गुरु गोबिंद सिंह जन्मदिवस – Guru Gobind Singh Birthday 

Monika
गुरु गोबिंद सिंह जन्मदिवस – Guru Gobind Singh Birthday 

गुरु गोबिंद सिंह का जन्म सन्न 1666 में हुआ। उनके पिता का नाम गुरु तेग बहादुर था और माता का नाम गुजरी था। गोबिंद सिंह का जन्म पटना, बिहार में हुआ। उनके जन्म के समय पिता श्री गुरु तेग बहादुर जी असम में धर्म उपदेश के लिये गये थे। उनके बचपन का नाम गोविन्द राय था। पटना में जिस घर में उनका जन्म हुआ था और जिसमें उन्होने अपने प्रथम चार वर्ष बिताये , वहीं पर अब तखत श्री हरिमंदर जी पटना साहिब स्थित है। गोबिंद सिंह सीखो के अंतिम दसवे गुरु थे। वह श्री गुरु तेग बहादुर के बलिदान के उपरांत वह सन्न 1675 में दसवे गुरु बने।

खालसा पंथ

गुरु गोबिंद सिंह जन्मदिवस – Guru Gobind Singh Birthday 

1699, यह वो समय था जब गोबिंद जी ने बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। यह सीखो के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। गुरु गोबिन्द सिंह ने पवित्र (ग्रन्थ) गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें (गुरु) रूप में प्रतिष्ठित किया। गुरु गोबिंद सिंह की जानकारी का महत्वपूर्ण स्त्रोत उनके बचित्तर नाटक आत्मकथा से उन्हें मिला। यह दसम ग्रन्थ का एक भाग है। दसम ग्रन्थ, गुरु गोबिन्द सिंह की कृतियों के संकलन का नाम है।

गुरु गोबिंद सिंह की बायोग्राफी - Guru Gobind Singh Biography In Hindi 

जन्म 22 दिसंबर 1666 
जन्म स्थान पटना, बिहार, भारत 
पदवी सीखो के दसवे गुरु 
प्रसिद्धि का कारणदसवें सिख गुरु, सिख खालसा सेना के संस्थापक एवं प्रथम सेनापति
पूर्वाधिकारीगुरु तेग बहादुर
उत्तराधिकारीगुरु ग्रन्थ साहिब 
धर्म सिख 

मुगलो के साथ लड़े 14 युद्ध

गुरु गोबिंद सिंह ने अन्याय, अत्याचार तथा पापो को ख़त्म करने के लिए और धर्म की रक्षा के लिए मुगलों के साथ 14 युद्ध लड़े। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए समस्त परिवार का बलिदान दिया। जिसके लिए उन्हें 'सरबंसदानी' यांनी  के पूरे परिवार का दानी भी कहा जाता है। गुरु गोबिंद जी को जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले, आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं।

गुरु गोबिंद सिंह - कई भाषाओ के ज्ञाता

विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय होने के साथ-आथ गुरु गोविन्द सिंह एक महान लेखक, मौलिक चिन्तक तथा संस्कृत सहित कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। गोबिंद सिंह जी ने स्वयं कई ग्रन्थों की रचना की थी। वे विद्वानों के संरक्षक थे। 52 कवि और साहित्य-मर्मज्ञ उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे। इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता है।

धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है

गोबिंद जी ने सदा प्रेम, सदाचार और भाईचारे का सन्देश दिया। किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। वे बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव वाले कर्मयोगी थे। उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि "धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है"।

1670 में आये पंजाब

1670 में गुरु गोबिंद सिंह जी अपने परिवार के साथ पंजाब आये। 1672 में उनका परिवार  हिमालय के शिवालिक पहाड़ियों में स्थित चक्क नानकी नामक स्थान पर आ गया। आपको बता दें कि चक्क नानकी ही आज कल आनंदपुर साहिब कहलाता है। यहीं पर इनकी शिक्षा आरम्भ हुई। यही से उन्होंने फ़ारसी और संस्कृति की शिक्षा ली और एक योद्धा बनने के लिए सैन्य कौशल सीखा।

काश्मीरी पण्डितों का जबरन धर्म परिवर्तन

कश्मीरी पंडतो का जबरन धर्म परिवर्तन कर के उन्हें मुसलमान बनाया जा रहा था। तब इसकी फ़रियाद लेकर वे गुरु तेग बहादुर जी के दरबार में आये और कहा की हमारे आगे ये शर्त रखी गयी है कि अगर कोई महापुरुष हो जो इस्लाम स्वीकार नहीं कर अपना बलिदान दे सके तो आप सभी का भी धर्म परिवर्तन नहीं किया जयगा। उस समय गोबिंद सिंह जी केवल 9 वर्ष के थे। उन्होंने अपने पिता की ओर देखते हुए कहा की आपसे बड़ा महापुरुष और कौन हो सकता है।  कश्मीरी पण्डितों की फरियाद सुन कर उन्हें जबरन धर्म परिवर्तन से बचाने के लिए स्वयं इस्लाम न स्वीकारने के कारण  11 नवंबर 1675 में औरंगज़ेब ने दिल्ली के चांदनी चौक में सार्वजनिक रूप से उनके पिता गुरु तेग बहादुर का सिर काट दिया। इसके पश्चात वैशाखी के दिन 29 मार्च 1676 को गोविन्द सिंह सिखों के दसवें गुरु घोषित हुए।

गुरु गोबिंद सिंह की 3 पत्नियां 

गुरु गोबिंद सिंह जी की 3 पत्निया थी। 21 जून 1677 10 साल की उम्र में उनका पहला विवाह माता जीतो के साथ बसंतगढ़ में किया गया। उन दोनों के 3 पुत्र हुए जिनके नाम थे -  जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह। 4 अप्रैल 1684 में गोबिंद सिंह जी का दूसरा विवाह माता सुंदरी के साथ आनंदपुर में हुआ। उन्होंने 17 वर्ष की उम्र में दूसरा विवाह किया। ओस शादी से उनको एक बेटा हुआ जिसका नाम अजित सिंह था। 15 अप्रैल, 1700 को 33 वर्ष की आयु में उन्होंने माता साहिब देवन से विवाह किया। वैसे तो उनका कोई सन्तान नहीं था पर सिख पन्थ के पन्नों पर उनका दौर भी बहुत प्रभावशाली रहा।

निधन

औरंगजेब की मृत्यु के बाद गुरुजी ने बहादुरशाह को बादशाह बनाने में मदद की। गुरुजी व बहादुरशाह के संबंध अत्यंत मधुर थे। इन संबंधों को देखकर सरहद का नवाब वजीत खाँ घबरा गया। वाजित खां ने दो पठानों को गुरूजी के पीछे लगा दिया। इन पठानों ने गुरु जी पर धोके से घातक वार किया। 7 अक्टूबर 1708 में गुरु गोबिंद सिंह जी नांदेड साहिब की दिव्या ज्योति में लीन हो गए।

20 जनवरी का इतिहास