सन् 1999 में हुई कारगिल की लड़ाई में अपनी वीरता दिखाने वाले कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव (Yogendra Singh Yadav) का जन्म 10 मई, सन् 1980 को बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। कारगिल युद्ध में भारत के कई वीर जवानों ने अपनी जान की बाज़ी लगा दी, लेकिन उन्हीं में से एक योगेंद्र सिंह यादव 15 गोलियां खाने के बावजूद भी देश के दुश्मनों से लड़ते रहे और भारत को जीत दिलवाने में कामयाब हुए। कारगिल की इस लड़ाई में उनके अदम्य साहस और बहादुरी के लिए मात्र 19 वर्ष की आयु में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
नाम | योगेंद्र सिंह यादव |
जन्म तारीख | 10 मई, सन् 1980 |
जन्म स्थान | बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | श्री करण सिंह यादव |
सेना | भारतीय थल सेना |
उपाधि | सूबेदार मेजर, कैप्टन |
युद्ध | कारगिल युद्ध |
सम्मान | परमवीर चक्र |
योगेंद्र सिंह यादव का जन्म एक फौजी परिवार में हुआ था। उनके पिता करण सिंह यादव भी एक फौजी थे, जो सन् 1965 और 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध का हिस्सा रहे थे। पिता की बहादुरी से प्रेरित होकर योगेंद्र सिंह यादव ने और उनके बड़े भाई जितेंद्र सिंह यादव ने भारतीय सेना में शामिल होने का फैसला लिया। इसके बाद मात्र 16 वर्ष की आयु में योगेंद्र सिंह यादव सन् 1996 में भारतीय सेना में भर्ती हो गए।
सन् 1999 में योगेंद्र सिंह यादव शादी के बंधन में बंध गए थे। शादी के थोड़े दिनों बाद ही सीमा पर कारगिल का युद्ध शुरू हो गया और योगेंद्र सिंह यादव अपना फर्ज़ निभाने निकल पड़े। जब तक वह अपनी बटालियन के पास पहुंचे, तब तक उनके कई जवान शहीद हो चके थे। इसके बाद सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव ने अपने दुश्मनों पर गोलियां दागना शुरू कर दीं। दूसरी तरफ से पाकिस्तानी दुश्मन भारतीय सेना पर ग्रेनेड बम से हमला कर रहे थे। लेकिन योगेंद्र सिंह यादव और उनकी बटालियन पीछे नहीं हटी। वह लगातर दुश्मनों का सामना करते रहे। इस लड़ाई में योगेंद्र सिंह यादव को 15 गोलियां लग चुकी थीं और वह पूरी तरह से घायल हो चुके थे। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और ये युद्ध भारत की विजय के साथ समाप्त हुआ।
लड़ाई के दौरान लगी गोलियों के घाव ठीक होने में योगेंद्र सिंह यादव को कुछ महीनों का समय लगा। इसके बाद भारत सरकार ने योगेंद्र सिंह यादव को उनके साहस और पराक्रम के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया। सबसे कम उम्र में परमवीर चक्र पाने वाले योगेंद्र सिंह यादव की कारगिल युद्ध में दिखाई वीरता को आने वाली कई पीढ़ियां सलाम करेंगी।