद 
  • दर्पण अकादमी फॉर परफार्मिंग आट्र्स, अहमदाबाद 
  • विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र, तिरुवनन्तपुरम 
  • अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, अहमदाबाद
  • फास्टर ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (FBTR), कलपक्कम 
  • वैरीएबल एनर्जी साईक्लोट्रोन प्रोजक्ट, कोलकाता
  • भारतीय इलेक्ट्रानिक निगम लिमिटेड (ECIL) हैदराबाद  
  • भारतीय यूरेनियम निगम लिमिटेड (UCIL) जादुगुडा, बिहार
vikram sarabhai with P.M डॉ॰ विक्रम साराभाई - Dr. Vikram Sarabhai

पुरस्कार – Award

  • 1. शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार (1962)
  • 2. पद्मभूषण (1966)
  • 3. पद्मविभूषण, मरणोपरान्त (1972)

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