दयानन्द सरस्वती आर्य समाज के प्रणेता के रूप में विख्यात हैं। 12 फरवरी, 1824 को जन्मे दयानंद सरस्वती वस्तुतः एक प्रमुख धार्मिक और समाज सुधारक थे, जिन्होंने 19वीं सदी के भारत में हिंदू धर्म के पुनर्निरूपण और सामाजिक और शैक्षणिक सुधारों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दयानंद सरस्वती का जन्म फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि (12 फरवरी, 1824) को टंकारा, काठियावाड़ (मोरबी जिला, गुजरात) में हुआ था। बचपन में उनका नाम रखा गया था मूल शंकर तिवारी था क्योंकि उनका जन्म धनु राशि और मूल नक्षत्र में हुआ था। करशनजी लालजी त्रिवेदी व यशोदाबाई उनके माता-पिता थे।
1846 में उन्होंने निर्णय लिया कि विवाह उनके लिए नहीं है और सन्यास मार्ग अपनाने के लिए घर से भाग गए। दयानंद सरस्वती ने सत्य की खोज में एक हुए तपस्वी के रूप में, लगभग पच्चीस वर्ष बिताए। इन वर्षों के दौरान उन्होंने अपने गुरु विरजानंद दंडीशा के सानिध्य में अपनी आध्यात्मिक साधना की। सनातन-हिन्दू समाज में वेदों को पुनर्स्थापित करना ही उनकी गुरुदक्षिणा थी।
30 अक्टूबर, 1883 को 59 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।