महात्मा गाँधी, या मोहनदास करमचंद गाँधी (Mohandas Karamchand Gandhi) भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक अग्रणी नेता थे। स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी महत्ता इस बात से समझी जा सकती है कि अधिकतर इतिहासकार भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के विशेष कालखंड को गाँधीवादी चरण (या गाँधी युग) से सम्बोधित करते हैं। गाँधी की विचारधारा ने न केवल भारत में अपितु समूचे विश्व को किसी-न-किसी रूप में प्रभावित किया है। आज भी भारत के राजनीती में गाँधी प्रासंगिक बने हुए हैं। आइये, इस लेख के माध्यम से गाँधीजी को समझने का प्रयास करते हैं।
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। बचपन में उनका नाम मोहनदास करमचंद गाँधी रखा गया था। उनके पिता का नाम करमचंद उत्तमचंद गांधी था। वे पोरबंदर राज्य के दीवान (मुख्यमंत्री) के रूप में कार्यरत थे। उनकी माता का नाम पुतलीबाई था।
बच्चों को अच्छी परवरिश देने के इरादे से मोहनदास के पिता अपने परिवार को पोरबंदर से राजकोट रहने के लिए ले आये। राजकोट में अच्छी शिक्षा की व्यवस्था की गई और मोहनदास को अंग्रेजी पढ़ाई गई। 13 वर्ष की उम्र में मोहनदास गांधी का विवाह कस्तूरबा से हुआ। वह राजकोट की रहने वाली थीं और शादी के समय कस्तूरबा मोहनदास से एक साल बड़ी यानी 14 साल की थीं।
वर्ष 1885 में, गांधीजी के पिता करमचंद की मृत्यु हो गई। उसी समय उनके पहले बच्चे की भी मृत्यु हो गयी। मोहनदास, तब 16 वर्ष के थे, और उनकी पत्नी कस्तूरबा 17 वर्ष की थी। दो मौतों ने गांधीजी को व्यथित कर दिया। गांधी दंपत्ति के चार और बच्चे थे - हरिलाल (जन्म : 1888), मणिलाल (जन्म : 1892), रामदास (जन्म : 1897),और देवदास(जन्म : 1900)।
पूरा नाम | मोहनदास करमचंद गांधी |
जन्म | 2 अक्टूबर, 1869 |
जन्म स्थान | पोरबंदर, गुजरात |
माता | पुतलीबाई गांधी |
पिता | करमचंद गांधी |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
जीवनसाथी | कस्तूरबा गांधी |
बच्चे | हरिलाल गांधी, मणिलाल गांधी, रामदास गांधी और देवदास गांधी |
मृत्यु | 30 जनवरी, 1948 |
मृत्यु का स्थान | दिल्ली, भारत |
आरम्भिक शिक्षा उन्होंने राजकोट में ही पाई। मोहनदास गांधी बंबई के भावनगर कॉलेज में पढ़ रहे थे लेकिन वे वहां खुश नहीं थे। तभी उन्हें लंदन के प्रसिद्ध इनर टेम्पल में कानून की पढ़ाई करने का प्रस्ताव मिला। परिवार के बड़े-बुजुर्गों ने मोहनदास को समझाया कि यदि वे विदेश पढ़ने गये तो उन्हें जाति से बाहर निकाल दिया जायेगा। लेकिन वे इन आपत्तियों को नज़रअंदाज करते हुए गांधीजी पढ़ाई के लिए लंदन चले गए।
ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जनता का असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया। गांधीजी की अपील पर भारत के लोगों ने ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार करना शुरू कर दिया।
नमक सत्याग्रह के बाद एक मुट्ठी नमक बनाते समय गांधीजी ने कहा था, 'इस एक मुट्ठी नमक से मैं ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें हिला रहा हूं।'
एक दिन जब वह दिल्ली के बिड़ला हाउस में प्रार्थना सभा में जा रहे थे तो नाथूराम गोडसे ने उन पर हमला कर दिया। गांधीजी को सीने में तीन गोलियां मारी गईं। कहा जाता है कि जब दिल्ली में महात्मा गांधी की अंतिम यात्रा निकली तो उसमें दस लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए। उनका अंतिम संस्कार यमुना के तट पर किया गया। अहिंसा के मार्ग के पथिक गांधीजी के निधन पर पूरी दुनिया में लोगों ने शोक जताया।
नोबेल पुरस्कार विजेता कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी, जिसके बाद से उन्हें महात्मा कहा जाने लगा। इसके बाद 4 जून, 1944 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से अपने संदेश में महात्मा गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया, जिसके बाद पूरे देश में उन्हें इसी नाम से संबोधित किया जाने लगा।