रामानंद सागर एक भारतीय फिल्म निर्माता व निर्देशक थे। वे 90 के दशक में दूरदर्शन पर आए अति लोकप्रिय धारावाहिक रामायण, श्री कृष्णा, आदि के निर्माता-निर्देशक थे।
रामानंद सागर का जन्म 29 दिसम्बर, 1917 को हुआ था। वे लाहौर में जन्में थे। बचपन में उनका नाम चंद्रमौली चोपड़ा था। बचपन में ही उनकी नानी ने उन्हें गोद ले लिया। गोद लेने के पश्चात् उनकी नानी ने चंद्रमौली चोपड़ा का नाम बदलकर ‘रामानंद सागर’ रख दिया। उन्हें जन्म देने वाली माँ की मृत्यु के पश्चात उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली जिनसे उन्हें विधु विनोद चोपड़ा हुए जो आज फिल्म जगत में एक जाने माने निर्देशक हैं।
रामानन्द सागर का बचपन बहुत ही गरीबी में गुजरा। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए चपरासी, ट्रक साफ करना, साबुन विक्रेता जैसे कई तरह के काम किए।
उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर से प्राप्त की। वह सन् 1942 में पंजाब विश्वविद्यालय से संस्कृत और फ़ारसी में स्वर्ण पदक विजेता थे। अपने कॉलेज के दिनों से ही रामानंद सागर को लेखन में रुचि हो गई। वे समाचार पत्र “डेली मिलाप” (Daily Milap) के संपादक भी थे।
सन् 1947 में हुए भारत-पाकिस्तान के विभाजन के पश्चात् वे भारत के मुंबई आ बसे। उन्होंने बंटवारें के ऊपर अपनी आत्मकथा “और इंसान मर गया” (And humanity died) लिखी जो हिंदी व उर्दू भाषा में थी।
मुंबई आने के बाद वे सिनेमा जगत से जुड़ गए, जहाँ उन्होंने कई फिल्मों तथा कई टेलिविजन कार्यक्रमों और धारावाहिकों का निर्देशन और निर्माण किया। हालाँकि, उनका बॉलीवुड करियर 1932 में मूक फिल्म ‘रेडर्स ऑफ द रेल रोड’ में एक क्लैपर के रूप में शुरू हुआ।
वर्ष 1950 में उन्होंने ‘सागर आर्ट प्राइवेट लिमिटेड’ नाम की अपनी खुद की फिल्म प्रोडक्शन कंपनी की स्थापना की। बाद में, उन्होंने ‘सागर आर्ट प्राइवेट लिमिटेड’ के बैनर तले ‘जिंदगी’ (1964), ‘आरज़ू’ (1965), ‘आंखें’ (1968), ‘चरस’ (1976), ‘भागवत’ (1980), और ‘सलमा’ (1985), जैसी कई बॉलीवुड फिल्मों का निर्देशन और निर्माण किया।
रामानंद सागर को सर्वाधिक प्रसिद्धि मिली भगवान श्रीराम के लीला-चरित पर आधारित टीवी धारावाहिक ‘रामायण’ से। बीबीसी के अनुसार, “लोग रविवार की सुबह का स्नान कर टेलीविजन को पूजा-पाठ कर बहुत ही आध्यात्म भाव से बड़ी बेसब्री से ‘रामायण’ का इंतजार करते थे और एक-एक टेलीविजन सेट पर गाँव-मोहल्ले के लोगों का हुजूम ही उमड़ पड़ता था। बस और ट्रकों के ड्राइवर अपने वाहनों को ब्रेक लगाकर ‘रामायण’ देखने के लिए किसी ढाबे में लगे टेलीविजन से चिपक जाते थे। रेलवे प्लेटफॉर्म और हवाई अड्डों पर उस समय ‘रामायण’ का ही प्रदर्शन हुआ करता था।” इसकी प्रसिद्धि का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि शुरुआत में तो इस धारावाहिक श्रृंखला को 45 मिनट के 52 एपिसोड तक चलाने की परिकल्पना की गई थी किन्तु लोकप्रिय मांग के कारण इसे तीन बार बढ़ाया गया, अंततः 78 एपिसोड के बाद समाप्त हुआ।
“रामायण” धारावाहिक के बाद रामानंद सागर ने भारतीय लोक परम्पराओं व लोक कथाओं पर आधारित कई टीवी सीरियल्स का निर्माण किया। इनमें विक्रम और बेताल, दादा-दादी की कहानियां, रामायण, श्री कृष्णा, अलिफ लैला और जय गंगा मैया, आदि बेहद लोकप्रिए धारावाहिक शामिल है।
टीवी सिनेमा में उनके दिए गए योगदान के लिए भारत सरकार के द्वारा उन्हें वर्ष 2000 में ‘पद्म श्री’ से सम्मानित किया गया। उनका स्वास्थ्य आयु के साथ-साथ बिगड़ता गया व अंत में उन्होंने 12 दिसंबर, 2005 को 88 वर्ष की आयु में अंतिम साँस ली।