जगजीत सिंह (Jagjit Singh) का जन्म 8 फरवरी 1941 को राजस्थान के गंगानगर में हुआ, वे बेहद लोकप्रिये लोकप्रिय ग़ज़ल गायकों की फ़ेहरिस्त में शुमार हैं खालिस उर्दू जानने वालों की मिल्कियत समझी जाने वाली, नवाबों-रक्कासाओं की दुनिया में झनकती और शायरों की महफ़िलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती ग़ज़लों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को पहले पहल दिया जाना हो तो जगजीत सिंह का ही नाम ज़ुबां पर आता है।
जगजीत सिंह जीवन परिचय – Jagjit Singh Biography
जन्म | 8 फ़रवरी 1941 |
पेशा | संगीतकार, गायक, संगीत निर्देशक, सक्रियतावादी, उद्योगपति |
वाद्ययंत्र | मुखरित, हारमोनियम, तानपुरा, पियानो |
लेबल | ईएमआई, ऐच.एम.वी, सारेगामा, युनिवेर्सल म्यूजिक, सोनी बी.एम.जी. |
मृत्यु | 10 अक्टूबर 2011 |
जीवन – Life
उनका संगीत अंत्यंत मधुर है और उनकी आवाज़ संगीत के साथ खूबसूरती से घुल-मिल जाती है। उनकी ग़ज़लों से ना सिर्फ कई लोगों में उर्दू व उसके साहित्य में रुझान बढ़ा बल्कि वे उर्दू फारसी के बड़े बड़े नामों से भी वाकिफ़ हुए, उनकी ग़ज़लों ने न सिर्फ़ उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की समझ में इज़ाफ़ा किया बल्कि ग़ालिब, मीर, मजाज़, जोश और फ़िराक़ जैसे शायरों से भी उनका परिचय कराया। जगजीत सिंह जी को भारत सरकार द्वारा 2003 में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है।
उनके पिता सरदार अमर सिंह धमानी भारत सरकार के कर्मचारी रह चुके हैं। शुरूआती शिक्षा गंगानगर के खालसा स्कूल में हुई और बाद में पढ़ने के लिए जालंधर आ गए। डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और इसके बाद कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया। एक आम व्यक्ति की तरह उनका भी पहला प्रेम सफल नहीं हो सके जिसके बारे में वे लिखते हैं “एक लड़की को चाहा था। जालंधर में पढ़ाई के दौरान साइकिल पर ही आना-जाना होता था। लड़की के घर के सामने साइकिल की चैन टूटने या हवा निकालने का बहाना कर बैठ जाते और उसे देखा करते थे। बाद मे यही सिलसिला बाइक के साथ जारी रहा। पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं थी। कुछ क्लास मे तो दो-दो साल गुज़ारे”।
संगीत – Music
संगीत उन्हें विरासत में मिल, उनके संगीत का सफर गंगानगर में पंडित छगन लाल शर्मा के साथ संध्या में दो साल तक शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली। सैनिया घराने के उस्ताद जमाल ख़ान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद की बारीकियां सीखीं। पिता की ख़्वाहिश थी कि उनका बेटा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाए लेकिन जगजीत पर गायक बनने की धुन सवार थी। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत में उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रोफ़ेसर सूरजभान ने जगजीत सिंह जी को काफ़ी उत्साहित किया। 1965 में मुंबई आए जहां उनका सफर शुरू हुआ, यहाँ उनकी मुलाकात चित्र जी से हुई। कुछ साल बाद वे दोनों परिणय सूत्र में बंध गए।
जगजीत सिंह मुंबई की फिल्मी दुनिया में पार्श्वगायन के सपने के साथ आय थे। इस समय वे अपनी रोज़ी रोटी के लिए कॉलेज और बड़े लोगों के आगे पेशकश किया करते थे। उन दिनों तलत महमूद, मोहम्मद रफ़ी साहब जैसों के गीत लोगों की पसंद हुआ करते थे। रफ़ी-किशोर-मन्नाडे जैसे महारथियों के दौर में पार्श्वगायन का मौक़ा मिलना बहुत दूर था। जगजीत जी याद करते हैं, “संघर्ष के दिनों में कॉलेज के लड़कों को ख़ुश करने के लिए मुझे तरह-तरह के गाने गाने पड़ते थे क्योंकि शास्त्रीय गानों पर लड़के हूट कर देते थे।”
जगजीत जी फिल्मों में ग़ज़ल गाने के अंदाज़ की वजह से आम लोगों के बीच ग़ज़ल लोकप्रिय होने लगे। लेकिन ग़ज़ल के जानकारों जरा उनसे रूठ गए। शुद्धतावादियों को इनके ग़ज़ल गायकी का अंदाज ना पसंद ही रहा, दरअसल यह वह दौर था जब आम आदमी ने जगजीत सिंह, पंकज उधास सरीखे गायकों को सुनकर ही ग़ज़ल में दिल लगाना शुरू किया था। दूसरी तरफ़ परंपरागत गायकी के शौकीनों को शास्त्रीयता से हटकर नए गायकों के ये प्रयोग चुभ रहे थे। आरोप लगाया गया कि जगजीत सिंह ने ग़ज़ल की प्योरटी और मूड के साथ छेड़खानी की।
फिल्मी सफ़र
‘प्रेमगीत’ का ‘होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो’ ‘खलनायक’ का ‘ओ मां तुझे सलाम’ ‘दुश्मन’ का ‘चिट्ठी ना कोई संदेश’ ‘जॉगर्स पार्क’ का ‘बड़ी नाज़ुक है ये मंज़िल’ ‘साथ-साथ’ का ‘ये तेरा घर, ये मेरा घर’ और ‘प्यार मुझसे जो किया तुमने’ ‘सरफ़रोश’ का ‘होशवालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है’ ‘ट्रैफ़िक सिगनल’ का ‘हाथ छुटे भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते’ (फ़िल्मी वर्ज़न) ‘तुम बिन’ का ‘कोई फ़रयाद तेरे दिल में दबी हो जैसे’ ‘वीर ज़ारा’ का ‘तुम पास आ रहे हो’ (लता जी के साथ) ‘तरक़ीब’ का ‘मेरी आंखों ने चुना है तुझको दुनिया देखकर’ (अलका याज्ञनिक के साथ)
बताया जाता है कि जगजीत सिंह जी एक समय पर इतना टूट चुके थे की वे स्थापित गायकों पर टिप्पणी कर बैठे। स्टेट्टमैन लिखता है कि, किशोर दा ने जगजीत सिंह के उस बयान पर कमेंट किया था – ”how dare these so-called ghazal singers criticize an icon that Manna Dey, Mukesh and I dare not criticize. Rafi was unique.” ज़ाहिर है जगजीत जी ने महान पार्श्व गायक मोहम्मद रफ़ी साहब पर जो कहा वो उचित नहीं होगा। ये भी देखने वाली बात है कि जगजीत जी ने अपनी पसंद के जिन फ़िल्मी गानों का कवर वर्सन एलबम क्लोज़ टू माइ हार्ट में किया था।। उसमें रफ़ी साहब का कोई गाना नहीं था।