राजनीती में ऐसे बहुत से राजनीतिज्ञ है जिन्होंने भारतीय राजनीति को प्रखर बनाने का महत्वपूर्ण काम किया है। प्रतिनिधित्व करने की क्षमता से संपन्न इन राजनीतिज्ञों ने नई पीढ़ी के तमाम राजनेताओं के समक्ष राजनीति की राह को स्पष्ट किया है। ऐसे तमाम राजनीतिज्ञों में कांशीराम का नाम भी शामिल है।
15 मार्च 1934 को पंजाब के रोरापुर में जन्मे कांशीराम भारतीय राजनीतिज्ञ होने के साथ ही समाज सुधारक भी थे। 15 मार्च को कांशीराम जयंती के रूप में मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक दलों में से एक बहुजन पार्टी की स्थापना कांशीराम ने ही की थी। बहुजन समाज पार्टी ने कई सालों तक सत्ता के गलियारों में खुद को काफी मज़बूती से स्थापित किया था। कांशीराम बहुजन आंदोलन के नेता भी थे, जिसके चलते उन्होंने पिछड़ा वर्ग की जनता के लिए अपनी आवाज़ को काफी बुलंद किया था।
कांशीराम डॉ भीम राव अम्बेडकर से काफी प्रभावित थे। हालाँकि वह उनकी तरह बुद्धिजीवी नहीं थे और ना ही कोई बड़े चिंतक। लेकिन फिर भी समाज में परिवर्तन लाने में कांशीराम की भूमिका बेहद एहम रही है। कांशीराम ने अम्बेडकर के सिद्धांत को व्यवहारिक धरातल पर उतारने का भी सार्थक प्रयास किया है। कांशीराम की बुलंद आवाज़ को दबाने के लिए उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया था। ऐसा होने के बाद कांशीराम को जिस अधिकारी ने निलंबित था उसकी उन्होंने पिटाई कर दी थी।
कांशीराम ने बसपा की स्थापना की थी। उन्होंने बसपा को एक राजनीतिक संगठन या धार्मिक संगठन के रूप में स्थापित नहीं किया था। इसके बाद उन्होंने दलित शोषित समाज संघर्ष समिति नामक सामाजिक संगठन की स्थापना की थी। इस समिति पर राजनीतिक प्रभाव काफी ज़्यादा था। इसके बाद उन्होंने दलितों के उत्थान को सुनिश्चित करने के लिए बी आर अम्बेडकर के जन्मदिवस (14 अप्रेल 1984) के मौके पर बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की थी।
बसपा की स्थापना करते ही कांशीराम पूर्णकालिक राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ता बन गए। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत छत्तीसगढ़ चुनाव से की थी। यहाँ जांजगीर चांपा से उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा था। बहुत ही कम समय में उनकी पार्टी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने इस विचार धारा का प्रसार किया कि हक़ के लिए लड़ना चाहिए, गिड़गिड़ाने से हक़ नहीं मिलेगा।