भारत में कई सम्प्रदाय ऐसे हैं जिन्होंने स्वयं को 'समाज' के नाम से अभिहित किया है। 'बिश्नोई समाज' भी इसी बात का एक उदाहरण है। बिश्नोई समाज भारतीय समाज से कटा हुआ एक अलग समाज नहीं है। बिश्नोई भारत का एक हिन्दू सम्प्रदाय है। इस समाज के अनुयायी उत्तर पश्चिमी भारत के पश्चिमी राजस्थान में रहते हैं। बिश्नोई समाज एक ऐसा सम्प्रदाय है जो पर्यावरण से काफी प्रेम करता है।
बिश्नोई शब्द दो शब्दों के मेल से बना है - बिस(20) + नोई(9)। स्थानीय भाषा में बिस का मतलब है बीस (20) और नोई का मतलब है नो (9) यानी एक ऐसा सम्प्रदाय जो 29 नियमों का पालन करता हो। इस सम्प्रदाय के यह 29 नियम भी प्रकृति से इस समाज के जुड़ाव को दर्शाते है। इन नियमों में शील का पालन करना, सुबह, दोपहर और शाम के समय विष्णु भगवान की आराधना करना, बैल को बाँधकर ना रखना, किसी की निंदा करने से बचना जैसे तमाम नियम शामिल है। असल में इस समाज के लोग गुरु जम्भेश्वर जी को मानते हैं। गुरु जम्भेश्वर जी ने ही बिश्नोई समाज की स्थापना की थी। इन्ही के द्वारा अपने शिष्यों को 29 उपदेश दिए गए थे। आज भी इस समाज के लोग इन 29 उपदेशों का पालन करते हैं।
बिश्रोई समाज का नाम पहले विश्नोई समाज था लेकिन कालान्तर में इस समाज का नाम विश्नोई के स्थान पर बिश्नोई हो गया। ऐसा माना जाता है कि श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान विष्णु के अवतार थे। विश्नोई शब्द विष्णु से बना है जो कालान्तर में परिवर्तित होकर बिश्नोई हो गया।
प्रकृति की रक्षा करने के लिए बिश्नोई समाज पूरी तरह से समर्पित है। आप इस बात को इस किस्से से भी समझ सकते हैं। खेजड़ी के हरे भरे वृक्षों की रक्षा करने के लिए बिश्नोई समाज से ताल्लुक रखने वाली अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में 363 बिश्नोई समाज के लोगों ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया था। इस समाज के लोगों में जानवरों के प्रति लगाव की भावना अधिक होती है इसलिए इस समाज के लोग शुद्ध शाकाहारी होते हैं। इस समाज के लोग पशुपालन और खेती करने जैसे काम करते हैं। यह ईमानदार होने के साथ ही काफी मेहनती और साहसी होते हैं। 'अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई महासभा' की स्थापना भी बिश्नोई समाज द्वारा जानवरों को संरक्षित करने के उद्देश्य से की गई है।
बिश्नोई समाज का प्रमुख धार्मिक स्थान मुकाम है। मुकाम राजस्थान के बीकानेर में स्थित एक गाँव है। यह स्थान बिश्नोई समाज के प्रवर्तक श्री जम्भेश्वर महाराज का प्रमुख समाधिस्थल मंदिर है, जिसे मुक्तिधाम मुकाम के नाम से भी जाना जाता है।