शमशेर बहादुर सिंह- Shamsher Bahadur Singh

कवि ऐसा होना चाहिए जो प्रकृति को, चित्र को और तमाम संमवेदनाओं को एक साथ मिलकर घोल देता हो

- शमशेर 

जीवन एवं शिक्षा 

शमशेर का जन्म 13 जनवरी 1911 को देहरादून में हुआ, मृत्यु 12 मई 1993 को हुई, उनकी प्रारम्भिक शिक्षा देहरादून में और उच्च शिक्षा गोंडा और  इलहबाद से प्राप्त की। शमशेर का विवाह धर्मवती से हुआ, विवाह के 6 वर्ष बाद ही पत्नी की मृत्यु हो गई। 

आधुनिक हिन्दी कविता में शमशेर प्रमुख कवियों की श्रेणी में रहे हैं, आधुनिक हिन्दी कविता की प्रगतिशील त्रेयी के तीन स्तंभों में से एक हैं, 1951 में ‘दूसरे सप्तक’ के प्रकाशन कवियों में शामिल रहे। 

शमशेर बहादुर सिंह बायोग्राफी - Shamsher Bahadur Singh biography in hindi

जन्म 13 जनवरी 1911, देहरादून
मृत्यु 12 मई 1993, अहमदाबाद 
पिता तारीफ़ सिंह 
माता परम देवी
पत्नी धर्मवती
पेशा लेखक, कवि 
प्रसिद्ध रचना चुका भी हूँ नहीं मैं 
सम्मानसाहित्य अकादमी पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, कबीर सम्मान

कार्य-क्षेत्र 

पुरुस्कार एवं सम्मान 

शमशेर को  1977 में उनकी कृति 'चुका भी हूँ नहीं मैं' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1987 में मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार से सम्मानित किया। 1989 में मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें कबीर सम्मान से सम्मानित किया।

विचार

‘दूसरे सप्तक’ में वे स्वीकारते है कि "सन् '45 में नया साहित्य के संपादन के सिलसिले में बम्बई गया। वहाँ कम्यूनिस्ट पार्टी के संगठित जीवन में, अपने मन में अस्पष्ट से बने हुए सामाजिक आदर्शों का मैंने एक बहुत सुन्दर सजीव रूप देखा। मेरी काव्य-प्रतिभा ने उससे काफी लाभ उठाया। अपने बाद के वक्तव्य में भी उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि

...अपने चारों तरफ की ज़िन्दगी में दिलचस्पी लेना, उसकी ठीक-ठीक यानी वैज्ञानिक आधार पर (मेरे नज़दीक यह वैज्ञानिक आधार मार्क्सवाद है) समझना और अनुभूति और अपने अनुभव को इसी समझ और जानकारी से सुलझा कर स्पष्ट करके, पुष्ट करके, अपनी कला-भावना को जगाना। यह आधार इस युग के हर सच्चे और ईमानदार कलाकार के लिए बेहद जरूरी है।

- शमशेर बहादुर सिंह

...मार्क्सवाद और कम्युनिज़्म शमशेर की कविता के हाशिए पर न तब था, न अब है। हमेशा वह उस कवि-व्यक्तित्व का अभिन्न अंग रहा है जो कविता का केन्द्र है।

- नामवर सिंह

साहित्यिक परिचय 

शमशेर रूप-रंग-रस के कवि हैं, प्रगतिशील/प्रयोगवाद के ढांचे में बांधकर शमशेर कविता नहीं रचते, यही कारण है कि वह अपना स्वयं का शिल्प विकसित करते हैं जिसमें संकेत, चिन्ह, कोष्ठक का अधिक प्रयोग मिलता है।

शमशेर के जीवन में संगीत और चित्रों का सबसे आधिक प्रभाव रहा है जो उनकी कवितों में साफ तौर से झलकता है, हिन्दी में चित्रों और संगीत पर कविता करने का श्रेय शमशेर को ही जाता है।

अपनी कविताओं में वे काव्य और चित्र के बीच एक सेतु का निर्माण करते हैं। शमशेर कि सम्पूर्ण काव्य अभिव्यक्ति प्रायः बिम्ब द्वारा ही है। शमशेर ने अपनी कविताओं में उर्दू के शब्दों का भी खुलकर इस्तेमाल किया और हिंदी-उर्दू की दूरी पाटने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। शमशेर की कविताओं में चित्रकला, संगीत और कविता का संगम है,इनकी कविताएँ कठिन मानी जाती हैं, क्योंकि वे अर्थ के स्थान पर सोंदर्यनुभूति पर अधिक केंद्रित रहती हैं। 

13 जनवरी का इतिहास