सरदार वल्लभभाई पटेल – Sardar Vallabhbhai Patel

सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel), जिन्हें अक्सर "भारत का लौह पुरुष" कहा जाता है, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख नेता और आधुनिक भारतीय गणराज्य के संस्थापकों में से एक थे। उन्होंने नव स्वतंत्र राष्ट्र में रियासतों के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

पृष्ठभूमि

वल्लभभाई झावेरभाई पटेल (या सरदार पटेल) का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को नडियाद, गुजरात में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गुजरात में ही पूर्ण की। पेशे से वे वकील थे। 

पटेल का विवाह तब हुआ जब वह लगभग 17 वर्ष के थे। उनका विवाह झावेरबा पटेल से सन् 1893 में हुआ। वर्ष 1904 में उनकी एक बेटी, मणिबेन पटेल और 1905 में एक बेटा, दह्याभाई पटेल, हुआ। झावेरबा की 1909 में 29 साल की छोटी उम्र में मृत्यु हो गई, जब उनके बच्चे केवल 5 और 3 साल के थे।

स्वतंत्रता संग्राम में सरदार पटेल की भूमिका 

खेड़ा सत्याग्रह - Kheda Satyagraha, 1918

खेड़ा सत्याग्रह खेड़ा जिले में गांधीजी द्वारा शुरू किया गया अंग्रेज सरकार के विरुद्ध एक अहिंसक आंदोलन था। इस आंदोलन में गांधीजी ने सरदार पटेल को अपना डिप्टी नियुक्त किया था। इस आंदोलन के बाद, वल्लभ भाई पटेल को किसान नेता के रूप में प्रसिद्धि मिली।

अहमदाबाद नगर निगम बोर्ड के अध्यक्ष - President of the Ahmedabad Municipal Board, 1924

1924 में, पटेल को अहमदाबाद नगर बोर्ड का अध्यक्ष चुना गया। उन्होंने पदभार ग्रहण करते हुए अहमदाबाद की जल निकासी, स्वच्छता, सफ़ाई और जल वितरण प्रणालियों को नया रूप दिया गया।

बारदोली सत्याग्रह - Bardoli Satyagraha of 1928

गुजरात के किसानों के द्वारा किये गए इस आंदोलन का नेतृत्व वल्लभभाई पटेल ने किया था। तत्कालीन सरकार ने 22% तक करों में वृद्धि किया था, जिसका विरोध ये आंदोलन था। 1928 के बारडोली सत्याग्रह में उनकी भूमिका ने उन्हें राष्ट्रीय गौरव के एक नए शिखर पर पहुंचा दिया। इस आंदोलन के बाद ही उन्हें “सरदार” की उपाधि मिली। 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष - President of the Indian National Congress, 1931 

सन् 1931 में कांग्रेस के ऐतिहासिक कराची अधिवेशन की अध्यक्षता सरदार वल्लभभाई पटेल ने की थी। इस अधिवेशन में ‘पूर्ण स्वराज’ के लक्ष्य को दोहराया गया। इसके अतिरिक्त, दो प्रस्ताव अपनाए गए, एक मौलिक अधिकारों पर और दूसरा राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम पर, जिसने सत्र को विशेष रूप से यादगार बना दिया।

स्वतंत्रता पश्चात् सरदार पटेल का योगदान 

15 अगस्त, 1947 को सरदार पटेल ने प्रथम उपप्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।

स्वतंत्र भारत के प्रथम गृह मंत्री और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का कार्यभार भी उन्होंने संभाला। वे इन पदों पर 15 दिसंबर, 1950 तक रहे। इस दौरान उनकी उपलब्धियां थीं - 

प्रिंसली स्टेट्स का भारत में विलय - देश का राजनितिक एकीकरण

जब देश आज़ाद हुआ था, तब भारत में 17 ब्रिटिश-शासित प्रदेश व 560 से भी अधिक रियासतें थी। इन रियासतों को ब्रिटिश ने यह स्वतंत्रता दी कि वे चाहे हो भारत के साथ रहें, चाहे तो पाकिस्तान के साथ रहें। इसके अतिरिक्त उनके पास स्वतंत्र रहने का भी विकल्प था। ऐसी स्थिति में इन रियासतों का भारत में विलय करवाना अत्यंत दुष्कर कार्य था। सरदार वल्लभभाई पटेल ने कुशल नेतृत्व का प्रदर्शन करते हुए वी.पी. मेनन की सहायता से इस कार्य को अंजाम दिया। इस दौरान सरदार पटेल को कठोर निर्णय लेने पड़े, जिस कारण उन्हें “लौह पुरुष” कहा जाने लगा।

देहावसान व विरासत

सरदार पटेल का 15 दिसंबर, 1950 को 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया। सरदार वल्लभभाई पटेल को एक दृढ राजनेता के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने आधुनिक भारतीय राष्ट्र को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उनके सम्मान में, "स्टैच्यू ऑफ यूनिटी", जो दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है, गुजरात में बनाई गई थी। यह भारत की एकता और अखंडता में उनके योगदान के प्रतीक के रूप में खड़ा है।

भारतीय स्वतंत्रता के प्रति सरदार वल्लभभाई पटेल की अटूट प्रतिबद्धता और स्वतंत्रता के बाद के भारत में उनके असाधारण नेतृत्व ने देश के इतिहास को एक नयी दिशा दी है। उन्हें भारतीय गणराज्य के संस्थापकों और प्रमुख वास्तुकारों में से एक के रूप में याद किया जाता है।

वर्ष 1991 में, उन्हें भारत सरकार ने उनके योगदान को स्मरण करते हुए उन्हें ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया। उनके सम्मान में राष्ट्रीय एकता दिवस – National Unity Day : 31 अक्टूबर मनाया जाता है।