सुल्तान फ़तेह अली साहब टीपू जिन्हें प्रायः टीपू सुल्तान के उपनाम से जाना जाता है मैसूर राज्य के राजा थे। उन्होंने अपने शासन के दौरान कई प्रशासनिक नवाचारों की शुरुआत की, जिसमें एक नई सिक्का प्रणाली और कैलेंडर, और एक नई भूमि राजस्व प्रणाली शामिल थी, जिसने मैसूर रेशम उद्योग के विकास की शुरुआत की।
उन्होंने एंग्लो-मैसूर युद्धों के दौरान ब्रिटिश सेनाओं और उनके सहयोगियों की प्रगति के खिलाफ रॉकेट तैनात किए, जिसमें पोलिलुर की लड़ाई और श्रीरंगपट्टनम की घेराबंदी भी शामिल थी।
टीपू सुल्तान जीवनी – Tipu Sultan Biography
जन्म | 1 दिसम्बर 1751 |
माता-पिता | हैदर अली फातिमा फख्र-उन-निसा |
विवाह | रुक़ैया बानो बेगम ख़दीजा ज़मान बेगम |
संतान | शहज़ादा हैदर अली ग़ुलाम मुहम्मद सुल्तान साहिब |
मृत्यु | 4 मई 1799 |
जीवन
मैसूर में एक कहावत है कि हैदर साम्राज्य स्थापित करने के लिए पैदा हुए थे और टीपू रक्षा के लिए। कुछ ऐसे भी विद्वान है जिन्होंने टीपू सुल्तान के चरित्र की काफी प्रशंसा की है।
टीपू एक परिश्रमी शासक मौलिक सुधारक और अच्छे योद्धा थे। इन सारी बातों के बावजूद वह अपने पिता के समान कूटनीतिज्ञ एवं दूरदर्शी थे, यह उनका सबसे बड़ागुण था। टीपू का नाम उर्दू पत्रकारिता के अग्रणी के रूप में भी याद किया जाएगा, क्योंकि उनकी सेना का साप्ताहिक बुलेटिन उर्दू में था, यह सामान्य धारणा है कि जाम-ए-जहाँ नुमा, 1823 में स्थापित पहला उर्दू अखबार था। वह गुलामी को खत्म करने वाले पहले शासक थे।
उन्होंने इसे एक बार में समाप्त कर दिया और नतीजा यह है कि आज भी कर्नाटक के किसान – विशेष रूप से पूर्व मैसूर क्षेत्र में – उत्तरी भारत के किसानों से अलग हैं। जमीन के टिलर टीपू के दिनों से ही अपनी पकड़ के मालिक थे। इस उपाय के परिणामस्वरूप, यह क्षेत्र में एक विकसित प्रान्त है। कर्नाटक के किसान भूमि मालिक हैं और उनके बेटों और बेटियों ने शिक्षा में अच्छा किया है।
उन्होंने इसे एक बार में समाप्त कर दिया और नतीजा यह है कि आज भी कर्नाटक के किसान – विशेष रूप से पूर्व मैसूर क्षेत्र में – उत्तरी भारत के किसानों से अलग हैं। जमीन के टिलर टीपू के दिनों से ही अपनी पकड़ के मालिक थे। इस उपाय के परिणामस्वरूप, यह क्षेत्र में एक विकसित प्रान्त है। कर्नाटक के किसान भूमि मालिक हैं और उनके बेटों और बेटियों ने शिक्षा में अच्छा किया है।
उनकी लाइब्रेरी की अनेक पुस्तकें पैगम्बर मोहम्मद, उनकी बेटी फातिमा और उनके बेटों, हसन और हुसैन के नाम को कवर के मध्य में और चार कोनों पर चार खलीफाओं के नाम के साथ ले जाती हैं। उनकी निजी लाइब्रेरी में अरबी, फ़ारसी, तुर्की, उर्दू और हिन्दी पाण्डुलिपियों के 2,000 से अधिक संगीत, हदीस, कानून, सूफीवाद, हिन्दू धर्म, इतिहास, दर्शन, कविता और गणित से सम्बन्धित हैं।
आलोचकों का कहना है कि कार्नवालिस ने इस सन्धि को करने में जल्दबाजी की और टीपू का पूर्ण विनाश नहीं कर के भारी भूल की अगर वह टीपु की शक्ति को कुचल देता तो भविष्य में चतुर्थ मैसुर युद्ध नहीं होता लेकिन वास्तव में कार्नवालिस ने ऐसा नहीं करके अपनी दूरदर्शता का परिचय दिया था उस समय अंग्रेजी सेना में बिमारी फैली हुई थी और युरोप में इंग्लैण्ड और फ्रांस के बीच युद्ध की सम्भावना थी। ऐसी स्थिति में टीपू फ्रांसिसीयों की सहायता ले सकते थे अगर सम्पूर्ण राज्य को अंग्रेज ब्रिटिश राज्य में मिला लेते तो मराठे और निजाम भी उससे जलने लगते इसलिए कार्नवालिस का उद्देश्य यह था कि टीपू की शक्ति समाप्त हो जाए और साथ ही साथ कम्पनी के मित्र भी शक्तिशाली ना बन सके इसलिए उन्होंने बिना अपने मित्रों को शक्तिशाली बनाये टीपू की शक्ति को कुचलने का प्रयास किया।
टीपू सुल्तान की धार्मिक नीति
1791 में रघुनाथ राव पटवर्धन के कुछ मराठा सवारों ने शृंगेरी शंकराचार्य के मंदिर और मठ पर छापा मारा। उन्होंने मठ की सभी मूल्यवान सम्पत्ति लूट ली। इस हमले में कई लोग मारे गए और कई घायल हो गए।[4] शंकराचार्य ने मदद के लिए टीपू सुल्तान को अर्जी दी। शंकराचार्य को लिखी एक चिट्ठी में टीपू सुल्तान ने आक्रोश और दु:ख व्यक्त किया। इसके बाद टीपू ने बेदनुर के आसफ़ को आदेश दिया कि शंकराचार्य को 200 राहत (फ़नम) नक़द धन और अन्य उपहार दिये जायें
टीपू सुल्तान ने अन्य हिन्दू मन्दिरों को भी तोहफ़े पेश किए। मेलकोट के मन्दिर में सोने और चाँदी के बर्तन है, जिनके शिलालेख बताते हैं कि ये टीपू ने भेंट किए थे। ने कलाले के लक्ष्मीकान्त मन्दिर को चार रजत कप भेंटस्वरूप दिए थे। 1782 और 1799 के बीच, टीपू सुल्तान ने अपनी जागीर के मन्दिरों को 34 दान के सनद जारी किए।∎