लेफ्टिनेंट ग़ुरबचन सिंह सलारिया भारतीय सेना के एक वीर सैनिक थे, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी और परम वीर चक्र से सम्मानित हुए। उनका जीवन साहस, वीरता और बलिदान की मिसाल है।
गुरबचन सिंह सलारिया जीवन परिचय – Gurbachan Singh Salaria Biography
जन्म | 29 नवम्बर 1935 पंजाब, ब्रिटिश भारत |
देहांत | 5 दिसम्बर 1961 लुबुम्बाशी, कातांगा प्रान्त, कांगो लोकतान्त्रिक गणराज्य |
निष्ठा | भारत |
सेवा/शाखा | भारतीय सेना |
सेवा वर्ष | 1957–1961 |
उपाधि | कैप्टन |
सेवा संख्यांक | IC-8947 |
दस्ता | 3/1 गोरखा राइफल्स |
युद्ध/झड़पें | कांगो संकट |
सम्मान | परमवीर चक्र |
प्रारंभिक जीवन
ग़ुरबचन सिंह सलारिया का जन्म 29 नवम्बर 1935 को गुरदासपुर, पंजाब में हुआ था। वे एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते थे, लेकिन बचपन से ही उनमें देशभक्ति की भावना प्रबल थी। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा मिलिट्री स्कूल बेंगलुरु में प्राप्त की और बाद में 1954 में भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून से स्नातक हुए।
सेना में सेवा
1957 में ग़ुरबचन सिंह को भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट (1/3 गोरखा राइफल्स) में नियुक्त किया गया। उन्होंने अपने अनुशासन, साहस और नेतृत्व कौशल से जल्दी ही वरिष्ठ अधिकारियों का विश्वास जीत लिया।
कांगो अभियान और वीरता
1961 में संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन के तहत भारतीय सेना को कांगो भेजा गया था, जहाँ ग़ुरबचन सिंह सलारिया की यूनिट को कांगो में विद्रोहियों से लड़ने का आदेश मिला। 5 दिसंबर 1961 को, ग़ुरबचन सिंह की टुकड़ी को एलिज़ाबेथविल (अब लुबुम्बाशी) के पास विद्रोही कातांगा बलों को रोकने की जिम्मेदारी सौंपी गई।
उनकी टुकड़ी की संख्या कम थी लेकिन उन्होंने करीब 90 दुश्मन सैनिकों का बहादुरी से सामना किया। उन्होंने अपने “खुखरी” से कई दुश्मनों को ढेर किया। इस संघर्ष में वे गंभीर रूप से घायल हो गए, लेकिन अंत तक लड़ते रहे और वीरगति को प्राप्त हुए।
परम वीर चक्र सम्मान
लेफ्टिनेंट ग़ुरबचन सिंह सलारिया को उनकी अद्वितीय वीरता और बलिदान के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान “परम वीर चक्र” से नवाज़ा गया। वे संयुक्त राष्ट्र के किसी मिशन में वीरगति पाने वाले पहले भारतीय सैनिक थे जिन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ।
आज भी लेफ्टिनेंट सलारिया की गाथा भारतीय सेना और युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके नाम पर कई स्कूल, सड़कें और स्मारक बनाए गए हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि मातृभूमि के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाला कभी भुलाया नहीं जाता।
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