शरद जोशी का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में 21 मई 1931 को हुआ। इनका बचपन कई शहरों में बीता। कुछ समय तक यह सरकारी नौकरी में रहे, फिर इन्होंने लेखन को ही आजीविका के रूप में अपना लिया।
शरद जोशी ने आरंभ में कुछ कहानियाँ लिखों फिर पूरी तरह व्यंग्य लेखन ही करने लगे। इन्होंने व्यंग्य लेख, व्यंग्य उपन्यास, व्यंग्य कॉलम के अतिरिक्त हास्य-व्यंग्यपूर्ण धारावाहिकों की पटकथाएँ और संवाद भी लिखे। हिंदी व्यंग्य को प्रतिष्ठा दिलाने वाले प्रमुख व्यंग्यकारों में शरद जोशी भी एक हैं।
शरद जोशी की प्रमुख व्यंग्य-कृतियाँ हैं परिक्रमा, किसी बहाने, जीप पर सवार इल्लिय तिलस्म, रहा किनारे बैठ, दूसरी सतह, प्रतिदिन। दो व्यंग्य नाटक है अंधों का हाथी और एक प गधा। एक उपन्यास है मैं, में, केवल में, उर्फ कमलमुख बी.ए.।
नाम | शरद जोशी |
कार्य | कवि, लेखक, व्यंग्यकार, संवाद और पटकथा लेखक |
जन्म | 21 मई 1931 | उज्जैन |
माता-पिता | शांति जोशी | श्रीनिवास जोशी |
पत्नी | इरफ़ाना शरद |
मृत्यु | 3 सितंबर 1991 |
संतान | बानी, ऋचा और नेहा शरद |
उनके पिता रोडवेज में डिपो मेनेजर के पद पर कार्यरत थे। पिता की तबादला वाली नैकरी होने के कारण जोशी जी का बचपन कई स्थानों पर व्यतीत हुआ। इस कारन उनका बचपन मऊ, उज्जैन, नीमच, देवास, गुना आदि कई स्थानों पर व्यतीत हुआ। वे दो बेटों और 4 बेटियों वाले परिवार में दूसरे नंबर की संतान थे। शरद जोशी का अपनी माँ से बहुत लगाव था, उनकी माँ का देहावसान तपेदिक नामक बीमारी के चलते हुआ था।
उनकी शादी इरफ़ाना सिद्दीकी (बाद का नाम इरफ़ाना शरद) से हुई। वह भोपाल की एक लेखिका, रेडियो कलाकार और थिएटर अभिनेत्री थीं। अंतर्जातीय विवाह होने के कारण, उनके परिवार जान उनके विवाह को आजीवन मान्यता नहीं दे पाए।
शरद जोशी की भाषा अत्यंत सरल और सहज है। मुहावरों और हास-परिहास का हलका स्पर्श देकर इन्होंने अपनी रचनाओं को अधिक रोचक बनाया है। धर्म अध्यात्म राजनीति सामाजिक जीवन, व्यक्तिगत, आचरण, कुछ भी शरद जोशी की पैनी नजर से बच नहीं सका है। इन्होंने अपनी व्यंग्य-रचनाओं में समाज में पाई जाने वाली सभी विसंगतियों का बेबाक चित्रण किया है। पातक इस चित्रण को पढ़कर चकित भी होता है और बहुत कुछ सोचने को विवश भी। प्रस्तुत पाठ 'तुम कब जाओगे अतिथि में शरद जोशी ने ऐसे व्यक्तियों की खबर ली है. जो अपने किसी परिचित या रिश्तेदार के घर बिना कोई पूर्व सूचना दिए चले आते हैं और फिर जाने का नाम ही नहीं लेते, भले ही उनका टिके रहना मेजबान पर कितना ही भारी क्यों न पड़े। अच्छा अतिथि कौन होता है? वह जो पहले से अपने आने की सूचना देकर आए और एक-दो दिन मेहमानी कराके विदा हो जाए था वह, जिसके आगमन के बाद मेजबान यह सोचने को विवश हो जाए जो इस पाठ के मेजबान निरंतर सोचते रहे।