कमलेश्वर – Kamleshwar

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कमलेश्वर नयी कहानी के प्रचारित त्रिकोण की एक महत्वपूर्ण कड़ी थे। नई कहानी का त्रिकोण, यानी राजेंद्र यादव, मोहन राकेश और कमलेश्वर। इन्होंने अनेक हिन्दी फ़िल्मों के लिए पटकथाएँ लिखीं तथा भारतीय दूरदर्शन श्रृंखलाओं के लिए दर्पण, चन्द्रकान्ता, बेताल पच्चीसी, विराट युग आदि लिखे।

जीवन एवं शिक्षा – Life and Education

कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना इनका पूरा नाम है, इनका जन्म 6 जनवरी 1932, मैनपुरी, उत्तर प्रदेश में हुआ इसके पाश्चात् इन्होंने इलहबाद से परास्नातक की परीक्षा दी। बहुआयामी प्रतिभा के धनी कमलेश्वर ने कई साहित्यिक पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। कमलेश्वर सरकारी नौकर भी रहे।

कमलेश्वर का जीवन परिचय – Kamleshwar Biography

जन्म 6 जनवरी 1932, मैनपूरी, उत्तर प्रदेश 
मृत्यु 27 जनवरी 2007, फरीदाबाद, भारत
विधाकहानी उपन्यास पत्रकारिता, स्तम्भ
आंदोलननयी कहानी 
उल्लेखनीय कार्यकितने पाकिस्तान(2004)
खिताबसाहित्य अकादमी पुरस्कार(2003), पद्म भूषण(2005)

साहित्यिक परिचय

‘विहान’ जैसी पत्रिका का 1954 में संपादन आरंभ कर कमलेश्वर ने कई पत्रिकाओं का सफल संपादन किया जिनमें ‘नई कहानियाँ’ (1963-66), ‘सारिका’ (1967-78), ‘कथायात्रा’ (1978-79), ‘गंगा’ (1984-88) आदि प्रमुख हैं। इनके द्वारा संपादित अन्य पत्रिकाएँ हैं- ‘इंगित’ (1961-63) ‘श्रीवर्षा’ (1979-80)। हिंदी दैनिक ‘दैनिक जागरण’(1990-92) के भी वे संपादक रहे हैं। ‘दैनिक भास्कर’ से 1997 से वे लगातार जुड़े हैं।

कमलेश्वर की पहली कहानी 1948 में प्रकाशित हुई, 1957 में उन्होंने राज्य निरबंसिया कहानी लिखी जिसको हिंदी साहित्य में खूब ख्याति मिली और इसी कहानी से कमलेश्वर का नाम रातो रात बड़े कथाकार की फेहरिस्त में आ गया। कमलेश्वर ने तीन सौ से ऊपर कहानियाँ लिखी हैं। उनकी कहानियों में ‘मांस का दरिया,’ ‘नीली झील’, ‘तलाश’, ‘बयान’, ‘नागमणि’, ‘अपना एकांत’, ‘आसक्ति’, ‘ज़िंदा मुर्दे’, ‘जॉर्ज पंचम की नाक’, ‘मुर्दों की दुनिया’, ‘क़सबे का आदमी’ एवं ‘स्मारक’ आदि उल्लेखनीय हैं।

उपन्यासों में कमलेश्वर का कितने पाकिस्तान को उनके साहित्य में सबसे अधिक ख्याति मिली, इस पुस्तक के 2008 तक ग्यारह संस्करण आ चुके हैं । 

कमलेश्वर हिंदी जगत में एक प्रसिद्ध कहानीकार, उपन्यासकार के रूप में जाने जाते रहे हैं, ये नयी कहानी आंदोलन के प्रवर्तक के रूप में रहे, जिसमें नयी कहानी के अंतर्गत लेखक चाहते थे कि कहानी में कल्पना आदर्शवाद को काम और यथार्थ और अस्तित्ववाद को अधिक रखा जाए। नयी काहनी आंदोलन रूढ़ियों और के विरोध के रूप में शुरू हुआ। हिन्दी कहानी की सम्पूर्ण यात्रा में ‘नई कहानी’ पहला और शायद साहित्यिक अर्थो में अभी तक का अन्तिम आन्दोलन था।

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