महिलाओं को क्यों नहीं करना चाहिए साष्टांग प्रणाम ?

Why Women’S Forbidden to Do Sashtang Pranam?

हिन्दू धर्म को सबसे प्राचीनतम धर्म माना जाता है। इस धर्म में दूसरों को इज़्ज़त और मान सम्मान देने के लिए प्रणाम और नमस्कार करने का चलन है। ऐसी मान्यता है कि जब भी हम किसी को आदर सम्मान देते हैं तब हमें दोनों हाथों को जोड़ कर उसके सामने नतमस्तक हो जाना चाहिए। इतना ही नहीं, मंदिर में भगवान के दर्शन के दौरान भी हमे नतमस्तक होना चाहिए। हिन्दू धर्म के अनुसार ईश्वर के समक्ष नतमस्तक होना ही उसके सामने उसके प्रति हमारे मन की सच्ची श्रद्धा को अभिव्यक्त करता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रणाम करने के कई तरीके हैं, जिनमें अष्टांग, सष्टांग, पंचांग, दंडवत, नमस्कार और अभिवादन को मुख्य माना जाता है। लेकिन इनमें महिलाओं को साष्टांग प्रणाम करने की मनाही है।

प्रणाम का महत्व | Importance of Pranam

भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही अभिवादन करने की प्रथा चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि पूजा करने से सिर्फ आशीर्वाद ही प्राप्त नहीं होता अपितु इससे मनुष्य के अहंकार का भी नाश होता है। शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि जप करने से यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। धार्मिक ग्रंथों में साष्टांग प्रणाम को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

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साष्टांग प्रणाम का अर्थ | Meaning of Sashtang Pranam

दण्डवत प्रणाम को भक्ति की एक प्रक्रिया माना जाता है। षोडषोपचार पूजन विधि में सोलह विभिन्न उपचारों से भगवान की पूजा की जाती है। इन उपचारों में आखिरी उपचार साष्टांग प्रणाम को माना जाता है। साष्टांग दण्डवत प्रणाम का मतलब है अपने अहंकार को त्यागकर ईश्वर के प्रति पूरी तरह से समर्पित हो जाना।

महिलाओं को क्यों नहीं करना चाहिए साष्टांग प्रणाम ? | Why women should not do Sashtang Pranam ?

शास्त्रों में महिलाओं के लिए साष्टांग प्रणाम करना अनुचित माना गया है क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महिलाओं के गर्भ और वक्ष स्थल को पवित्र माना जाता है, जिनका स्पर्श ज़मीन पर नहीं होना चाहिए। महिलाओं के गर्भ में एक जीव पलता है और उनके वक्ष उस जीव को पोषित करते हैं। यही कारण है कि पुराणों में महिलाओं के लिए साष्टांग प्रणाम वर्जित है।