भारत में चीतों का हुआ घर वापसी, प्रधानमंत्री मोदी ने चीतों को दिया ये खास नाम

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Zeebiz

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के मौके पर नामीबिया से मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में पहुंचे 8 चीतों का
भारत में स्वागत किया है. जिसमें से 3 चीते नर और 5 मादांए हैं.

भारत आने वाले इन चीतो को ना केवल घर बल्कि नए नाम भी दिए गए हैं. जानकारी के लिए आपको बता दें कि
नामीबिया ले आए चीतों में से एक चीते का नाम खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नामकरण किया है.

क्या है चीते का नाम?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन के मौके पर यानी शनिवार को कुनो से विशेष बाडे़ में लाए गए चीतों
कोरिया करने के बाद पीएम ने अपने भाषण में स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष – ‘आजादी का अमृतकाल’ में भारत की
विकास की दौड़ में चीता के स्प्रिंट की तुलना की थी. उन्होंने कहा कि एक विलुप्त प्रजाति को पुनर्जीवित करने के
लिए यहां लाया गया है. ऐसे में ‘आशा’ नाम की चीता कहानी में पूरी तरह से फिट बैठती है.

इन सभी चीतों के नाम हैं- आशा, सियाया, ओबान, सिबिली, सियासा, सवाना, साशा और फ्रेडी। सूत्रों के मुताबिक
भारत आने के बाद ये चीते कुछ सहमा हुआ महसूस कर रहे थे. लेकिन अब उनके व्यवहार में सकारात्मक बदलाव
देखने को मिले हैं.हालांकि सूत्रों के मुताबिक दो चीते थोड़े सुस्त लग रहे हैं, लेकिन यह यात्रा के तनाव के कारण हो
सकता है, अन्यथा वे स्वस्थ हैं.

जानकारी के मुताबिक सभी 8 चीतों को तकरीबन 3 किलो भैंस का मांस लाया गया था. इसके साथ ही यह फीडिंग
अगले 30 दिनों तक जारी रहने वाला है. चीतों का 20 घंटे परीक्षण किया जा रहा है और उनके स्वास्थ्य का भी
खास ख्याल रखा जा रहा है. चीतों के स्थानान्तरण से पहले उनके लिए भोजन की मात्रा सुनिश्चित करने के लिए
कूनो में सैकड़ों चीतल को छोड़ा गया था.

यहां जानें चीतों के भारत आने की पूरी कहानी

1948 में आखिरी बार देखा गया तीन चीतों को भारत ने आखिरी बार 1948 में चीतों को आखिरी बार देखा गया था. 1948 के बाद सीटों का दिखना तकरीबन ना के बराबर हो गया था. राजा रामानुज प्रताप ने 3 चीतों का शिकार किया। भारत ने 1952 में चीते को विलुप्त माना था. हालांकि इसके बाद चीतों को कई बार भारत लाने की कोशिशें की गईं, लेकिन वो परवान नहीं चढ़ सकीं.

1970 के दशक में ईरान के शाह ने भारत को चीते भेजने की बात कही थी. जिसके बदले में ईरान को भारत के
शेर चाहिए थे. लेकिन कुछ कारणों की वजह से उनकी यह पेशकश पूरी नहीं हो पाई.

भारत सरकार ने वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट बनाया था, जिसको 1972 में लागू किया गया था. इस एक्ट में
बताया गया था कि किसी भी जंगली जीव का शिकार करना प्रतिबंधित कर दिया गया था. इसके बाद देश में
जंगली जीवो के लिए संरक्षित इलाके भी बनाए गए. लेकिन लोग चीतों को करीब-करीब से भूल ही गए थे. जिसके
बाद चीतों को लेकर 2009 में आवाजें उठने शुरू हो गई. जब वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने राजस्थान के
गजनेर में दो दिन का इंटरनेशनल वर्कशॉप रखा. इसमें भारत में चीतों को वापस लाए जाने की मांग उठी.

ये हैं इस बड़ी बिल्ली की खासियतें

  • 120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ने वाला जानवर.
  • चीता दौड़ते वक्त 7 मीटर लंबी छलांग लगा सकता है.
  • दौड़ते समय चीता आधे वक्त हवा में रहता है.
  • चीता कभी भी इंसानों का शिकार नहीं करता है.
  • चीता हमेशा हरी घास पर रहना पसंद करता है.
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